अध्यात्म

महाभारत : ब्रह्मशिरा को चलाने की वजह से आज तक कृष्णा के श्राप की वजह से भटक रहा है अश्वत्थामा

ब्रह्मशिरा जिसे अज्ञानता वश अश्वत्थामा ने चलाया था, क्रोधित होकर कृष्ण ने दिया था श्राप

महाभारत सनातन धर्म के सबसे बड़े ग्रंथों में से एक है. महाभारत से हमें जीवन की कई सारी सीख सिखने को मिलती है. महाभारत में कई सारी चीजों का बखान मिलता है. महाभारत में जीवन का सार देखने को मिलता है. युधिष्टर के धर्म से लेकर पितामह भीष्म के ज्ञान तक. इसके अलावा भी इसमें कई सारी बातों को देखने को मिलता है. महाभारत में आपने कई अचूक शक्तियों के बारे में भी सुना होगा. इन्ही में से एक परमाणु बम की तरह ब्रह्मास्त्र एक अचूक अस्त्र है.

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यह अस्त्र अपने शत्रु पक्ष का नाश करके ही छोड़ता है. इसे दूसरा ब्रह्मास्त्र चलाकर ही रोका या खत्म किया जा सकता है, महाभारत में महर्षि वेदव्यास ने इसका प्रभाव कुछ इस तरह लिखा है कि जहां ब्रह्मास्त्र चलाया जाता है, वहां 12 सालों तक पर्जन्य वृष्टि (जीव-जंतु, पेड़-पौधे आदि की उत्पत्ति) नहीं हो पाती है. इस अस्त्र का प्रयोग रामायण काल में भी हुआ और महाभारत युद्ध में भी किया गया था. महाभारत के युद्ध में भी ब्रह्मास्त्र अर्जुन और अश्वत्थामा के अलावा केवल कर्ण चलाना ही जानता था. मगर अपने गुरु परशुराम के दिए हुए श्राप के कारण कर्ण खुद अंतिम समय में इसे चलाने की विद्या भूल गया था.

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इसी तरह एक दूसरा दिव्यास्त्र ब्रह्मशिरा था, यह भी ब्रह्मास्त्र की तरह ही महाविनाशक था, ब्रह्मशिरा मतलब की ब्रह्माजी का सिर. इसका प्रयोग करना मात्र केवल श्रीकृष्ण, गुरु द्रोण और अर्जुन ही अच्छे से जानते थे. लेकिन इसकी मामूली सी जानकारी रखने वाले अश्वत्थामा ने युद्ध के अंत में इसे गुस्से में आकर चला दिया था, इसके जवाब में अर्जुन ने भी अश्वत्थामा पर ब्रह्मशिरा का प्रयोग कर दिया था. दोनों के वार से तबाही शुरू हो गई तो ऋषि मुनियों ने अर्जुन और अश्वत्थामा को समझाया कि इन दो महाविनाशकारी अस्त्रों के आपस में टकराव होने से पृथ्वी पर प्रलय आ जाएगा.

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ऋषि मुनियों के कहने के बाद अर्जुन ने अपना दिव्यास्त्र तो वापस ले लिया, लेकिन अश्वत्थामा को ज्ञान नहीं होने के कारण वह ऐसा नहीं कर सका. ऐसे में उसने इसे अर्जुन की बहू उत्तरा के गर्भ की ओर मोड़ दिया था. इसकी वजह से उत्तरा के गर्भ में पल रहे शिशु की मौत हो गई. अश्वत्थामा के इस कृत्य से क्रोधित होकर कृष्ण आपे से बाहर हो गए और उसके माथे पर लगी मणि को भी निकाल लिया. कृष्ण ने उसे शाप दिया कि वह हजारों साल तक इस पाप को ढोता हुआ निर्जन स्थानों पर भटकता रहेगा. उसके माथे का घाव उसे निरंतर हमेशा कष्ट देता रहेगा और वह कभी ठीक नहीं होगा.

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कहानियों की माने तो तब से ही अश्वत्थामा उस कष्ट को भोगता हुआ धरती पर भटक रहा है. ऐसा भी माना जाता है कि वह कुरूक्षेत्र व अन्य तीर्थस्थलों पर भी देखा गया है. वहीं कुछ लोगों का मानना है कि इस श्राप के बाद वह रेगिस्तानी क्षेत्र में चला गया और वहीं रहने लगा. इस बारे में कुछ लोगों का मानना है कि अश्वत्थामा शिव का भक्त है और वह उनके मंदिरों में पूजन करने जाता है. इस प्रकार महान शिक्षक का पुत्र अश्वत्थामा ज्ञानी, योद्धा और वीर होने के बावजूद मौत के लिए भटक रहा है.

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