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28 कैंसर पेशेंट बच्चों का सहारा बनीं गीता श्रीधर, मां बन कर दिन-रात कर रही हैं सेवा

आजकल के समय में ऐसे बहुत से लोग हैं जो किसी ना किसी बीमारी के चलते परेशान रहते हैं। वैसे तो सभी बीमारियां बेहद खतरनाक होती हैं परंतु कैंसर की बीमारी जानलेवा बीमारी मानी जाती है। अगर इसके बारे में प्रारंभिक अवस्था में पता लग जाए तो यह ठीक हो सकता है परंतु जैसे-जैसे यह समस्या बढ़ती जाती है वैसे वैसे यह काफी गंभीर हो जाती है और इससे निपटना बेहद कठिन हो जाता है।

देशभर में ऐसे बहुत से लोग हैं जो कैंसर से पीड़ित हैं और यह अपना इलाज कराने में सक्षम नहीं है परंतु ऐसा नहीं है कि इन लोगों की मदद के लिए लोग सामने नहीं आते हैं। आज हम आपको गीता श्रीधर के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं, जिन्होंने अपना जीवन लोगों की सेवा में न्योछावर कर दिया है। मुंबई में रहने वाली गीता श्रीधर बच्चों को पढ़ाती थी परंतु इस दौरान उनके पिताजी की तबीयत बिगड़ने लगी।

जब गीता को उनके पिता की तबीयत खराब होने की खबर मिली और तो उन्हें आनन-फानन में तमिलनाडु स्थित अपने गांव जाना पड़ा। वह दिन गीता के जीवन के सबसे निराश दिन थे। गीता ने अपने पिता को अपनी आंखों के सामने कैंसर से हारते हुए देखा था। उन दिनों को याद करते हुए गीता बताती हैं कि “सिर्फ 20 दिनों में सब कुछ हो गया। बीमारी का पता लगना और मेरे पिता का हमें छोड़ कर चले जाना। वह बहुत अच्छे इंसान थे। उन्होंने कभी किसी को दुख नहीं पहुंचाया।”

गीता श्रीधर पिता के देहांत के बाद वापस मुंबई लौट आईं। पिता के देहांत के बाद गीता लोगों की सेवा में लग गईं। बाद में गीता एक डॉक्टर के साथ पुणे के एक अनाथ आश्रम में गईं। तब गीता श्रीधर ने वहां कैंसर से जूझ रहे बच्चों की सेवा करने की ठान ली। उन्होंने देखा कि 2 से 5 साल के बच्चे कैंसर से जूझ रहे थे। गीता श्रीधर को लगा कि इन बच्चों को आर्थिक मदद से ज्यादा इन्हें एक साथ की आवश्यकता है। इसी वजह से गीता ने इन बच्चों की देखभाल करने की सोची। और अपने साथ 28 बच्चों को लेकर मुंबई आ गईं और एक फ्लैट में इनको ठहराया।

गीता जिन 28 बच्चों को आश्रम से अपने साथ लेकर आई थीं उनकी देखभाल के लिए उन्होंने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। कैंसर से पीड़ित होने की वजह से इन बच्चों को तेज और हैवी डोज मिलती है। गीता इन बच्चों को मां से भी अधिक प्यार करती हैं। इन बच्चों के इलाज के लिए उन्होंने अपनी सारी जमा पूंजी खर्च कर दी। इस मुश्किल समय में गीता की सहायता के लिए उनके कई दोस्तों ने भी मदद का हाथ बढ़ाया।

गीता 24 घंटे इन बच्चों की दिन-रात सेवा करती हैं और उन्हें किसी भी चीज की कमी नहीं होने देती हैं। 12 साल से गीता इन बच्चों की सेवा कर रही हैं। इन बच्चों का हर मुश्किल में गीता ने साथ दिया। आज वही बच्चे उन्हें गीतू मां के नाम से पुकारते हैं।

आपको बता दें कि गीता श्रीधर एक अच्छी कुक भी हैं और वह एक फूड बैंक भी चलाती हैं। इसके अंतर्गत हर रविवार को निर्धन लोगों को यह खाना खिलाती हैं। गीता श्रीधर का ऐसा बताना है कि उनके इस काम में उनके परिवार वालों ने पूरा साथ दिया।

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