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जूता मरम्मत करने वाले का बेटा कैसे बना 100 करोड़ रुपए की कंपनी का मालिक। पढ़ें सक्सेस स्टोरी…

अमीर बनने का अगर देखते हैं सपना तो जूता बनाने वाले के इस बेटे से सीखें पैसा कमाने का हुनर...

(Harikishan Pippal) हमारे समाज में ऐसे कई लोग होते हैं। जो ग़रीबी को हराकर अमीर बनने का सपना तो देखते हैं, लेकिन उनकी एक दुःखती रग होती है कि वह अमीर बनें कैसे? वह सदैव इसी उधेड़बुन में जीते है कि वे ग़रीब है। उनके पास पैसे नहीं है। फिर अमीर कैसे बन पाएंगे? अमीर बनने के लिए तो कुछ न कुछ पैसे होने चाहिए, क्योंकि आज़कल की तो कहावत है कि पैसा ही पैसे को कमाता है। तो चलिए हम आपको एक ऐसे शख़्स से रूबरू कराते हैं, जिसने अभावों से जिंदगी शुरू करके करोड़ो की कंपनी खड़ी की है। उनके जीवन से कुछ सीख कर आप भी अमीर बनने का सपना देख सकते है।

Success Story Of Harikishan

जी हां हम बात कर रहें हैं हरिकिशन पिप्पल (Harikishan Pippal) की। जिन्हें भी ग़रीबी से अमीरी की तरफ़ बढ़ना है, उन्हें इस शख्सियत से काफ़ी कुछ सीखना चाहिए। बता दें कि इनका जन्म यूपी के आगरा में एक बेहद ही गरीब परिवार में हुआ था। ग़रीबी में पैदा हुआ यह इंसान आज जिस मुकाम पर है, वो समाज के लिए मिसाल है। हरिकिशन एक वक्त में रिक्शा चलाकर जीवन गुजारने के लिए मज़बूर थे, मगर आज वो एक कामयाब उद्यमी हैं।

Success Story Of Harikishan

वैसे भी कहते हैं कि समय बदलते देर नहीं लगता। बस हमें विश्वास होना चाहिए तो सिर्फ़ अपने कर्मों पर। मालूम हो कि हरिकिशन का जन्म जिस घर में हुआ, वहां दो वक्त की रोटी का जुगाड़ मुश्किल से होता था। पिता एक छोटी सी जूता मरम्मत की दुकान चलाकर जैसे-तैसे घर चलाते थे। इसका सीधा असर हरिकिशन(Harikishan Pippal) के जीवन पर भी पड़ा और वो छोटी उम्र में ही मेहनत-मजदूरी के लिए मजबूर हो गए। वहीं इन सबके बीच एक अच्छी बात यह रही कि हरिकिशन(Harikishan Pippal) ने अपनी पढ़ाई जारी रखी। शायद उन्हें इस बात का अंदाजा था कि गरीबी को शिक्षा के जरिए ही हराया जा सकता है।

धीरे-धीरे वो आगे बढ़ रहे थे, तभी उनके पिता अचानक गंभीर रूप से बीमार पड़ गए और उनकी दुकान बंद हो गई। अब परिवार चलाने की जिम्मेदारी सीधे हरिकिशन के कंधों पर आ गई। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करें और कैसे करें? एक तरफ़ घर चलाने की जिम्मेदारी आन पड़ी है तो दूसरी तरफ़ पढ़ाई भी जारी रखनी है। दुर्भाग्य देखिए कि उस दौरान कोई भी उन्हें काम देने को भी तैयार नहीं था। ऐसे में उन्होंने एक रिश्तेदार की मदद से किराए पर साइकिल रिक्शा लिया और उसे चलाना शुरू कर दिया। यह सिलसिला कुछ महीनों तक चला।

फिर एक समय ऐसा आया कि पिता के निधन के बाद हरिकिशन की मां ने उनकी शादी करा दी। हरिकिशन के लिए यह कठिन समय था। घर चलाने के लिए उन्हें अधिक पैसे चाहिए थे। जिसके लिए उन्होंने 80 रुपए की सैलरी पर आगरा की एक फैक्ट्री में मजदूरी शुरू कर दी। कुछ सालों बाद उन्होंने हिम्मत दिखाई और 1975 में बैंक से लोन लेकर अपनी पुश्तैनी दुकान फिर से खोली। हालांकि कुछ समय बाद पारिवारिक विवादों के चलते उन्हें घर छोड़ना पड़ा। हरिकिशन का घर छोड़ना ही उनके लिए टर्निंग पॉइंट साबित हुआ और घर छोड़ने के बाद हरिकिशन ने एक बार फिर से हिम्मत दिखाई और जूते बनाने शुरू किए।

जूते बनाने का उनका काम चल ही रहा था कि उनका यह कार्य एक कंपनी को बहुत अच्छा लगा। जिसकी वज़ह से उन्हें 10 हज़ार जोड़ी जूता बनाने का ऑर्डर मिला। बता दें कि उन्हें 10 हज़ार जूते बनाने का आर्डर स्टेट ट्रेडिंग कार्पोरेशन ने दिया था। फिर क्या था 10 हज़ार जूते बनाने का आर्डर मिलते ही फिर उन्होंने इसके बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आगे उन्होंने ‘हेरिक्सन’ नाम से अपना खुद का जूता ब्रांड लांच किया और मार्केट में छा गए। काम बढ़ा तो उन्होंने पीपल्स एक्स्पोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड नाम से अपनी कंपनी खोल ली। जूता व्यापार में सफलता के बाद उन्होंने रेस्टोरेंट के बिजनेस में अपनी किस्मत आजमाई और वहां भी सफल रहे। हरिकिशन यही नहीं रुके उन्होंने हेल्थकेयर सेक्टर में भी काम किया और नाम कमाया।

इस तरह अपनी काबिलियत से उन्होंने कई क्षेत्रों में कामयाबी के झंडे बुलन्द किए। मौजूदा समय में वो 100 करोड़ से अधिक का व्यापार करते हैं। ऐसे में हम आशा करते है कि आज से क्या? आप अभी से पैसे न होने का रोना बंद करेंगे और जीवन में आगे बढ़ने की कोशिश करेंगे, क्योंकि गीता में भी कहा गया है कि पहले कर्म करें फल की इच्छा मत करें। यह प्रेरणादायक कहानी अगर आपको थोड़ा सा भी प्रेरित करने में सफ़ल रही हो तो इसे अपने दोस्तों के बीच भी शेयर करें ताकि वह भी इसे पढ़ सकें।

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