अध्यात्म

इस कारण शीतला सप्तमी पर किया जाता है बासी भोजन, जाने इसका वैज्ञानिक महत्व

24 मार्च गुरुवार को पूरे देश में शीतला सप्तमी है। इस दिन शीतला माता की पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक शीतला माता की पूजा और व्रत करने से चेचक समेत अन्य बीमारियां और संक्रमण नहीं होते हैं। इस दिन शीतला माता को ठंडे भोजन का भोग लगाया जाता है। भक्त एक दिन पहले भोजन बना लेते हैं और फिर अगले दिन खाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस परंपरा के पीछे केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक कारण भी है।

इसलिए शीतला सप्तमी पर करते हैं ठंडा भोजन

1. शीतला माता के व्रत को बसौड़ा या बसियौरा भी कहा जाता है। यह अकेला ऐसा व्रत होता है जिसमें एक दिन पहले बनाया हुआ भोजन किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि ऋतुओं के बदलने पर खान-पान भी बदलना चाहिए। इससे सेहत पर अच्छा असर पड़ता है। बस यही वजह है कि ठंडा खाना खाने की परंपरा शुरू हो गई।

2. शीतला सप्तमी और अष्टमी का त्यौहार ऋतुओं के संधिकाल पर पड़ता है। मतलब सर्दी (शीत ऋतु) के जाने व गर्मी (ग्रीष्म ऋतु) के आने का समय। आयुर्वेद की माने तो दो ऋतुओं के संधिकाल में खाने पीने का खास ख्याल रखना चाहिए। इस  संधिकाल में जरूरी सावधानी नहीं बरती गई तो मौसमी बीमारियाँ आपके शरीर को घेर लेती है। फिर आपके बीमार पड़ने के चांस बढ़ जाते हैं।

3. कहते हैं कि शीतला सप्तमी पर ठंडा खाने से ऋतुओं के संधिकाल में होने वाली बीमारियां नहीं होती है। इतना ही नहीं साल में एक बार सर्दी और गर्मी के संधिकाल में ठंडा भोजन खाने से पेट अच्छा रहता है। इससे आपका पाचन तंत्र मजबूत बनता है। पेट से जुड़ी सभी बीमारियाँ दूर होती है।

4. कुछ लोगों को ठंड की वजह से बुखार, फोड़े-फूंसी, आंखों से जुड़ी दिक्कतें हो जाती हैं। यह लोग यदि शीतला सप्तमी पर बासी भोजन करें तो इन्हें लाभ मिलता है। गुजरात में भी कृष्ण जन्माष्टमी से एक दिन पूर्व बसोड़ा समान अनुष्ठान मनाया जाता है। इस त्योहार को शीतला सतम के नाम से भी जाना जाता है।

तो अब आप शीतला सप्तमी पर बासी भोजन करने के लाभ समझ चुके हैं। यदि आपको ये जानकारी पसंद आई तो इसे दूसरों के साथ शेयर जरूर करें।

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