बॉलीवुड

कभी 50 रुपये कमाने वाला कैसे बना बॉलीवुड का सबसे बड़ा खलनायक, ऐसी है ‘प्राण’ की कहानी

हिंदी सिनेमा के दिग्गज़ अभिनेताओं में प्राण का नाम बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है. प्राण बॉलीवुड के सबसे सफ़ल खलनायकों में से एक रहे हैं. प्राण ने हिंदी सिनेमा की कई सुपरहिट फिल्मों में यादगार किरदार अदा किए हैं. आज प्राण हमारे बीच तो नहीं है, हालांकि वे अपने काम से आज भी याद किए जाते हैं. आइए आज आपको प्राण से जुड़ी कुछ ख़ास बातो के बारे में बताते हैं…

प्राण का जन्म 12 फरवरी 1920 को दिल्ली में हुआ था. बॉलीवुड में प्राण ने करीब 6 दशक तक राज किया है. अपने इतने लंबे बॉलीवुड करियर में प्राण ने साढ़े तीन सौ से ज्यादा फिल्मों में काम किया है. उनके कई डायलॉग बहुत मशहूर रहे हैं जो आज भी लोगों की जुबान पर चढ़े रहते हैं.

अमिताभ बच्चन की साल 1973 में आई सुपरहिट फ़िल्म ‘जंजीर’ में बोला गया डायलॉग ”इस इलाके में नए आए हो बरखुर्दार, वरना यहां शेर खान को कौन नहीं जानता…’ उनकी पहचान बन गया था. वहीं उपकार फिल्म में ‘ये पाप की नगरी है यहां कंस और दुर्योधन का ठिकाना है’, ‘राम ने हर युग में जन्म लिया लेकिन लक्ष्मण फिर पैदा नहीं हुआ’, ’भारत तू दुनिया की छोड़ पहले अपनी सोच’, ‘लाशें जो खरीदा करते हैं, वो कौन बड़ा व्यापारी है’, ‘आसमान पे उड़ने वाले मिट्टी में मिल जाएंगे, ’राशन पर भाषण बहुत है, भाषण पर कोई राशन नहीं’, ‘सिर्फ ये जब भी बोलता हूं ज्यादा ही बोलता हूं, समझे…’ जैसे डायलॉग्स ख़ूब मशहूर हुए.

वहीं फ़िल्म शीश महल में ‘मैं भी पुराना चिड़ीमार हूं पर कतरना अच्छी तरह से जानता हूं.’ शहीद फिल्म में ‘ओय भगतसिंह, ये भारत माता की होंदी है मैंने इतने खून कित्ते भगतसिंह.’ कश्मीर की कली पिक्चर में ‘शता ले-शता ले मेरा भी समय आएगा.’ एक अन्य मशहूर पिक्चर जिस देश में गंगा रहता है में ‘सरदार मैं फिर कहता हूं ये पुलिस का आदमी है’, ‘तेरा बाप राका.’ धर्मा फिल्म में ‘कालाय तस्मे नम:’ और अराउंड दि वर्ल्ड में टोक्यो में रहते हो पर टोकने की आदत नहीं गई.’ जैसे डायलॉग्स बोलकर उन्होंने अपने किरदार को जीवंत कर दिया.


बॉलीवुड में कदम रखने से पहले प्राण दिल्ली की एक कंपनी में एक फोटोग्राफर के असिस्टेंट के रूप में काम करते थे. इस काम के लिए प्राण को 50 रुपये दिए जाते थे. एक बार कंपनी ने किसी काम के सिलसिले में प्राण को अपने लाहौर स्थित कार्यालय भेजा था. यहां एक दिन पान की दुकान पर लेखक वली मोहम्मद से प्राण का मिलना हुआ. वली उस समय पंजाबी फ़िल्म ‘यमला जट’ बना रहे थे, वली ने प्राण को देखा तो फ़िल्म के एक कैरेक्टर की झलक उन्हें उनमें दिखाई दी और उन्होंने प्राण को अपनी फिल्म में काम करने का प्रस्ताव दे दिया. बाद में प्राण ने खलनायक के रूप में इस फ़िल्म में काम करना स्वीकार किया और उनके फ़िल्मी करियर की शुरुआत हो गई.

प्राण अपने तकिया कलाम ‘बरखुर्दार’ को लेकर भी ख्होब लोकप्रिय हुए. उन्होंने कई फिल्मों में अपने तकिया कलमा ‘बरखुर्दार’ को बोला. प्राण की खलनायकी इतनी कमाल की और रोंगटे खड़े रहने वाली रही है कि एक किस्सा यह भी प्रसिद्ध है कि, उनके जमाने में कोई भी मां अपने बेटे का नाम ‘प्राण’ नहीं रखती थी.

प्राण साहब ने कश्मीर की कली’, ‘खानदान’, ‘औरत’, ‘बड़ी बहन’, ‘जिस देश में गंगा बहती है’, ‘हाफ टिकट’, ‘उपकार’, ‘पूरब और पश्चिम’, ‘जंजीर’, ‘चक्कर पर चक्कर’, ‘कालिया’, ‘राजतिलक’, ‘सीतापुर की गीता’, ‘तूफान’ और ‘डॉन’ जैसी कई शानदार फिल्मों में काम किया है. तीन बार सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार और साल 1997 में फिल्मफेयर के लाइफटाइम अचीवमेंट पुरस्कार से नवाजे जाने वाले प्राण ने 12 जुलाई 2013 को ‘प्राण’ त्याग दिए थे.

source

https://www.amarujala.com/photo-gallery/entertainment/bollywood/bollywood-most-famous-and-danger-villain-pran-iconic-dialogues-in-don-zanjeer-and-amar-akbar-anthony?fbclid=IwAR3Uat4u2ShTJENJFpyUt9qDqrBVLrsNL6yGKdFRDIszVLfIX31ogRYAocg

Back to top button