अध्यात्मविशेष

इस जगह लक्ष्मण ने जमीन में तीर मारकर कर दिया था छेद, गंगाजल निकाल बुझाई थी माता सीता की प्यास

गंगाजल का पानी सबसे पवित्र माना जाता है। कहते हैं इसमें स्नान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसका जल ग्रहण करने से सभी रोगों से मुक्ति मिलती है। आमतौर पर कुछ गिनी चुनी जगहों पर ही गंगा नदी बहती है। इसलिए गंगाजल सिर्फ वहीं से प्राप्त किया जा सकता है। लेकिन रामायण काल में लक्ष्मण ने माता सीता की खातिर जमीन में छेद कर गंगाजल निकाल दिया था। यह जगह आज एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल पातालगंगा के रूप में फेमस है।

यहां लक्ष्मण ने तीर मार निकाल दी थी गंगा

पौराणिक मान्यताओं की माने तो राम, सीता और लक्ष्मण 14 वर्षों के वनवास के दौरान डोंगर जंगल से गुजरे थे। यहां माता सीता का गला सूखने लगा। उनकी प्यास बुझाने के लिए लक्ष्मण ने अपना तीर उठाया और गंगा माता को याद करते हुए जमीन में चला दिया। इससे धरती में एक बड़ा सा छेद हो गया और उसमें से गंगाजल निकलने लगा। अब त्रेतायुग में इस स्थल को पातालगंगा के नाम से जाना जाता है। यह ओडिशा के नुआपड़ा जिले में स्थित है।

पातालगंगा नुआपड़ा से 85 किलोमीटर और बोडेन से 10 किलोमीटर दूर गुरुडोंगर पहाड़ों के मध्य स्थित है। इसके बारे में कहा जाता है कि यहां का जल कभी सूखता नहीं है। पातालगंगा के जल की तुलना गंगाजल से भी की जाती है। इसमें स्नान करने से न सिर्फ पाप धूल जाते हैं बल्कि इंसान को मोक्ष की प्राप्ति भी होती है। ऐसी भी मान्यता है कि पातालगंगा के पानी से नहा लो तो सभी प्रकार के रोग दूर हो जाते हैं।

रहस्यमयी है यहां का कुंड

पातालगंगा में एक कुंड बना हुआ है। धरती से पातालगंगा का पानी निकलकर इस कुंड में ही एकत्रित होता है। इस कुंड की खासियत है कि इसका जल स्तर हमेशा एक सा ही रहता है। फिर भयंकर गर्मी हो या मूसलाधार बारिश। इसका जलस्तर टस से मस नहीं होता है। इसकी वजह वैज्ञानिक भी पता नहीं लगा पाए हैं।

पहले लोग इस कुंड में स्नान भी करते थे। लेकिन अब इस पर पाबंदी लगा दी गई है। हालांकि आप इस कुंड के जल को अपने साथ बोतल में जरूर ले जा सकते हैं। यदि आप इस जल्द से वहीं स्नान करना चाहते हैं तो दो नए कुंड बनाए गए हैं। महिला और पुरुषों के लिए बने इन नए कुंडों में मुख्य कुंड से पानी आता है।

पेड़ पर नारियल लटकाने से पूरी होती है मनोकमना

इस स्थल पर एक वट वृक्ष भी है। ये वही पेड़ है जिसकी छाया में भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण विश्राम किया करते थे। कहते हैं तीनों के पैरों के निशान आज भी यहाँ देखने को मिलते हैं। वहीं इस वट वृक्ष से जुड़ी एक अनोखी मान्यता भी है। इसके अनुसार यदि आप कोई मनोकामना मन में बोलकर इस वट वृक्ष पर नारियल बांध दें तो आपकी वह मनोकामना जरूर पूर्ण होती है।

यदि आप यहां घूमने फिरने के उद्देश्य से आते हैं तो पातालगंगा के अलावा 100 सालों से ज्यादा पुराने मंदिर जैसे जगन्नाथ मंदिर, महामृत्युंजय शिव मंदिर, राधाकृष्ण मंदिर, दुर्गा मंदिर, गायत्री मंदिर व आलेख महिमा मठ देख सकते हैं। यहां माघ पूर्णिमा, बैशाख पूर्णिमा, रथ यात्रा, शिवरात्रि, जन्माष्टमी, नवरात्र जैस त्योहारों पर मेला भी लगता है। वहीं सावन माह में तो बड़ी तादाद में कांवड़िया पवित्र जल लेने यहां आते हैं। इसके बाद यहां मौजूद महामृत्युंजय शिव मंदिर में जलाभिषेक किया जाता है।

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