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एक अजीब प्रथा : यहां पानी को साक्षी मानकर करवा दी जाती है भाई-बहन की शादी!

भारत में एक कहावत प्रचलित है- कोस-कोस पर पानी बदले और तीन कोस पर वाणी. मतलब कि भारत में हर एक निश्चित दूरी पर आपको विविधिता देखने को मिल जाएगी. शायद यही वजह है कि यहां इतनी सारी परंपराएं और रीति-रिवाज हैं कि भारत को विविधताओं का देश भी कहा जाता है. मगर प्रथा और परंपराओं के नाम पर हमारे समाज में अंधविश्वास भी खूब व्याप्त है. यहां शादियों के रिवाज और परंपराएं भी काफी अलग-अलग हैं.

यहां अजीब अंधविश्वासी परंपरा का पालन होता है:

हमारे समाज में भाई-बहन की शादी को गलत माना जाता है. 21वीं सदी में इस तरह की शादी के बारे में सोचना भी पाप के समान है. मगर आपको पता ही है कि भारत परंपराओं का देश है. इसलिए यहां अंधविश्वासी परंपरा निभाने वालों की भी कमी नहीं है. दरअसल, छत्तीसगढ़ के बस्तर की कांगेरघाटी में एक अनोखी परंपरा निभायी जा रही है. आज के जमाने में निभाई जा रही ये परंपरा ऐसी है कि आपका इस पर विश्वास करना भी मुश्किल हो जाएगा.

पानी को साक्षी मानकर होती है आपस में भाई-बहन की शादी:

जी हां, आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यहां अंधविश्वासी परंपरा के नाम पर पानी को साक्षी मान कर भाई-बहन की ही आपस में शादी कर दी जाती है. ऐसा नहीं है कि इसे लोग जबरन करते हैं, बल्कि लोग इसे खुशी-खुशी निभा भी रहे हैं.

 

धुरवा समाज के बीच कायम है यह परंपरा:

आपको बता दें कि यहां आसपास के इलाके में धुरवा समाज के लोग रहते हैं. इस समाज में यह प्रथा सदियों से चली आ रही है. ऐसी परंपरा है कि इस समाज के लोग अपनी बेटियों की शादी फुफेरे और मौसेरे भाई से ही करवा देते हैं. हैरान करने वाली बात यह है कि अगर कोई ऐसा करने से मना करता है, तो यह समाज उससे बाकायदा जुर्माना भी वसूलता है. ज़ुर्माने के डर से भी लोगों को ऐसा करने पर मजबूर होना पड़ता है.

जागरूकता से खत्म हो रही है परंपरा:

हालांकि ये बात अलग है कि अब जागरूकता और विकास की हवा देश के कोने-कोने तक पहुंच रही है. इसलिए लोग जागरूक भी हो रहे हैं और इस परंपरा के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं. अब लोग जागरूक होने के साथ ही धीरे धीरे इस परंपरा को खत्म करने का प्रयास कर रहे हैं.

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