अध्यात्म

आखिर किस वजह से लगता है सूर्य ग्रहण? जानिए इसकी पौराणिक कथा और वैज्ञानिक कारण

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य ग्रहण का समय अशुभ माना जाता है, अगर हम पौराणिक मान्यताओं के अनुसार देखे तो ग्रहण और सूतक के समय कभी भी किसी प्रकार की पूजा आराधना नहीं करनी चाहिए, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रहण प्रकृति का एक अद्भुत चमत्कार माना जाता है, आपको बता दें कि इस वर्ष 21 जून 2020 को सूर्य ग्रहण लग रहा है, परंतु सूर्य ग्रहण का सूतक काल 1 दिन पहले यानी 20 जून 2020 की रात को लग गया था, इस बार का सूर्य ग्रहण भारत देश में भी देखा जा सकता है, परंतु आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि आप ग्रहण को नग्न आंखों से ना देखें, आज हम आपको सूर्य ग्रहण क्यों लगता है और इसकी पौराणिक कथा क्या है, और वैज्ञानिक दृष्टि से इसकी क्या मान्यताएं हैं? इसके बारे में जानकारी देने जा रहे हैं।

सूर्य ग्रहण की पौराणिक कथा

अगर हम सूर्य ग्रहण की कथा के बारे में जाने तो ऐसा बताया जाता है कि जब राक्षसों ने तीनों लोको पर अपना अधिकार जमा लिया था तब सभी देवता काफी चिंतित हो गए थे, सभी देवता परेशान होकर भगवान विष्णु जी से सहायता मांगने के लिए पहुंचे, तीनों लोगों को असुरों से बचाने के लिए देवताओं ने भगवान विष्णु जी का आवाहन किया था, तब इस परेशानी का समाधान निकालते हुए भगवान विष्णु जी ने देवताओं को क्षीर सागर का मंथन करने की सलाह दी थी, मंथन के दौरान निकलने वाले अमृत पान करने के लिए कहा था, तब भगवान विष्णु जी ने देवताओं को यह चेतावनी दी थी कि उनको इस बात का ध्यान रखना होगा कि कोई भी असुर इस अमृत का पान ना करें, वरना यदि असुर अमर हो जाएंगे तो इनको युद्ध में नहीं हराया जा सकता है।

देवताओं और असुरों ने मिलकर समुद्र मंथन किया था, मंथन के दौरान 14 रत्न इसमें से प्रकट हुए थे, जब समुद्र मंथन में अमृत निकला तो इसको प्राप्त करने के लिए देवताओं और असुरों में युद्ध होने लगा था, तब भगवान विष्णु जी ने मोहिनी रूप धारण करके देवताओं को अमृत पान करवाया था, परंतु उसी दौरान राहु नाम के एक असुर ने देवताओं का रूप धारण करके धोखे से अमृत पान कर लिया था, चंद्र देव और सूर्य देव को इसकी भनक लग गई थी, इन्होंने देवताओं के वेश में राहु को पहचान लिया था, इस बात की जानकारी उन्होंने भगवान विष्णु जी को दी, तब विष्णु जी अत्यधिक क्रोधित हुए और उन्होंने अपने चक्र से राहु का सिर धड़ से अलग कर दिया था, राहु ने अमृत पान कर लिया था जिसके कारण वह अमर हो गया था, राहु तभी से चंद्र और सूर्य को अपना शत्रु मानने लगा था, जब समय-समय पर यह ग्रह राहु की वजह से ग्रस्त होते हैं इसी घटना को सूर्य ग्रहण और चंद्रग्रहण कहा जाता है, शास्त्रों के अनुसार इसी वजह से ग्रहण लगता है।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से क्यों लगता है सूर्य ग्रहण

अगर हम वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो सूर्य ग्रहण एक तरह का ऐसा ग्रहण होता है जब चंद्रमा, पृथ्वी और सूर्य के मध्य से होकर गुजरता है, तथा पृथ्वी से देखने पर सूर्य पूर्ण अथवा आंशिक रूप से चंद्रमा द्वारा अच्छादित होता है, जब सूर्य और पृथ्वी के बीच में चंद्रमा आ जाता है तो चंद्रमा के पीछे सूर्य का बिंब कुछ समय के लिए ढक जाता है, इसी घटना को सूर्य ग्रहण के नाम से जाना जाता है।

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