बॉलीवुड

एक समय नाई की दुकान पर काम करते थे मोहम्मद रफ़ी, फ़िर ऐसे बनें गायकी के उस्ताद…

नाई की दुकान पर काम करते करते यूँ गायक बन गए मोहम्मद रफ़ी। जानिए उनके जीवन से जुड़ी दिलचस्प बातें...

भारत के महान गायकों में शुमार मोहम्मद रफी की आवाज के दीवाने आज भी हैं। जी हाँ भले ही उन्हें गुजरे आज दशकों बीत गए हो, लेकिन रफी के गाने सुनकर आज भी यूं लगता है कि वह जैसे इन्हीं फिजाओं में आज भी जिंदा हैं। मोहम्मद रफी ने गायकी में एक बड़ा मुकाम हासिल किया था, लेकिन यह कोई रातोंरात हुआ चमत्कार नहीं था। गौरतलब हो कि उनकी असल जिंदगी को देखें तो वह बेहद साधारण परिवार से थे।

Mohmmad rafi

यहां तक कि उनके बड़े भाई सलून चलाते थे। मोहम्मद रफी का पढ़ने में ज्यादा मन नहीं रमता था तो उनके पिता ने यह सोचकर कि बिगड़ने से अच्छा है कि वह कुछ काम करें। ऐसा सोचकर उन्होंने मोहम्मद रफी को बड़े भाई के सलून में ही काम सीखने के लिए भेज दिया था।

ऐसे में धीरे-धीरे नाई की दुकान में काम करते-करते रफ़ी साहब बड़े हुए, फिर एक दिन ऐसा आया। जब वह गायकी की दुनिया के सरताज़ बन गए। आइए ऐसे में जानते हैं उन्ही से जुड़ी कहानी…

Mohmmad rafi

बता दें कि फ़िल्मी दुनिया में कई गायक आए और कई तो चलें गए, लेकिन बॉलीवुड के रफी साहब जैसी प्रतिभाएं अनंत काल तक जीवित रहती हैं। जी हां 24 दिसंबर,1924 को जन्मे रफी साहब जितने अच्छे फनकार थे, उतने ही अच्छे और नेक दिल इंसान भी थे। अमृतसर के छोटे से गांव कोटला सुल्तानपुर में रहने वाले रफी, अपने गांव के फकीर के साथ एक समय संगीत गुनगनाया करते थे।

Mohammed Rafi

धीरे-धीरे यह सूफी फकीर उनके गाने की प्रेरणास्रोत्र बन गया और वह मोहम्मद रफी से उस्ताद मोहम्मद रफी बन गए और आज उनकी 97वीं जयंती है। मालूम हो कि हिंदुस्तान की दिलों की धड़कन कहे जाने वाले रफी साहब का निकनेम ‘फीको’ था। वहीं रफी के बड़े भाई सलून चलाया करते थे। ऐसे में जब रफी का दिल पढ़ाई में नहीं रमा तो उनके पिता ने उन्हें सलून में काम करने के लिए भाई के पास भेज दिया।

Mohmmad rafi

गौरतलब हो कि रफी के साले मोहम्मद हमीद ने रफी में प्रतिभा देखी और उनका उत्साहवर्धन किया। इतना ही नहीं हमीद ने ही रफी साहब की मुलाकात नौशाद अली से करवाई। जिसके बाद उन्हें ‘हिंदुस्तान के हम हैं, हिंदुस्तान हमारा’ की कुछ लाइने गाने का मौका मिला।

वहीं जब रफी साहब की पहली सार्वजनिक परफॉर्मेंस हुई। उस वक्त तक उनकी उम्र महज़ 13 साल की थी और तब उन्हें महान केएल सहगल की एक संगीत कार्यक्रम में गाने की अनुमति मिली थी।

Mohmmad rafi

बता दें कि 1948 में, रफी ने राजेंद्र कृष्ण द्वारा लिखित ‘सुन सुनो ऐ दुनिया वालों बापूजी की अमर कहानी’ गाया। इस गाने के हिट होने के बाद उन्हें तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के घर में गाने के लिए आमंत्रित किया गया था।

वहीं रफी साहब ने नौशाद के अलावा कई बड़े कम्पोजर्स के साथ भी काम किया था। एस.डी बर्मन, शंकर-जयकिशन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, ओपी नैय्यर और कल्य़ाणजी आनंदजी समेत अपने दौर के लगभग सभी लोकप्रिय संगीतकारों के साथ मोहम्मद रफी ने गाना गाया था।

Mohmmad rafi

वहीं आखिर में बता दें कि रफी का अंतिम संस्कार मुंबई में हुआ था। तेज बारिश के बावजूद इसकी रिकॉर्डिंग की गई थी और उसी रिकॉर्डिंग का एक हिस्सा बाद में रिलीज हुई एक हिंदी फ़िल्म में इस्तेमाल किया गया है। गौरतलब हो कि यह मुंबई में अब तक के सबसे बड़े अंतिम संस्कार जुलूसों में से एक था, जिसमें करीब 10,000 से अधिक लोग शामिल हुए थे।

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