राजनीति

रूठे पायलेट चिंता में गहलोत: इन 6 पॉइन्ट से समझिए राजस्थान की सम्पूर्ण राजनीतिक उठा पटक

वैसे तो राजस्थान की गणना भारत के सबसे गर्म प्रदेशों में की जाती है। कहा जाता है कि हर कोई राजस्थान के ताप को सहन नहीं कर पाता। मगर वर्तमान परिस्थिति में मौसम से ज़्यादा ताप राजस्थान की राजनीति में देखने को मिल रहा है। दरअसल राजनीतिक उठा पटक ने राजस्थान का माहौल गर्म कर दिया है। मध्यप्रदेश की तख़्ता पलट के बाद अंदाज लगाया जा रहा है कि राजस्थान में भी सरकार गिराई जा सकती है। इसकी वजह है ज्योतिरादित्य सिंध्या के परम मित्र और राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलेट का बगावती होना। 

दरअसल, यह मामला तब संज्ञान में आया जब राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उनकी सरकार को अस्थिर किये जाने का आरोप दर्ज करवाया। मामले की जांच कर रही एसओजी और भ्रष्टाचार निरोधक टीम ने 3 निर्दलीय विधायकों को पूछताछ के लिए नोटिस भी दे दिया है। मगर इतना ही नहीं गहलोत सरकार की चिंता तब और ज़्यादा बढ़ गयी जब सचिन पायलेट कैबिनेट की बैठक में हिस्सा न लेते हुए दिल्ली पहुंच गए। यहां वे अकेले नहीं हैं  उनके साथ कुछ विधायक भी मौजूद हैं। खबरों की माने तो पायलेट पूरे मामले में आलाकमान का हस्तक्षेप चाहते हैं। 

 आइए इस राजनीतिक उठापटक की आपको पूरी ABCD बताते हैं ;

1. राजस्थान में हो रही इस उठा-पटक की जांच एसओजी और एसीबी के हाथों में चली गयी है। विधायकों को खरीदे जाने वाले मामले की वे जांच कर रहे हैं। बता दें फिलहाल एसीबी ने तीन निर्दलीय विधायकों को नोटिस दिया था, जिसके बाद उनसे पूछताछ की जा रही है।

2.  दरअसल जब राजस्थान विधानसभा चुनाव चल रहे थे उस दौरान सचिन पायलट मुख्यमंत्री की दौड़ में सबसे आगे थे। मगर जैसे ही परिणाम आये तो कुर्सी गहलोत सरकार की तरफ सरका दी गयी। यही मामला मध्यप्रदेश में भी ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ हुआ था। उनकी जगह कमलनाथ को कुर्सी दी गयी थी।

3. इसके बाद आये लोकसभा चुनाव जिसमें मध्यप्रदेश और राजस्थान दोनों ही प्रदेशों में कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी। इस हार का दोष ज्योतिरादित्य और पायलेट दोनों ने अपने-अपने राज्य के मुख्यमंत्री के सर पर फोड़ा।

4. ज्योतिरादित्य सिंधिया से रहा नहीं गया और उन्होंने कमलनाथ की सरकार गिरवा दी और खुद भी बीजेपी में शामिल हो गए। अब मध्यप्रदेश में शिवराज सरकार है और सिंधिया के करीबी नेता जो कांग्रेस छोड़ बीजेपी में शामिल हुए वे मंत्री पद पर हैं। 

5. इसके बाद निरंतर राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलोत ने पायलेट के खिलाफ बयान बाजी की। कभी उन्होंने कहा कि उनके बेटे की हार की जिम्मेदारी सचिन पायलेट को लेनी चाहिए थी। कभी उन्होंने कहा, कांग्रेस के पास उनके सिवा मुख्यमंत्री का और कोई दूसरा विकल्प नहीं है। जानकारों का मानना है कि गहलोत ऐसे बयान दे कर पायलेट का कद छोटा करना चाहते थे। 

6. सिर्फ गहलोत ने पायलेट को ही नहीं पायलेट ने भी अपनी सरकार को आड़े हाथों लिया, कभी उन्होंने कानून व्यवस्था की दुहाई देते हुए कहा कि जरूरत पड़ी तो प्रदेश में 5 उपमुख्यमंत्री भी हो सकते हैं। इस साल जनवरी में हुई अस्पताल में नवजातों की मौत पर उन्होंने कहा कि हमें ज़िम्मेदारी तय करनी होगी। हम हर बार पुरानी सरकार पर दोष डाल कर अपना पल्ला नहीं झटक सकते।

गौरतलब है कि इससे पहले भी कई बार तख़्ता पलट की आशंका गहलोत लगा चुके हैं। मगर यह रेगिस्तानी ऊंट किस करवट बैठता है, यह देखना दिलचस्प होगा।

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