राजनीति

बादल और मायावती का 25 वर्ष बाद हुआ गठबंधन, क्या कैप्टन होंगे 2022 में सत्ता से बेदख़ल

दलित और पिछड़ों के सहारे क्या पार होगी अकाली दल की नैया, जानिए क्या है पूरी ख़बर....

भले ही इस बार मॉनसून समय से पहले दस्तक़ देश के कई हिस्सों में दे चुका हो, लेकिन वहीं राजनीतिक सरगर्मियां देश के अलग-अलग हिस्सों में पारा बढ़ा रही हैं। उत्तर प्रदेश से लेकर पश्चिम बंगाल तक, मध्यप्रदेश से लेकर पंजाब तक राजनीतिक उथल-पुथल का दौर चल रहा है। इसी बीच यह ख़बर निकलकर आ रही है कि 2022 की नैय्या अकाली दल अब दलित-पिछड़ो के भरोसे पार लगाने की जुगत में लग गई है।

जी हां पंजाब की सियासत इस समय पूरे देश को अपनी ओर खींच रही है। राज्य में सियासी घटनाक्रम लगातार बदल रहे हैं। कांग्रेस की अंदरूनी कलह पूरी तरह समाप्त भी नहीं हुई थी कि अब अकाली दल ने एक नया सियासी दांव चलकर सभी को चौंका दिया। दशकों तक हिंदुत्ववादी पार्टी के साथ चुनाव लड़ने वाली पार्टी अचानक से बसपा के साथ गठबंधन कर सियासी गलियारों में एक नई सुगबुगाहट पैदा कर दी है। अगामी चुनावों को देखते हुए प्रकाश सिंह बादल और उनके बेटे सुखबीर सिंह बादल ने मायावती से हाथ मिलाकर राज्य के पिछड़े और दलित वोटों पर अपना कब्जा जमाने की तैयारी शुरू कर दी है।

sukhbir badal mayawati

इसी के अंतर्गत अकाली दल नेता सुखबीर सिंह बादल ने ऐलान करते हुए कहा कि शिरोमणि अकाली दल और बसपा ने गठबंधन किया है और 2022 में दोनों पंजाब विधानसभा चुनाव एक साथ लड़ेंगे। शिरोमणि अकाली दल के मुखिया सुखबीर सिंह बादल ने इस अवसर पर कहा कि, “पंजाब की राजनीति में यह एक नया दिन है, शिरोमणि अकाली दल (शिअद) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) 2022 पंजाब विधानसभा चुनाव और भविष्य के चुनाव एक साथ लड़ेंगे। राज्य की 117 विधानसभा सीटों में से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) 20 सीटों पर और शिरोमणि अकाली दल (शिअद) शेष 97 सीटों पर चुनाव लड़ेगी।”


इस गठबंधन को लेकर बसपा की तरफ़ से भी बयान जारी किया गया है। बसपा सांसद सतीश चंद्र मिश्रा ने कहा कि, “यह एक ऐतिहासिक दिन है क्योंकि शिरोमणि अकाली दल (शिअद) के साथ गठबंधन किया गया है, जो पंजाब की सबसे बड़ी पार्टी है। 1996 में बसपा और शिअद दोनों ने संयुक्त रूप से लोकसभा चुनाव लड़ा और 13 में से 11 सीटों पर जीत हासिल की थी। इस बार गठबंधन नहीं टूटेगा। हम कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार और घोटालों को खत्म करने के लिए काम करेंगे। वर्तमान सरकार दलित और किसान विरोधी है, जबकि हम सबके कल्याण और विकास के लिए काम करेंगे।”

पंजाब का जातीय समीकरण…

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बता दें कि पंजाब के राज्य का हिस्सा तीन भागों में बंटा है. माझा , मालवा और दोआब। इन इलाकों में सभी प्रमुख जिले आते हैं। माझा में अमृतसर, पठानकोट, गुरदासपुर और तरनतारण जिले आते हैं। वहीं मालवा में जालंधर, पटियाला, मोहाली, भठिंडा, बरनाला, कपूरथला आदि जिले अहम हैं। दोआब में फिरोजपुर, फाजिल्का, मानसा, रूपनगर, लुधियाना, पटियाला, मोहाली, बरनाला जिले अहम हैं। पंजाब में कुल कुल 57.69 फीसदी सिख, 38.59 फीसदी हिंदू, 1.9 फीसदी मुस्लिम, 1.3 ईसाई, अन्य में जैन और बुद्ध आदि हैं। मालूम हो कि 22 जिलों में से 18 जिलों में सिख बहुसंख्यक हैं। पंजाब में लगभग दो करोड़ वोटर हैं।

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देश में सबसे ज्यादा 32 फीसदी दलित आबादी पंजाब में रहती है। जो राजनीतिक दशा और दिशा बदलने की पूरी ताकत रखती है। पंजाब का यह वर्ग पूरी तरह कभी किसी पार्टी के साथ नहीं रहा है। दलित वोट आमतौर पर कांग्रेस और अकाली के बीच बंटता रहा है। हालांकि, बीएसपी ने इसमें सेंध लगाने की कोशिश की, लेकिन उसे भी एकतरफा समर्थन नहीं मिला। वहीं आम आदमी पार्टी ने भी पंजाब में दलित वोटों को साधने के लिए तमाम कोशिश की लेकिन वह फायदा उसे भी नहीं मिला, जिसका उसे अंदाज़ा था। वैसे मायावती और प्रकाश सिंह बादल का रजत जयंती के अवसर पर फिर से मिलन हुआ है, इसका पंजाब को क्या फायदा पहुंचेगा। यह तो भविष्य के गर्भ में है, लेकिन एक बात तय है कि देश में राजनीतिक आबो हवा तेज़ी से बदल रही है।

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