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मंदिर में रातें गुजारी, मजदूरी करके जब बने IAS, इनकी कहानी सुनकर आंखें हो जाएंगी नम

इंसान के बहुत से सपने होते हैं, लेकिन सपने साकार करने में कुछ लोग ही कामयाब हो पाते हैं। किसी ने सच कहा है यदि इंसान किसी चीज को दिल से चाहे तो दुनिया की सारी ताकतें भी उसे उस चीज को हासिल करने में सहायता करने लगती है। अगर इंसान का हौसला बुलंद हो तो वह हर चीज को प्राप्त कर सकता है। मजबूत इरादों से व्यक्ति अपने जीवन में सफलता हासिल कर सकता है। ऐसे बहुत से लोग हैं जो अपना लक्ष्य प्राप्त करने से पहले ही अपने जीवन की परेशानियों से हार मान जाते हैं। वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो जीवन की सभी कठिन परिस्थितियों को पार करते हुए अपना लक्ष्य हासिल करते हैं। आज हम आपको एक ऐसे शख्स के बारे में जानकारी देने वाले हैं जिन्होंने अपने जीवन में काफी संघर्ष किया है, लेकिन इनके मजबूत इरादे और कुछ कर गुजरने का जज्बा, इन्होंने अपना मुकाम हासिल किया है। आज हम आपको जिस शख्स के बारे में जानकारी दे रहे हैं उनका नाम आईएएस विनोद कुमार सुमन है। इन्होंने अपने जीवन में ऐसे दिन काटे हैं, जिससे आमतौर पर लोग पूरी तरह से टूट जाते हैं। इनका बचपन गरीबी में गुजरा लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। आखिर में इन्होंने कामयाबी की एक अनोखी मिसाल पेश की है।

गरीबी में गुजरा था बचपन

उत्तर प्रदेश के भदोही के पास जखांऊ गांव में आईएएस अफसर विनोद कुमार सुमन का जन्म हुआ था। यह बेहद गरीब किसान परिवार से ताल्लुक रखते हैं। इनकी आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। इनके पिता किसान थे, जिसकी वजह से आय का एकमात्र स्रोत खेती ही था। इनके पास जमीन भी अधिक नहीं थी। दो वक्त की रोटी का इंतजाम करना भी बेहद कठिन हो जाता था। विनोद कुमार सुमन के पिताजी खेती के साथ-साथ कालीन बुनने का काम भी किया करते थे। आपको बता दें कि विनोद कुमार सुमन ने अपनी शुरुआती शिक्षा गांव से ही पूरी की। यह अपने पिता के साथ हाथ बंटाने लगे। विनोद कुमार सुमन पांच भाई और दो बहनों में से सबसे बड़े थे। ऐसे में परिवार की सारी जिम्मेदारी इनके ऊपर ही थी। इतनी परेशानियां होने के बावजूद भी यह अपनी पढ़ाई किसी भी हाल में नहीं छोड़ना चाहते थे। किसी न किसी तरीके से इन्होंने इंटर पास किया। जब उन्होंने आगे की पढ़ाई करने की सोची तो इनके सामने आर्थिक परेशानी सबसे बड़ी चुनौती बन गई।

अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए घर से निकल पड़े

विनोद कुमार सुमन अपने दम पर अपना लक्ष्य प्राप्त करना चाहते थे और इनका हौसला मजबूत था। इनके परिवार की स्थिति ऐसी नहीं थी कि यह अपनी पढ़ाई कर सके। तब इन्होंने अपने घर से शहर की तरफ निकलने का निश्चय किया। इनके शरीर पर कपड़ों के अलावा और कुछ भी नहीं था। यह गढ़वाल पहुंच गए। वहां इनके पास ना तो पैसे थे और ना ही रहने के लिए घर था। आखिर में इन्होंने एक मंदिर में जाकर पुजारी से शरण मांगी थी। पुजारी ने इनको मंदिर के बरामदे में एक कोना दे दिया था और खाने के लिए थोड़ा प्रसाद भी दिया था। किसी तरह इन्होंने रात गुजारी और अगले दिन काम की तलाश में निकल गए।

यहां की थी मजदूरी

विनोद कुमार सुमन काम की तलाश में इधर-उधर भटक रहे थे। उन्होंने देखा कि श्रीनगर गढ़वाल में एक सुलभ शौचालय का निर्माण चल रहा था। तब इन्होंने ठेकेदार से बात की, मिन्नत करने के बाद इनको वहां पर मजदूरी करने के लिए रख लिया गया था। आपको बता दें कि उस समय मजदूरी के तौर पर इनको मात्र ₹25 रुपये रोजाना मिला करते थे। सुमन शुरुआत के 1 महीने तक चादर और बोरे के सहारे ही मंदिर के बरामदे में रातें गुजारते थे। मजदूरी के जो पैसे मिलते थे उससे यह कुछ खाकर अपना पेट भर लिया करते थे।

शहर के विश्वविद्यालय में दाखिला लिया

विनोद कुमार सुमन कुछ महीने तक अपना ऐसे ही गुजारा चलाते रहे। बाद में इन्होंने शहर के विश्वविद्यालय में एडमिशन लेने का फैसला किया था। आपको बता दें कि श्रीनगर गढ़वाल विवि में इन्होंने BA प्रथम वर्ष में एडमिशन लिया। विनोद कुमार सुमन की गणित बेहद अच्छी थी, जिसके चलते यह रात के समय ट्यूशन भी पढ़ाने लगे। दिन में मजदूरी करते थे और रात में ट्यूशन पढ़ाया करते थे। धीरे-धीरे इनकी आर्थिक स्थिति सुधरती गई। बचे हुए पैसे भी यह अपने घर पर भेजने लगे थे। इन्होंने वर्ष 1992 में प्रथम श्रेणी से बीए पास किया। पिता की सलाह पर सुमन इलाहाबाद लौटे और यहां पर उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राचीन इतिहास में MA. किया।

यूपीएससी की तैयारी शुरू की

बता दें कि वर्ष 1995 में विनोद कुमार सुमन ने लोक प्रशासन में डिप्लोमा किया और प्रशासनिक सेवा परीक्षा की तैयारी में जुट गए। इसी बीच इनको महालेखाकार ऑफिस में लेखाकार की नौकरी मिल गई थी। नौकरी मिलने के बाद इन्होंने अपनी तैयारी जारी रखी। वर्ष 1997 में पीसीएस में इनका चयन हुआ था। तमाम महत्वपूर्ण पदों पर सेवा देने के पश्चात वर्ष 2008 में उन्हें आईएएस कैडर मिल गया।

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