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अब भारत को अपने खेमे में लाने में जुटे पश्चिमी देश, जानिए इंडिया को लेकर क्या बोला जर्मनी

अमेरिका और पश्चिमी देश रूस को अलग-थलग करने के लिए चारों तरफ से रणनीति रच रहे हैं। अमेरिका और पश्चिमी देश चाहते हैं की संयुक्त राष्ट्र में रूस एकदम अकेला पड़ जाये। नाटो के सदस्य जर्मनी ने भारत को रूस का विरोध करने के लिए अपनी कूटनीति जारी रखी है। जर्मनी के विदेश मंत्री ने भारत के विदेश मंत्री से इस संबंध में बात की है। जर्मनी के विदेश मंत्री खुलकर भारत के रुख के बारे में बोल रहे हैं।

ukraine russia conflict

गौरतलब है कि भारत ने अब तक किसी का पक्ष लेने को लेकर दूरी बनाकर रखी है। यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पर दो बार वोटिंग हुई और दोनों पर भारत वोटिंग से बाहर रहा है। भारत के अलावा चीन और यूएई भी वोटिंग से बाहर रहे।

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रूस के वीटो करने के बाद यह प्रस्ताव अब संयुक्त राष्ट्र की आम सभा में लाया गया है। यहाँ बहुमत से प्रस्ताव पास हो सकता है। भारत यहाँ क्या करेगा, इसकी चर्चा गर्म है।कहा जा रहा है कि भारत यहाँ भी वोटिंग में न तो अमेरिका के नेतृत्व वाले प्रस्ताव के समर्थन में वोट करेगा और न ही विरोध में। लेकिन भारत को अपने खेमे में लाने की कोशिश पश्चिम के देश और रूस दोनों कर रहे हैं।

जर्मनी के विदेश मंत्री ने भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर को फ़ोन किया था और उनसे रूस को अलग-थलग करने की अपील की थी। भारत में जर्मनी के राजदूत वॉल्टर लिंडर ने अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू से कहा है कि उन्हें अब भी उम्मीद है कि भारत यूएन में वोटिंग को लेकर अपना रुख़ बदलेगा।

रूस का कहना है कि पिछले दो दशकों में नेटो के पूर्वी यूरोप में विस्तार के कारण समस्याएं पैदा हुई हैं। 1997 से नेटो पूरब की तरफ़ 14 देशों तक पहुँचा और इन देशों से रूस बिल्कुल क़रीब है। रूस नेटो को अपनी सुरक्षा को लेकर ख़तरे के तौर पर देखता है।

इस सवाल के जवाब में जर्मन राजदूत ने कहा है, ”इसमें कुछ भी सच्चाई नहीं है। केवल झूठी बातें और झूठे नैरेटिव गढ़े जा रहे हैं। ज़ाहिर है कि जब आप शांतिपूर्ण पड़ोसी पर हमला करते हैं तो इस तरह के बहाने बनाने पड़ते हैं। इन तर्कों में कोई सच्चाई नहीं है। यह किसी देश का फ़ैसला होता है कि वह नेटो में शामिल होना चाहता है या नहीं। यूक्रेन के मामले में तो इस तरह का कोई प्रस्ताव भी नहीं था। यह यूरोप की शांति पर हमला है।”

जर्मनी के विदेश मंत्री ने भारतीय विदेश मंत्री से बात की है। क्या यूक्रेन के मामले में भारत जर्मनी के रुख़ के साथ आने को तैयार है? इस सवाल के जवाब में जर्मन राजदूत ने कहा, ”मुझे लगता है कि इस सवाल का जवाब भारतीय डिप्लोमैट ज़्यादा ठीक से देंगे। उन्हें ही फ़ैसला करना है कि वे क्या चाहते हैं। लेकिन इतना तय है कि हम सभी अंतरराष्ट्रीय नियमों की वकालत करते हैं और क्षेत्रीय अखंडता के साथ संप्रभुता के उल्लंघन का विरोध करते हैं। भारत भी इससे लेकर असहमत नहीं है। यूक्रेन भले भारत से दूर है लेकिन अन्याय की दस्तक एक जगह तक सीमित नहीं होती है।”

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के वोटिंग से बाहर रहने पर जर्मन राजदूत ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय शांति की रक्षा सबका कर्तव्य है। जर्मन राजदूत ने कहा कि जो अंतरराष्ट्रीय शांति को भंग करता है, उसकी आलोचना सबको करनी चाहिए।

क्या जर्मनी भारत के रुख़ से निराश है? इस पर जर्मन राजदूत ने कहा, ”अब भी वक़्त है. हम अब भी भारत से इसे लेकर संपर्क में हैं। अगर रूस को ऐसे जाने दिया गया, तो कल कोई और करेगा। मुझे उम्मीद है कि भारत का रुख़ बदलेगा।”

कहा जा रहा है कि पश्चिम के देशों के दोहरे मानदंड होते हैं क्योंकि अमेरिका ने 2003 में इराक़ पर हमला किया तो इस तरह की निंदा नहीं की गई। इस पर जर्मन राजदूत ने कहा, ”जर्मनी और फ़्रांस इराक़ पर हमले के पक्ष में नहीं थे। हम अमेरिका से सहमत नहीं थे।”

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