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विकास दुबे की बहु ख़ुशी दुबे का केस लड़ेगी मायावती की पार्टी, रिहाई के करेगी हर सम्भव कोशिश

यूपी में बसपा ख़ुशी दुबे को आगे करके जीतना चाह रही ब्राह्मण वोट। जानिए क्या है पूरा मामला...

कुर्सी की लड़ाई भी काफ़ी अजीब होती है। जिसके लिए कई बार राजनीति से जुड़े लोग सही-ग़लत का फ़ैसला नहीं कर पाते। अब ताज़ा मामला ही ले लीजिए। यूपी की राजनीति में बसपा काफ़ी समय से सिर्फ़ सत्ता से ही दूर नहीं है, बल्कि उसकी राजनीतिक हैसियत भी क्षीण हो गई है। ऐसे में अब बसपा सूबे में अपनी राजनीतिक जमीं बनाने के लिए किसी भी स्तर की राजनीति करने के लिए तत्पर नज़र आ रही है।

Khushi Dubey Kanpur Case

बता दें कि सूबे की सत्ता में वापसी को आतुर बसपा एक बार फिर ब्राह्मणों के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की जद्दोजहद में जुट गई है। जिसके लिए 23 जुलाई को अयोध्या में होने वाले ब्राह्मण सम्मेलन से पहले पार्टी नेता और पूर्व मंत्री नकुल दुबे ने ऐलान किया है कि ‘बिकरू कांड’ में आरोपी बनाई गई खुशी दुबे की रिहाई की लड़ाई बसपा लड़ेगी। मालूम हो कि खुशी दुबे कुख्यात विकास दुबे के भतीजे अमर की पत्नी है। बिकरू कांड के बाद पुलिस मुठभेड़ में दोनों ढेर कर दिए गए थे।

बसपा महासचिव सतीश मिश्र लड़ेंगे खुशी दुबे का केस…

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बता दें कि अयोध्या में ब्राह्मण सम्मेलन की तैयारियों को अंतिम रूप देने पहुंचे नकुल दुबे ने कहा कि बिकरू कांड के बाद खुशी पर हत्या और आपराधिक साजिश समेत आईपीसी की गंभीर धाराओं में मामला दर्ज किए जाने के बाद उसके परिजनों ने कानपुर देहात की विशेष अदालत में हलफनामा पेश कर दावा किया था कि वह नाबालिग है। उसके अधिवक्ता ने भी दलील दी थी कि बिकरू कांड से महज तीन दिन पहले उसकी अमर से शादी हुई थी। इसलिए साजिश में उसकी कोई भूमिका नहीं है। इसके बाद भी आठ जुलाई 2020 से जेल में बंद खुशी को जमानत नहीं मिली है। उन्होंने कहा कि वरिष्ठ वकील और बसपा महासचिव सतीश मिश्र खुशी का केस लड़ेंगे और उसकी रिहाई की मांग करेंगे।

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वही इसी मामले में खुशी दुबे के अधिवक्ता शिवकांत दीक्षित ने कहा है कि, ” मुझे किसी पार्टी विशेष में दिलचस्पी नहीं है। खुशी दुबे की रिहाई की लड़ाई में यदि कोई हमारा साथ देना चाहता है तो उसका स्वागत है।” हालांकि, मुझसे अभी तक किसी ने संपर्क नहीं किया है। साथ ही कहा कि किशोर न्याय बोर्ड ने खुशी के नाबालिग होने की पुष्टि कर दी है। इसके बाद भी उसे जमानत नहीं मिली है।

क्या है ख़ुशी दुबे से जुड़ा पूरा मामला…

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जनपद कानपुर नगर के चौबेपुर थाना अंतर्गत बिकरू गांव में 2 जुलाई 2020 को दबिश देने गई पुलिस पर कुख्यात अपराधी विकास दुबे ने अपने साथियों के साथ मिलकर ताबड़तोड़ गोलियां बरसा दी थी, जिसके चलते सीओ समेत आठ पुलिसकर्मी शहीद हो गए थे। इसके बाद यूपी पुलिस व एसटीएफ ने एक्शन मोड में आते हुए विकास दुबे समेत उसके कई साथियों को मुठभेड़ में मार गिराया था तो वहीं उसके सहयोगी व करीबियों पर भी पुलिस की गाज गिरी थी। इसी के चलते अमर दुबे की पत्नी खुशी दुबे को भी पुलिस द्वारा बिकरू कांड मामले में आरोपी बनाया था।

एक साल से जेल में बंद है खुशी…

Khushi Dubey Kanpur Case

गौरतलब है कि खुशी लगभग एक साल से जेल में बंद है। किशोर न्याय बोर्ड ने खुशी को नाबालिग घोषित किया था, लेकिन पुलिस ने उसके खिलाफ गंभीर धाराओं में चार्जशीट दाखिल की थी। अभियोजन ने कोर्ट में पक्ष रखते हुए कहा कि बाराबंकी के राजकीय बालिका गृह में बंद खुशी का व्यवहार सही नहीं है।

इलाहाबाद हाई कोर्ट खारिज कर चुका है जमानत याचिका…

Khushi Dubey Kanpur Case

बता दें कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गैंगस्टर विकास दुबे की बहू और बिकरु कांड में आरोपी खुशी दूबे की जमानत अर्जी खारिज कर दी है। 16 जुलाई को हुई सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए कहा कि 8 पुलिसकर्मियों की हत्या साधारण नहीं बल्कि एक जघन्य अपराध है। यह घटना समाज की अंतरात्मा को झकझोरने वाली है। आरोपी को जमानत देना न्याय और कानून में विश्वास रखने वालों को हिलाकर रख देने जैसा कदम होगा।

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ऐसे में याची के खिलाफ चार्जशीट में लगे आरोपों को देखते हुए जमानत नहीं दिया जा सकता है। वहीं, खुशी के वकील प्रभा शंकर मिश्रा ने कहा था कि न्याय की उम्मीद अभी खत्म नहीं हुई है। खुशी बेकसूर है। अभियोजन ने तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया है। हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की जाएगी। अब आप सोचिए हमारे देश की राजनीति किस स्तर की हो रही है।

एक तरफ़ हाइकोर्ट कह रहा कि आरोपी को ज़मानत देना मतलब न्याय व्यवस्था को हिला देने जैसा कृत्य होगा, लेकिन बसपा इसलिए ख़ुशी को छुड़ाने का प्रयास करेगी क्योंकि उससे ब्राह्मण वोट मिल सकता। वैसे अब वह समय नहीं कि आम आवाम सही-ग़लत न समझती हो। फ़िर बसपा चाहें जो कर लें। कितना भी ब्राह्मण समाज को रिझाने की कोशिश कर लें। वह तो वक्त बताएगा कि इससे उसे नफ़ा हुआ या नुक़सान, लेकिन कहीं न कहीं ऐसी रवायत देश के लिए सही नहीं। ग़लत को ग़लत कहना राजनीतिक दलों को सीखना चाहिए न कि कुर्सी की फ़िक्र हर समय होनी चाहिए।

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