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असम में अब सरकारी योजनाओं का लाभ तभी जब हम दो हमारे दो की नीति का होगा अनुसरण…

'बच्चे दो ही अच्छे' सोच वालों को ही सरकारी सुविधाएं, असम-यूपी में बनने जा रहा है कानून

हम दो, हमारे दो। बच्चें दो ही अच्छे। ऐसे कई परिवार नियोजन से जुड़े नारे (स्लोगन) हम सबने सुने है। अब इसी स्लोगन को आधार बनाने के लिए क़ानूनी प्रावधान के लिए असम सरकार आगे बढ़ती दिख रही है। जी हां हम दो, हमारे दो। बच्चे दो ही अच्छे। ऐसी सोच रखने वालों के लिए असम में आने वाले दिनों में जिंदगी की राह आसान होगी। असम की हेमंत विस्वा सरमा सरकार इस तरफ़ आगे बढ़ रही है कि सरकारी योजनाओं का लाभ अब उन्हीं लोगों को दिया जाएगा, जो दो बच्चों की नीति का पालन करेंगे।

family planning

असम के मुख्यमंत्री हेमंत विस्वा सरमा ने शनिवार को कहा कि राज्य सरकार कुछ विशेष सरकारी योजनाओं का लाभ देने में दो बच्चे की नीति लागू करेगी। यह काम क्रमवार तरीके से किया जाएगा। संवाददाताओं से बात करते हुए असम के मुख्यमंत्री ने कहा कि, “प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण नीति को असम की सभी योजनाओं में तुरंत लागू नहीं किया जाएगा, क्योंकि कई योजनाएं केंद्र की मदद से चलाई जा रही हैं।” उन्होंने कहा, कुछ योजनाओं में हम दो बच्चा नीति को लागू नहीं कर सकते। जैसे-स्कूलों और कालेजों में मुफ्त नामांकन या प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान देने में इसे लागू नहीं किया जा सकता। लेकिन, यदि राज्य सरकार की ओर से कोई आवास योजना लागू की जाती है तो उसमें दो बच्चा नीति को लागू किया जा सकता है। आगे चलकर धीरे-धीरे जनसंख्या नीति को राज्य सरकार की हर योजना में लागू किया जाएगा।

इतना ही नहीं दो बच्चा नीति पर बात करते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सरमा (Chief Minister Himanta Biswa Sarma) ने अपने माता-पिता के परिवार के आकार को निशाना बनाए जाने को लेकर विपक्ष की कटु आलोचना की। मालूम हो कि सरमा (Himanta Biswa Sarma) पांच भाई हैं। सरमा ने कहा कि सन 1970 के दशक में हमारे माता-पिता या दूसरे लोगों ने क्या किया मौजूदा वक्‍त इस पर बात करने का नहीं है। विपक्ष हमें 70 के दशक में ले जाना चाहती है, जो ठीक नहीं है। बता दें कि सरमा ने 10 जून को अल्पसंख्यक समुदाय से गरीबी को कम करने के लिए जनसंख्या नियंत्रण को लेकर परिवार नियोजन नीति अपनाने की अपील की थी। उस दौरान सरमा ने बड़े परिवारों के लिए प्रवासी मुस्लिम समुदाय पर दोष मढ़ा था। इस पर तीखी प्रतिक्रिया सामने आई थी। जिसके बाद अब शनिवार को फ़िर से दो बच्चा नीति को लेकर असम सरकार ने अपनी बात रखी है।

मुस्लिम समुदाय पर दोष मढ़ा…

सरमा ने बड़े परिवारों के लिए प्रवासी मुस्लिम समुदाय पर दोष मढ़ा था, जिस पर एआईयूडीएफ समेत विभिन्न हलकों से तीखी प्रतिक्रिया आई थी। असम में 2018 में असम पंचायत कानून, 1994 में किए गए संशोधन के अनुसार पंचायत चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यता और चालू अवस्था में शौचालय के साथ-साथ दो बच्चों का मानदंड है। सरमा ने यह भी कहा कि ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) के प्रमुख और सांसद बदरुद्दीन अजमल ने महिला शिक्षा को दी जा रही अहमियत की सराहना की है, जिसका संबंध जनसंख्या नियंत्रण के साथ है। उन्होंने कहा, “बदरुद्दीन अजमल ने मुझसे मुलाकात की। उन्होंने महिला शिक्षा को हमारी तरफ से दिए जा रहे महत्व की सराहना की।”

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वहीं ध्यान रहें कि उत्तर प्रदेश की योगी सरकार भी दो बच्चा नीति लागू करने की दिशा में मंथन कर रही है। जिसके लिए उत्तर प्रदेश विधि आयोग फिलहाल राजस्थान व मध्य प्रदेश समेत कुछ अन्य राज्यों में लागू कानूनों के साथ सामाजिक परिस्थितियों व अन्य बिंदुओं पर अध्ययन कर रहा है। जल्द वह अपना प्रतिवेदन तैयार कर राज्य सरकार को सौंपेगा। मालूम हो कि योगी सरकार ने पिछले चार वर्षों में कई नए क़ानूनों को अमलीजामा पहनाया है। जिसमें ‘उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अधिनियम’ व ‘उत्तर प्रदेश लोक तथा निजी संपत्ति क्षति वसूली अधिनियम’ समेत कई नए कानून शामिल हैं। वहीं कई अहम कानूनों में बदलाव की रूपरेखा तैयार की जा चुकी है। इसी कड़ी में अब विधि आयोग ने जनसंख्या नियंत्रण के बड़े मुद्दे पर अपना काम शुरू किया है। इसके तहत सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हीं लोगों को मिलेगा, जिनके दो या दो से कम बच्चे हैं।

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उत्तरप्रदेश सूबे में इस कानून के दायरे में अभिभावकों को किस समय सीमा के तहत लाया जाएगा और उनके लिए सरकारी सुविधाओं के अलावा सरकारी नौकरी में क्या व्यवस्था होगी, ऐसे कई बिंदु भी बेहद अहम होंगे। आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति एएन मित्तल का कहना है कि, “जनसंख्या नियंत्रण को लेकर राजस्थान व मध्य प्रदेश में लागू कानूनों का अध्ययन शुरू कर किया गया है। बेरोजगारी व भुखमरी समेत अन्य पहलुओं को ध्यान में रखकर विभिन्न बिंदुओं पर विचार के आधार पर प्रतिवेदन तैयार किया जाएगा।” ऐसे में अगर इन दो राज्यों में यह नीति पूर्ण रूप से प्रभावी होती है। तो यह कई मायनों में एक बेहतर पहल होगी। वहीं इस बात का ख़्याल भी क़ानून बनने के साथ रखना पड़ेगा और गहन पड़ताल करनी होगी कि क्या जिन राज्यों में दो बच्चा नीति लागू है। उसका पालन सही से हो रहा या नहीं? सिर्फ़ नियम बनने से कुछ नही बदलता जब तक उसका सटीक तरीक़े से क्रियान्वयन न हो। ऐसे में नियम बनने के साथ उसका सही से क्रियान्वयन होना बहुत जरूरी होता है। जनसंख्या नियंत्रण वैसे भी वक्त की दरकार है। जिस तरफ़ समूचे देश को सोचना चाहिए। वैसे दो बच्चे की नीति अभी तक कई राज्यों में लागू हो चुकी है या वहां उसको लेकर घोषणा होती रहती है, लेकिन क्या इसे पूर्ण रूप से लागू किया गया और इसके क्या परिणाम निकलकर आएं आंकलन तो इसका भी होना चाहिए।

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