अध्यात्म

इस एक गलती की वजह से दुर्योधन ने कर दिया था अपने पूरे कुल का सम्पूर्ण विनाश

कहते हैं आप जैसा कर्म करेंगे फल भी आपको वैसा ही मिलेगा। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो जीवन में अच्छे फल की कामना तो करते हैं, लेकिन उसके अनुसार अच्छे कर्म नहीं करते हैं। बुरे कर्म करने के बावजूद वे पुण्य कर्मों के फल की आस रखते हैं। सोचते हैं कि हमारे जीवन में कभी दुख न आए। लेकिन बुरे और पाप कर्म करने वालों को दुख जकड़ ही लेता है। फिर आप चाहे अपने बुरे कार्य को कितना भी गुप्त रख लें ऊपर वाले की नजर से बच नहीं पाते हैं।

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ऐसे अज्ञानी लोग इस बात से अनजान होते हैं कि हमारे शरीर में मौजूद आत्मा में ही एक परमात्मा का हिस्सा होता है। इस तरह उससे आप कुछ भी छिपा नहीं सकते हैं। वह आत्मा रूपी परमात्मा आपके सभी विचारों, संकल्पों, वाणी और शरीर के सभी कार्यों को साक्षात देख रही है। इस आत्मा के माध्यम से परमात्मा तक हमारे सभी अच्छे बुरे कर्मों की खबर चली जाती है। फिर वह इसी के हिसाब से हमे हमारे कर्मों का फल देता है।

गीता में भगवान ने कहा है ‘हे अर्जुन! ईश्वर संपूर्ण प्राणियों के हृदय में रहता है।’ ये जो मनुष्य योनि होती है उसका अपने कर्मों से गहरा संबंध होता है। इंसान धरती पर जन्मा है तो वह कर्म जरूर करेगा। उसका कोई भी कर्म न करना असंभव है। वह कर्मों के जरिए अपनी खवाहिशों को हासिल करता है। गीता में भगवान ने ये भी सलाह दी है कि आपको शास्त्रविहित कर्तव्य कर्म करना चाहिए। कर्म न करने की बजाय कर्म करना उत्तम है। फिर कर्म न करे बिना शरीर निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा।

कोई भी मनुष्य कर्म करने के लिए पूर्ण रूप से आजाद है। अब बात यहां पर आकर नया मौड़ लेती है कि वह अच्छे कर्म कर रहा है या बुरे। इन कर्मों के आधार पर ही उसका स्वभाव तय होने लगता है। वह अपने कर्मों के हिसाब से उसकी टाइप के लोगों से मिलना जुलना शुरू कर देता है। इस तरह आपका स्वभाव और आपके कर्म एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। जैसा आपका स्वभाव होगा वैसा ही आपका व्यवहार होगा। उदाहरण के लिए चंदन को जितना भी घिस लो वह अपनी शीतलता नहीं छोड़ता है। वहीं कस्तूरी यदि पूरी तरह से कीचड़ में लथपथ हो तो भी अपनी सुगंध नहीं छोड़ती है।

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इंसान ये भूल जाता है कि कर्मों की गति बहुत सूक्ष्म होती है। इसलिए अच्छे से विचार करने के बाद ही अच्छे या बुरे कर्म करने चाहिए। आप छोटा काम करे या बड़ा उसे अपनी बुद्धि, विनम्रता और युक्तिपूर्वक से पूर्ण करें। अभिमान और ईर्ष्यापूर्वक को आसपास भी न फटकने दें। वरना आपका हाल ही वही होगा जो अभिमानी दुर्योधन का हुआ था। दुर्योधन को अभिमान भी था और वह पांडवों से ईर्ष्या भी रखता था। फिर इसका नतीजा ये हुआ कि उसने अपने संपूर्ण कुल को ही नष्ट कर दिया।

इसलिए अपने कर्म सोच समझकर करें। अच्छा कर्म आपको सुख जबकि बुरा कर्म दुख देगा। गीता में भगवान ने कहा भी है ‘योग: कर्मसु कौशलम’ अर्थात कर्म को कुशलतापूर्वक करना योग है। एक बुद्धिमान व्यक्ति आदरपूर्वक शुभ कर्म करता है। वह शरीर, मन और वाणी से दूसरों का कल्याण करने के बारे में सोचता है।

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