अध्यात्म

भगवान विष्णु का सब से ताकतवर अस्त्र है सुदर्शन चक्र, जानें कैसे मिला था उन्हें यह

शास्त्रों में सबसे ज्यादा जिक्र भगवान विष्णु का किया गया है। जिसकी वजह से इन्हें सबसे बड़े देवता का दर्जा दिया गया है। भगवान विष्णु ने कई अवतारों में धरती पर जन्म भी लिया था। शास्त्रों में इनका उल्लेख करते हुए कहा गया है कि जो लोग भी सच्चे मन से इनकी पूजा करते हैं, उनकी हर कामना को ये पूर्ण कर देते हैं। जीवन में किसी भी तरह का संकट आने पर, बस इनके नाम का जाप कर लें। संकट एकदम दूर हो जाएगा।

शास्त्रों में इन्हें पालनहार नाम भी दिया गया है और लिखा गया है कि भगवान विष्णु के तीन अवतारों ने तीन गुरुओं शिक्षा ग्रहण की थी। इन्हें हर चीज का ज्ञान है। इन्होंने अपने गुरु से अस्त्र-शस्त्र चलाने से लेकर नीति से जुड़ी शिष्य ग्रहण कर रखी है। इतना ही नहीं इन्हें सुदर्शन चक्र कहा से मिला। इसके बारे में भी शास्त्रों में बताया गया है। इस चक्र का उल्लेख करते हुए शास्त्रों में लिखा गया है कि ये एक अचूक अस्त्र है। इसमें कुल 1000 आरे हैं। इसे छोड़ने के बाद ये लक्ष्य का पीछा करता है और उसका अंत करने के बाद ही वापस आता है। वहीं सुदर्शन चक्र कैसे विष्णु जी ने प्राप्त किया था। इससे जुड़ी हुई कथा है, इस प्रकार है।

कहा जाता है कि दैत्यों के अत्याचारों से परेशान होकर सभी देवता मदद मांगने के लिए भगवान विष्णु के पास गए थे। इन देवताओं ने विष्णु जी से कहा कि वो उनकी मदद करें और उनकी रक्षा दैत्यों से करें। लेकिन उस समय भगवान विष्णु जी के पास कोई भी शस्त्र नहीं था। जिसकी मदद से वो दैत्यों का नाश कर सकें। ऐसे में विष्णु जी को भगवान शिव का ख्याल आया और भगवान शिव से शस्त्र हासिल करने के लिए ये कैलाश पर्वत चले गए।

की घोर तपस्या

कैलाश पर्वत जाकर इन्होंने शिव की तपस्या करना शुरू कर दी और एक हजार नामों से भगवान शिव की स्तुति करने लगे। इस दौरान इन्होंने भगवान शिव को कमल के फूल भी चढ़ाए। दरअसल ये हर नाम के साथ भगवान शिव को कमल का फूल चढ़ा रहे थे। इसी बीच शिव जी ने इनकी और से चढ़ाए जाने वाले कमल के फूलों में से एक फूल को छुपा दिया। जिसके बारे में विष्णु जी को पता नहीं चल सका और वो अपनी तपस्या में मगन रहे।

लेकिन जैसे ही उन्होंने शिव जी का आखिरी नाम लिया और कमल का फूल चढ़ाना चाहा। तो उनके पास फूल नहीं था। उन्हें कुछ समझ नहीं आए। कुछ देर विचार करने के बाद विष्णु जी ने अपनी आंख निकालकर कमल के फूल की जगह चढ़ा दी। इस चीज की कल्पना भगवान शिव ने बिलकुल नहीं की थी। एक फूल की पूर्ति के लिए विष्णु जी के नेत्र चढ़ाने से शिव जी काफी प्रसन्न हो गए। इन्होंने फौरन विष्णु जी को दर्शन दिए और उनसे वरदान मांगने को कहा। तब भगवान विष्णु ने शिव जी से देवताओं की समस्या बताई और कहा कि दैत्यों से देवताओं को बचाने के लिए उनके पास कोई भी शस्त्र नहीं है। ऐसे में वो उन्हें कोई ऐसा शस्त्र दें। जिसकी मदद से वो दैत्यों का नाश कर सकें और देवताओं को दैत्यों के अत्याचारों से बचा सकें।

ये बात सुनने के बाद भगवान शिव ने दैत्यों का नाश करने के लिए एक अजेय शस्त्र भगवान विष्णु की दिया। ये शस्त्र देते हुए शिव जी ने भगवान विष्णु से कहा कि इस अजेय शस्त्र की मदद से वो आसानी से दैत्यों का नाश कर सकते हैं और देवताओं को दैत्यों के अत्यचारों से बचा सकते हैं। इस शस्त्र का नाम सुदर्शन था। ये शस्त्र पाकर विष्णु जी ने दैत्यों का संहार कर दिया और देवताओं को दैत्यों से मुक्ति दिला दी।

सुदर्शन तभी से भगवान विष्णु का विशेष शस्त्र बन गया और ये चक्र सदा इनके साथ रहता है। जब भी किसी पापी का नाश करना होता है। तो ये इस शस्त्र की मदद से उसका नाश कर देते हैं। सुदर्शन चक्र को विष्णु के कृष्ण अवतार ने भी धारण किया था और इससे श्रीकृष्ण ने कई राक्षसों का वध किया था।

जुड़ी है ओर भी कथा

सुदर्शन शस्त्र से और भी कथा जुड़ी हुई है। शिव पुराण के अनुसार सुदर्शन चक्र का निर्माण भगवान शिव ने किया था। बाद में शिव ने ये भगवान विष्णु को दिया था। ताकि वो सृष्टि संचालन इसकी मदद से कर सकें। इसके अलावा ये भी कहा जाता है कि इसे विश्वकर्मा ने बनाया था।। सूर्य की अभेद राक से उन्होंने तीन चीजों का निर्माण किया पुष्पक, विमान त्रिशूल और सुदर्शन चक्र।

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