बॉलीवुड

एक ही फिल्म में 9 किरदार निभाकर अमर हो गए थे संजीव कुमार, दिलीप कुमार हो गए थे फ़िदा

बॉलीवुड के महान बहुमुखी अभिनेता संजीव कुमार (Sanjeev Kumar) का 6 नवंबर 1985 को निधन हुआ था. संजीव कुमार 60 और 70 के दशक में सबसे प्रसिद्ध सितारों में से एक थे. आज अभिनेता की पुण्यतिथि है. संजीव कुमार एक हरफनमौला कलाकार थे जिन्हें एक्टिंग का स्कूल भी कहा जाता था. वो कोई भी रोल हंसते-खेलते निभा लेते थे. ‘नया दिन नई रात’ एक ऐसी फिल्म है. जिसमें उन्होंने एक-दो नहीं बल्कि 9 किरदार अदा किये थे.

sanjeev kumar

अभिनेता की यह फिल्म 1974 में 7 मई को रिलीज हुई थी. इस फिल्म के पीछे भी एक दिलचस्प कहानी है. ‘नया दिन नई रात’ की कहानी लेकर प्रोड्यूसर-डायरेक्टर एनपी अली और ए भीम सिंह ने सबसे पहले इस कहानी के लिए ट्रेजडी किंग दिलीप कुमार (Dilip Kumar) के पास पहुंचे थे.

sanjeev kumar role in nai din nai raat

दिलीप कुमार ने जैसे ही इस फिल्म में 9 किरदार निभाने की बात सुनी उन्होंने फिल्म करने से ही मना कर दिया. दिलीप कुमार ने कहा कि ये मुझसे नहीं हो पाएगा. दिलीप कुमार के मना करने के बाद डायरेक्ट-प्रोड्यूसर काफी गहरी सोच में पड़ गए कि वह अब क्या करेंगे. दिलीप कुमार ने उनकी परेशानी को समझते हुए कहा कि आप संजीव कुमार के पास जाइए.

वहीं एक ऐसे अभिनेता है जो आपकी फिल्म के साथ न्याय कर पाएंगे. वहीं एक है जो 9 तरह के किरदार को एक साथ निभा सकता है.

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दिलीप कुमार के इतना कहने के बाद एनपी अली और ए भीम सिंह संजीव कुमार के पास पहुंचे. फिल्म की कहानी देखते ही अभिनेता ने हां कर दी. संजीव कुमार ने इस फिल्म में पूरे 9 रोल निभाकर इतिहास बना दिया था. इस फिल्म में उन्होंने लूले-लंगड़े, अंधे, बूढ़े, डाकू, जवान, बीमार, कोढ़ी, किन्नर और प्रोफेसर का किरदार निभाया था.

संजीव के अंदर खास बात थी कि वे अपनी उम्र से भी ज्यादा उम्र के किरदार बड़ी आसानी से निभा जाते थे. इस फिल्म में उनके साथ जया भादुड़ी, वी गोपाल, दिलीप दत्त भी थे.

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आपको बता दें कि अभिनेता संजीव कुमार के नाम से मशहूर होने से पहले उनकी एक अलग ही पहचान थी. संजीव कुमार का जन्म एक गुजराती परिवार में हरिहर जेठालाल जरीवाला के रूप में हुआ था और बाद में उनका नाम बदलकर संजीव कुमार कर दिया गया. लेकिन, संजीव कुमार को यह नाम किसने दिया?

यह कोई और नहीं बल्कि फिल्म निर्माता सावन कुमार थे, जिन्हें गोमती के किनारे, दक्षिणी, सौतेन की बेटी, सनम बेवफा और बेवफ़ा से वफ़ा जैसी फ़िल्में बनाने के लिए जाना जाता है. सावन ने एक नाटक में संजीव को देखा और उसके साथ नौंहिलाल को प्रोड्यूस किया.

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संजीव कुमार को अपने बेहतरीन अभिनय के लिए 2 राष्ट्रीय पुरस्कार से भी नवाजा गया. उन्हें फिल्म दस्तक और कोशिश के लिए अवॉर्ड दिया गया था. अगर उनकी निजी जिंदगी के बारे में बात की जाए तो संजीव के मन में हेमा मालिनी के लिए सॉफ्ट कॉर्नर था. उन्होंने ताउम्र शादी नहीं की थी.

महज़ 47 वर्ष की उम्र में दिल का दौरा पड़ने के कारण उनका निधन हो गया था. संजीव कुमार ने प्रोफेसर की पडोसन में अपनी आखिरी सिल्वर स्क्रीन उपस्थिति दर्ज की, जो उनकी मृत्यु के आठ साल बाद रिलीज़ हुई थी.

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