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अगर नेता बनना है ना, तो गुंडे पालो, गुंडे बनो नहीं, मिर्ज़ापुर के कालीन भैया के स्ट्रगल की कहानी

अभिनेता पंकज त्रिपाठी को आज कौन नहीं जानता. पंकज इंडस्ट्री का एक ऐसा चेहरा बन चुके है जिनकी डिमांड हर तरफ है. पंकज ने अपने अभिनय के दम पर एक ख़ास मुकाम हासिल किया है. शुरुआत में पंकज को मुंबई में सिर्फ कुछ छोटे मोठे रोल ही मिलते थे. बाद में उनका कद बढ़ता गया. वेब सीरीज मिर्ज़ापुर में उनके काम को कोई नहीं नकार सकता. जिस तरह का किरदार उन्होंने निभाया है वह लोगों के दिलों में हमेशा के लिए अमर हो गया है.

इसके बाद पंकज के किरदार को ध्यान में रखते हुए एक पूरी फिल्म की पटकथा उनके लिए लिखी गई. फिल्म का नाम तरह कागज़. कागज़ में भी पंकज की अभिनय प्रतिभा को जमकर सराहा गया. पंकज त्रिपाठी ने यह सफर यू ही नहीं तय किया. इस सफर के दौरान उन्होंने रास्तों में आने वाली तमाम मुश्किलों का भी सामना किया. आज हम आपको पंकज के इस सफर के बारे में बताने जा रहे है.

एक बार एक इंटरव्यू के दौरान पंकज त्रिपाठी ने बताया था कि मुंबई पहुंचे तो उनके पास थोड़ा पैसा था लेकिन ढेर सारा साहस था. बाद में उसी साहस के बलबूते पर उन्होंने इतना लम्बा सफर तय किया. उसके बाद ही उन्होंने यह सब हासिल किया. पंकज के मुताबिक उन्होंने काफी रिजेक्शन झेले, कई स्टूडियो के धक्के खाए और खाली हाथ भी लौटे, लेकिन 8 सालों के लम्बे स्ट्रगल के बाद भी उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी.

आज पंकज त्रिपाठी(Pankaj Tripathi) एक ऐसा नाम बन गए हैं जिनकी गिनती देश के बेहतरीन कलाकारों में की जाती है. उनका नाम इंडस्ट्री में बड़े ही आदर के साथ पुकारा जाता है. एक समय में उन्हें स्टुडिओ की ठोकरे खानी पड़ती थी. आज आलम यह है कि उन्हें साइन करने के लिए डायरेक्टर और प्रोड्यूसर्स की कतारें लगी रहती है. आज उन्हें घर बैठे काम मिल रहा है और यही उनका सपना था जो आज पूरा हो चुका है.

इसी इंटरव्यू के दौरान अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने ये भी कहा था कि उनके जीवन में प्रेरणा का सबसे बड़ा स्त्रोत जीवन की सीख है. वह सिनेमा की बजाय जिंदगी से ज्यादा सीखते है. शायद इसी वजह से उनके द्वारा निभाने वाले किरदार ज्यादा रियल लगते है. उनके किरदारों में चाहे फुकरे के पंडित जी हों या फिर मिर्ज़ापुर के कालीन भैया. पंकज त्रिपाठी ने आज तक जो भी रोल निभाया है बड़ी शिद्दत के साथ निभाया है. पंकज ने यह भी बताया था कि उन्हें इस बात का कटाई अन्दाज़ा नहीं था न ही उन्होंने कभी सोचा था कि लोग उनके इस कदर दीवाने हो जाएंगे. मुंबई आकर उनका सिर्फ इतना ही उद्देश्य था कि एक्टिंग के जरिये सिर्फ उनकी दाल-रोटी चल जाए.

आज पंकज त्रिपाठी कौन है, क्या है किसी को बताने की जरुरत नहीं है. पंकज के मुताबिक जब भी वह फ्री होते है वह अपना समय अपने गाँव जाकर बिताना ज्यादा पसंद करते है. उनके गांव से उन्हें ज्यादा लगाव है. उन्हें गाँव से ही प्रेरणा मिलती है. पंकज के कुछ बेस्ट डायलॉग, ‘अगर नेता बनना है ना, तो गुंडे पालो, गुंडे बनो नहीं’- मिर्ज़ापुर, ‘इज्ज़त नहीं करते, डरते हैं सब और डर की यही दिक्कत है, कभी भी ख़त्म हो सकता है’ – मिर्ज़ापुर, ‘सबका आधार लिंक है उसके पास’ – स्त्री.

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