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दिल्ली हिंसा पर रवीश कुमार ने कसा मोदी पर तंज, कहा- प्रधानमंत्री का ईगो वाक़ई जनता से बड़ा है

दिल्ली में हुई हिंसा को लेकर आज गृहमंत्री ने उच्च स्तरीय बैठक की है और दिल्ली में अतिरिक्त सुरक्षा बलों की तैनाती के आदेश दिए हैं। वहीं दिल्ली हिंसा पर पत्रकार रवीश कुमार ने गृहमंत्री पर तंज कसा है और कई तरह के सवाल खड़े किए हैं। रवीश कुमार ने कल एक फेसबुक पोस्ट लिखा, जिसमें इन्होंने गृहमंत्री से कई सवाल पूछे। रवीश की ओर से लिखे गए इस पोस्ट पर लोगों की प्रतिक्रिया भी आ रही है। लोग रवीश के पोस्ट पर खूब कमेंट कर रहे हैं और इसे मोदी व अमित शाह विरोध पोस्ट बता रहे हैं।

दरअसल इस पोस्ट में रवीश कुमार ने शिवराज पाटिल और अमित शाह की तुलना की है। एक तरफ शिवराज पाटिल की तारीफ की है और अमित शाह पर कई सवाल खड़े किए हैं। अपने पोस्ट में इन्होंने लिखा कि शिवराज पाटिल को सामने आना चाहिए। उन्हें बैक डेट में फिर से गृह मंत्री के पद से इस्तीफ़ा देना चाहिए। क्योंकि अमित शाह के सामने जवाबदेही के सवाल भी जाने से डरते हैं। अमित शाह कभी फेल नहीं होते हैं। गणतंत्र दिवस के दिन  दिल्ली पुलिस किसी विश्व गुरु की पुलिस तो बिल्कुल नहीं लग रही थी। जब यही पुलिस आई टी ओ तक पहुंचे हज़ारों किसानों को इंडिया गेट तक जाने से रोक देती है। तो मकरबा या ग़ाज़ीपुर पर भी रोक सकती थी। लाल क़िला तक बड़ा हुजूम कैसे आ गया? उस वक्त लाल क़िले की सुरक्षा क्या थी जवाब मुश्किल हैं। एक साल में दिल्ली दूसरी बार भयानक हिंसा की भेंट चढ़ी।

इन्होंने आगे लिखा कि नागरिकता क़ानून के विरोध में शांतिपूर्ण आंदोलन चल रहा था। जहां चल रहा था वहां हिंसा की तमाम कोशिशें फेल हो गई थीं। शाहीन बाग पर दो दो बार गोली चलाने की घटना हुई और वो भी पुलिस की मौजूदगी में। जब वहां कोई ग़ुस्से में नहीं आया तो दूसरे लोकेशन पर हिंसा हुई। दिल्ली को दंगों में झोंक दिया गया। आंदोलन ख़त्म हो गया। एक साल के भीतर हिंसा की दूसरी घटना आपने देखी। हिंसा से आंदोलन फिर कमजोर हुआ और फ़ायदा किसे हुआ बताने की ज़रूरत नहीं है।

रवीश ने अपने पोस्ट में पीएम मोदी पर भी कई सवाल खड़े किए। इन्होंने लिखा कि गणतंत्र दिवस पर सुरक्षा में इतनी बड़ी चूक हुई। गृह मंत्री जवाबदेही से किनारे हो गए। प्रधानमंत्री का ईगो वाक़ई जनता से बड़ा है। एक बयान तक नहीं आया। दो महीनों के दौरान डेढ़ सौ से अधिक किसान मर गए। प्रधानमंत्री चुप रहे। खुद मुख्यमंत्री होते तो सौ भाषण दे चुके होते कि देश का प्रधानमंत्री अगर किसानों से बात नहीं करेगा तो किससे करेगा। अन्नदाता का अपमान है टाइप। पर अब यह सवाल भी लोगों की स्मृति से ग़ायब हो चुका है। लोग भी नहीं पूछते हैं। मेरे लिए ताकतवर सरकार और गोदी मीडिया के सामने किसी भी आंदोलन का मिट जाना और उनके जाल में फंस जाना हैरानी की बात नहीं है। इ

इस पोस्ट में इन्होंने आगे लिखा कि हैरानी की बात है कि इतने दिनों तक यह आंदोलन चला और किसानों ने लंबे समय तक के लिए सरकार को बातचीत के लिए मजबूर भी किया।  हिंसा की घटना से किसानों का मनोबल गिरना स्वाभाविक है। अहिंसा और अनुशासन से ही इतना विश्वास बना कि लाखों लोग इससे जुड़े। किसान जानते हैं कि हिंसा की इस घटना से सरकार को मौक़ा मिलेगा। आंदोलन पर दमन बढ़ जाएगा और ख़त्म भी कर दिया जाएगा। चौबीस घंटे बाद जब पुलिस कमिश्नर प्रेस के सामने आए तो औपचारिक और सरकारी जवाब से ज़्यादा सामने नहीं रख पाए। बेशक पुलिस महकमा बुला कर पूछताछ करेगा तो किसानों का जीवन और मुश्किल है। मुक़दमों से निपटना आसान नहीं होता है। उसकी लड़ाई अकेले की हो जाती है।

क्या किसान अपने मनोबल को हासिल कर पाएँगे? सरकार अब आंदोलन को उजाड़ देगी। गाँवों में निराशा फैल जाएगी लेकिन जल्दी ही हिन्दू मुस्लिम टापिक की सप्लाई हो जाएगी जिसके बाद फिर सबके हिसाब से सब ठीक हो जाएगा। इस काम में गोदी मीडिया लगा हुआ है और लगा रहेगा। हिन्दू मुस्लिम टॉपिक ही तय करेगा कि किसान अपनी नहीं बल्कि किसी और के एजेंडे पर बात करेगा। अपनी बात भूल जाएगा। यह फ़ार्मूला बेरोज़गारों और उनके परिवारों में सौ फ़ीसदी सफल रहा है। किसानों के बीच भी सफल होगा।

गौरतलब है कि ये पहला मौका नहीं है जब रवीश कुमार ने केंद्रीय सरकार की आलोचना की हो। इससे पहले भी ये मोदी और अमित शाह के विरुध कई बात कह चुके हैं।

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