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कभी हॉकी में चमकाया था देश का नाम, अब कर रहे जूते सिलने का काम, अनुराग ठाकुर से है बड़ी उम्मीद

जिम्मेदारियों, हालातों और आर्थिक तंगी के चलते कई लोग वैसा जीवन नहीं जी पाते है जिसके वे असल में हकदार होते हैं. हमारे देश में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है. हमारे देश के लोगों में हुनर कूट-कूट कर भरा हुआ है. कई लोगों ने वो हासिल किया हो जो लोग सपने में भी नहीं सोच पाते हैं. हालांकि दुर्भाग्य कि ऐसे कई लोग बहुत बुरा जीवन जी रहे हैं. इस सूची में सुभाष चंद का नाम भी शामिल है.

subhash chand

अब आप सोच रहे होंगे कि भला ये सुभाष चंद कौन है. तो ये उनका दुर्भाग्य ही है कि सुभाष चंद को लेकर मन में ऐसा सवाल आ रहा है. आपको बता दें कि, सुभाष चंद हॉकी के राष्ट्रीय खिलाड़ी रह चुके हैं. वे 90 के दशक में आठ बार विभिन्न वर्गों में नेशनल खेल चुके हैं. हालांकि आज वे पाई-पाई को मोहताज है और अपना एवं अपने परिवार का पेट पालने के लिए उन्हें जूते बनाने का काम करना पड़ रहा है.

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सुभाष चंद हॉकी में हिमाचल प्रदेश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं. भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी है, हालांकि जब यह पता चलता है कि इस राष्ट्रीय खेल का बड़ा सितारा रह चुका एक खिलाड़ी एक छोटी सी दूकान में जूते बनाने का काम करने को मजबूर है तो दिल को बहुत चोट पहुंचती है. वे हिमाचल प्रदेश में जिला मुख्यालय हमीरपुर के मुख्य बाजार में जूतों की एक छोटी सी दुकान चलाकर जैसे तैसे गुजारा कर रहे हैं.

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सुभाष चंद उस उम्र में पहुंच चुके है जहां उनका सक्रिय रहकर हॉकी खेलना मुश्किल है हालांकि हालातों और समय के चलते उन्होंने हॉकी छोड़ दिया था. साथ ही खेल से उन्होंने अपने बच्चों को भी दूर ही रखा है. यह सरकार की बेरुखी का ही नतीजा है. हालांकि हाल ही में केंद्रीय खेल मंत्री बने अनुराग ठाकुर से सुभाष चंद को काफी उम्मीदें है.

बता दें कि, हमीरपुर से संबंध रखने वाले सुभाष चंद का हमीरपुर जिला ही हाल ही में केंद्रीय युवा सेवाएं एवं खेल मंत्री बने अनुराग ठाकुर का गृह जिला है. ऐसे में सुभाष के मुताबिक़, उन्हें अनुराग ठाकुर से उम्मीद की आस जगी है. जूते सिलकर अपनी रोजी-रोटी चला रहे सुभाष चंद का कहना है कि उनके बेटे के लिए कुछ न कुछ सरकार करेगी. बता दें कि, एक समय न ही सरकार ने सुभाष की मदद की और न ही उन्हें नौकरी मिली. इस दुविधा में उन्होंने पुश्तैनी काम (मोची की दुकान) ही संभालना पड़ा.

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