अध्यात्म

कोल्हापुर का ये महालक्ष्मी मंदिर है 2 हजार साल पुराना, अरबों के दुर्लभ खजाने से भरा पड़ा है

मुंबई से लगभग 400 किलोमीटर दूर कोल्हापुर महाराष्ट्र का एक जिला है, जहां धन की देवी लक्ष्मी का एक सुंदर मंदिर बना (Mahalaxmi Temple, Kolhapur) है. इस जगह पर देवी लक्ष्मी को अम्बा जी के नाम पुकारा जाता है. इस मंदिर के इतिहास के बारे में बात करे तो मान्यता के अनुसार, इस मंदिर का निर्माण चालुक्य शासक कर्णदेव ने 7वीं शताब्दी में करवाया था.

इसके बाद इस मंदिर का पुनर्निर्माण शिलहार यादव ने 9वीं शताब्दी में करवाया था. इस मंदिर में कोंकण के राजाओं, चालुक्य राजाओं, शिवाजी और उनकी मां जीजाबाई तक ने चढ़ावा चढ़ाया है.

kolhapur mahalakshmi mandir

ज्ञात होकि कुछ साल पहले जब इस मंदिर के खजाने का द्वार खोला गया तो यहां सोने, चांदी और हीरों के ऐसे आभूषण सामने आए जिसकी बाजार में कीमत अरबों रुपए में हैं. मंदिर के खजाने से सोने के सिक्कों का हार, सोने की जंजीर, सोने की बड़ी गदा, चांदी की तलवार, महालक्ष्मी का स्वर्ण मुकुट, सोने की चिड़िया, सोने के घुंघरू, श्रीयंत्र हार, हीरों की कई मालाएं जैसे बड़े जेवरात प्राप्त हुए थे.

मंदिर का इतिहास है इतना पुराना

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कोल्हापुर का इतिहास हिन्दू धर्म से जुडा हुआ है और इसी वजह से ये जगह धर्म की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण मानी गई है. मंदिर के बाहर लगे शिलालेख से बताया जाता है कि ये मंदिर 2 हजार साल पुराना है. शालिवाहन घराने के राजा कर्णदेव ने पहली बार इसका निर्माण करवाया था. इसके बाद मंदिर के अहाते में 30-35 अन्य मंदिरों का भी निर्माण किया गया.

आपको बता दें कि 27 हजार वर्गफुट में फैला यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में शुमार होता है. जगत गुरु आदि शंकराचार्य ने महालक्ष्मी की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा की थी.

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इस मंदिर के काले पत्थरों पर कमाल की नक्काशी हजारों साल पुराने भारतीय स्थापत्य को दर्शाती है. मंदिर के मुख्य गर्भगृह में महालक्ष्मी हैं, उनके दाएं-बाएं दो अलग गर्भगृहों में महाकाली और महासरस्वती के विग्रह बने हैं. पश्चिम महाराष्ट्र देवस्थान व्यवस्थापन समिति के प्रबंधक धनाजी जाधव नौ पीढ़ियों से मंदिर की देखरेख कर रहे हैं.

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उनके मुताबिक यह देवी की 51 शक्तिपीठों में से एक है. वही दिवाली की रात दो बजे मंदिर के शिखर पर दीया रोशन होता है, जो अगली पूर्णिमा तक नियमित रूप से जलता रहता है.

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बता दें कि महालक्ष्मी मंदिर के मुख्य गर्भगृह में मां लक्ष्मी की 40 किलो की प्रतिमा स्थापित है. इस मूर्ति की लंबाई दो फीट नौ इंच है. यह करीब 7,000 वर्ष पुरानी है. मूर्ति में महालक्ष्मी की 4 भुजाएं हैं. इनमें महालक्ष्मी के हाथ में तलवार, गदा, ढाल आदि शस्त्र हैं. उनके मस्तक पर शिवलिंग, नाग और पीछे शेर है. घर्षण की वजह से माता की मूर्ति को नुकसान न हो इसलिए चार साल पहले औरंगाबाद के पुरातत्व विभाग ने मूर्ति पर रासायनिक प्रक्रिया की थी.

इससे पहले 1955 में भी यह रासायनिक लेप मूर्ति पर लगाया गया था. महालक्ष्मी की पालकी सोने की है. इसमें 26 किलो सोना लगा है. ज्ञात होकि हर नवरात्रि के उत्सव काल में माता जी की शोभा यात्रा कोल्हापुर शहर में निकाली जाती है. प्राचीनतम इस लक्ष्मी मंदिर की काफी मान्यता मानी जाती है.

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