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MSP क्या है? जिसको लेकर किसानों का चल रहा है हंगामा, जानिए पूरी जानकारी

काफी दिनों से किसान कड़ाके की ठंड में दिल्ली के बॉर्डर पर डेरा जमाए हुए हैं। अपने घर का सारा सुख छोड़कर सैकड़ों किलोमीटर हजारों किसान बॉर्डर पर बैठे हुए हैं। आपको बता दें कि सरकार ने हाल ही में तीन कृषि कानून बनाए थे, उनपर किसानों का कहना है कि यह कानून हटा दिए जाएँ। लगातार इसका विरोध हो रहा है। बार-बार किसान आंदोलन में एक चीज निकल कर सामने आ रही है। वह फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी। MSP को लेकर किसान संगठनों में नाराजगी बनी हुई है। आखिर MSP क्या है? किसानों को इससे कैसे फायदा मिलता है। इसके बारे में आज हम आपको सारी जानकारी देने जा रहे हैं।

आखिर क्या होता है एमएसपी (MSP)?

सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि आखिर एमएसपी यानी मिनिमम सपोर्ट प्राइस या फिर न्यूनतम समर्थन मूल्य क्या होता है? आपको बता दें कि MSP सरकार की तरफ से किसानों की अनाज वाली कुछ फसलों के दाम की गारंटी होती है। न्यूनतम समर्थन मूल्य वास्तव में वह कीमत होती है, जो साल में 2 बार रबी और खरीफ की फसल के समय क्रॉप साइकल से पहले घोषित की जाती है, यानी सरकार गारंटी देती है कि किसानों को फसल का कम से कम मूल्य तो मिलेगा ही, चाहे इसके लिए सरकार को ही फसल क्यों ना खरीदनी पड़ जाए।

MSP का फायदा कितने किसानों को मिला है?

पंजाब और हरियाणा के किसान विरोध प्रदर्शन के लिए दिल्ली पहुंचे हैं। खबरों में भी आप लोगों ने इन्हीं के बारे में सुना होगा। अब यह सवाल आता है कि आखिर कितने किसानों को MSP का फायदा मिला है? आपको बता दें कि देश के सिर्फ 5 फ़ीसदी किसानों को ही MSP का फायदा मिलता है क्योंकि इस व्यवस्था की शुरुआत पंजाब और हरियाणा में गेहूं और चावल की पैदावार को बढ़ावा देने के मकसद से ही हुई थी।

अब आपके मन में यह सवाल आ रहा होगा कि भला 5% जिनको लाभ मिलता है वह कौन हैं? आपको बता दें कि यह 5 फ़ीसदी किसान उन्हीं इलाकों से ताल्लुक रखते हैं जहां 1980 के दशक में हरित क्रांति का इतिहास रचा गया था। इसी कारण से यह किसान जिस सिस्टम में समृद्ध हुए हैं, उसके लिए खतरा नजर आ रहे नए कानूनों का विरोध कर रहे हैं। दूसरी तरफ 95% किसान वह हैं, जो इस सिस्टम के दाएं में ही नहीं हैं।

किसको नहीं मिलेगा यह फायदा?

जिन किसानों के पास औसतन 2 हेक्टेयर से भी कम जमीन है या फिर जिनके पास कृषि भूमि है ही नहीं, वह एमएसपी के दायरे से बाहर आते हैं। आपको बता दें कि करीब 86 फीसदी हशिये पर काम कर रहे किसानों की तादाद है। यह उन किसान में शामिल हैं, जो अपनी लागत से ठीक रिटर्न नहीं पाते हैं। अगर हम दूसरी और देखें तो पंजाब और हरियाणा से केंद्र सरकार फूड सिक्योरिटी एक्ट के तहत चावल और गेहूं की फसल का भंडार मंगवाती है, जिसको उत्तर प्रदेश, उड़ीसा और बिहार जैसे राज्यों के गरीबों तक लोक वितरण प्रणाली के अंतर्गत ₹5 प्रति किलो के मूल्य पर पहुंचाने का काम किया जाता है। स्कीम से सस्ता अनाज मिलने की वजह से इन प्रदेशों में किसानों को फसल सही और अच्छी कीमत पर नहीं मिल पाती है।

बताते चलें कि पंजाब और हरियाणा के किसान ही नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं। इन किसानों के मन में यह डर बना हुआ है नए कानूनों की आड़ में सरकार ने ऐसा सिस्टम बनाने का प्रयत्न किया है, जिससे धीरे-धीरे एमएसपी का सिस्टम खत्म हो जाएगा और कृषि और कृषि भूमियों पर पूंजीपतियों का सीधा दखल हो जाएगा परंतु सरकार बार-बार यही कह रही है कि एमएसपी की वजह से कोई भी खतरा नहीं होगा बल्कि यह फायदेमंद रहेगा परंतु किसान फिर भी डरे हुए हैं।

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