राजनीति

चीन के सबसे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट का हिस्सा नहीं बना भारत, चीन को सुनाई खरी खरी!

चीन के अति-महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट बेल्ट एंड रोड फोरम की बैठक में भारत ने हिस्सा नहीं लिया. भारत इसका खुले तौर पर विरोध कर रहा है, भारत ने पहले ही कहा था कि यह भारत की संप्रभुता और भूभागीय एकता के लिए खतरा है. आपको बता दें कि चीन के इस प्रोजेक्ट के उद्घाटन समारोह में 29 देशों ने हिस्सा लिया है, जिसमें रूस, अमेरिका, जापान, ब्रिटेन, जर्मनी और फ्रांस सहित कई देश शामिल हैं.

भारत ने समारोह में नहीं हिस्सा लिया :

इस समारोह में हिस्सा नहीं लेने के सम्बन्ध में भारत ने पहले ही घोषणा कर दी थी. उद्घाटन समारोह में चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने संबोधित किया. समारोह में एक भी भारतीय प्रतिनिधि नजर नहीं आया. इसपर भारतीय विदेश मंत्रालय ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कोई भी देश ऐसी किसी भी परियोजना को स्वीकार या समर्थन नहीं करेगा. जिसमें उसकी संप्रभुता और भूभागीय एकता संबंधी प्रमुख चिंताओं की उपेक्षा की गई हो.

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गोपाल बागले ने बयान जारी करके कहा कि किसी भी संपर्क संबंधी पहल को इस लिहाज से आगे बढाया जाना चाहिए जिससे सभी राष्ट्रों की संप्रभुता और भूभागीय एकता का सम्मान हो. बागले ने कहा कि हम ऐसी परियोजना पर चीन से एक सार्थक बातचीत करने का अनुरोध करते हैं. हमें चीन की तरफ से सकारात्मक प्रतिक्रिया का इन्तजार है.

आपको बता दें कि चीन पहले वन बेल्ट वन रोड नाम की परियोजना में भारत को अपना हिस्सेदार बनाना चाहता था, मगर भारत इसे अपनी संप्रभुता और भूभागीय एकता के लिए खतरा मानता है, भारत इस मुद्दे पर चीन से बातचीत करके सकारात्मक पहल करना चाहता है मगर चीन ने अब इसका नाम बदल कर बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव कर दिया है.

चीन का यह प्रोजेक्ट भारतीय हितों की अनदेखी करके तैयार किया जा रहा है इसलिए भारत इसका विरोध कर रहे है, चूंकि यह एक बेहद महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट है और इसके जरिये चीन विश्व के बहुत बड़े हिस्से तक अपनी पहुंच बना लेगा जिससे वह कभी भी किसी देश के लिए खतरा साबित हो सकता है.

आपको बता दें कि बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव की बैठक में भारत ने हिस्सा नहीं लिया वहां पहुंचे कुछ भारतीय शोधार्थियों के अनुसार बैठक में कोई भारतीय प्रतिनिधिमंडल नजर नहीं आया, जहां यह आयोजन किया गया वहां पत्रकारों और मीडिया के जाने की भी अनुमति नहीं थी. यह प्रोजेक्ट दक्षिण एशियाई देशों में चीन की पहुंच और पकड़ को मजबूत करने में बेहद कारगर साबित होगा.

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