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अब तक 25 हजार लावारिश लाशों का कर चुके हैं अंतिम संस्कार, पद्मश्री से सम्मानित

श्री मोहम्मद शरीफ : मेरे लिए ना कोई हिंदू है, ना मुसलमान...मेरे लिए सब हैं इंसान

नाम…श्री मोहम्मद शरीफ, उम्र…83 साल, काम…लावारिस लाशों को उनके धर्म अनुसार अंतिम संस्कार करना।

यूपी के अयोध्या जनपद में शरीफ चाचा के नाम से मशहूर “श्री मोहम्मद शरीफ” पिछले 24 वर्षों से यही काम कर रहे हैं। आज के इस चकाचौंध की दुनिया में जहां पर लोग धन- दौलत- शोहरत की चाहत में बेसूध होकर भाग रहे हैं, इसी दुनिया में कुछ ऐसे भी लोग हैं जो दुनिया की चमक धमक से बिल्कुल दूर, मन में समाज सेवा का संकल्प लिए अनथक यात्रा कर रहे हैं।

ऐसे ही समाज सेवी हैं अयोध्या के रहने वाले मोहम्मद शरीफ । सोमवार, 8 नवंबर को मोहम्मद शरीफ को देश के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से नवाजा गया है।

Mohammad Shareef

25 हजार से अधिक लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करने वाले मोहम्मद शरीफ को 2020 के लिए देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म श्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। 83 वर्षीय मोहम्मद शरीफ पेशे से साइकिल मैकेनिक हैं। श्री मोहम्मद शरीफ ने सोमवार को राष्ट्रपति भवन में प्रेसिडेंट रामनाथ कोविंद से पुरस्कार ग्रहण किया।

उत्तर प्रदेश के अयोध्या में श्री मो. शरीफ “शरीफ चाचा” के नाम से लोकप्रिय हैं। उन्होंने तीन दशकों में जिले में 25 हजार से अधिक लावारिस शवों का अंतिम संस्कार किया है।

मोहम्मद शरीफ को प्रेरणा कैसे मिली ?

श्री मोहम्मद शरीफ

साल 1993 में मोहम्मद शरीफ के पुत्र मोहम्मद रईस कुछ काम से सुल्तानपुर गए थे। वहीं किसी दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। शरीफ चाचा अपने बेटे की खोज में कई दिनों तक इधर-उधर भटकते रहे, लेकिन बेटे का कोई सुराग नहीं मिला। करीब एक महीने बाद सुल्तानपुर से खबर मिली कि उनके बेटे मोहम्मद रईस की मौत हो गई है।

Mohammad Shareef

उनके अंतिम संस्कार के बारे में पूछने पर पता चला कि उनके बेटे मोहम्मद रईस को लावारिस लाश के तौर पर अंतिम संस्कार कर दिया गया। यह सुनते ही शरीफ चाचा चक्कर खा गए। उनको यह बात दिल तक घर कर गई कि उनके बेटे को लावारिस मानकर अंतिम संस्कार किया गया।

इसी दिन मोहम्मद शरीफ ने यह प्रण लिया कि वह अयोध्या में किसी भी लावारिस लाश को इस तरीके से अंतिम संस्कार नहीं होने देंगे, और वह खुद ऐसे लाशों को उनके धार्मिक रीति-रिवाजों के अनुसार अंतिम संस्कार करेंगे, और तब से ही ये पुण्यकार्य लगातार आगे बढ़ रहा है।

ठेले पर लाश ढोते शरीफ चाचा

इस प्रेरणा के बाद चाचा ने ठेला खरीदा और फिर लावारिस लाशों को ढोने और अंतिम संस्कार करने का ये सिलसिला शुरू हो गया। आपको बता दें कि शरीफ के बेटे मोहम्मद रईस की पहचान उनकी शर्ट पर लगे टेलर के टैग से हुई थी। टैग से पुलिस ने टेलर की खोज की और कपड़े से “शरीफ चाचा” ने मृतक की पहचान अपने बेटे के रूप में की।

शरीफ चाचा का एक बहुत प्रसिद्ध टैगलाइन है मेरे लिए ना कोई हिंदू है, ना मुसलमान…मेरे लिए सब हैं इंसान।

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