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पति के लिए महिलाएं करती हैं वट सावित्री की पूजा, जानें क्या है पूजन सामाग्री, विधि और व्रत कथा

महिलाएं ये व्रत अपने पति की लंबी उम्र की कामना और अपने सुहाग को स्वस्थ्य बनाए रखने के लिए करती हैं

हिंदू धर्म में पति की लंबी उम्र और स्वास्थ्य के लिए महिलाएं बहुत से व्रत करती हैं जिससे उनकी मांग हमेशा भरी रहे। इनमें से एक खास व्रत है वट सावित्री व्रत जो कि इस बार 22 मई को मनाया जाएगा। ये व्रत महिलाएं अखंड सौभाग्यवती रहने के लिए करती हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो महिला सच्चे मन से इस व्रत को करती है उसके पति की जान को कभी नुकसान नहीं होता साथ ही उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। वैसे तो वट सावित्री व्रत हर साल ज्येष्ठ माह की अमावस्या को रखा जाता है, लेकिन कई जगह पर इसे ज्येठ पूर्णिमा के दिन भी मना लेते हैं। आपको बताते हैं कि क्या है सावित्री की पूजा, व्रत की पूजन सामाग्री, विधि और नियम कथा।

वट सावित्री पूजा के लिए सामाग्री

इस दिन महिलाएं व्रत रखकर वट वृक्ष की पूजा करती हैं। पूजा के लिए माता सावित्री की मूर्ति, बांस का पंखा, बरगद का पेड़, लाल धागा, कलश, मिट्टी का दीपक, मौसमी फल, पूजा के लिए लाल कपड़े, सिंदुर-कुमकुम और रोली. भोग लगाने के लिए पकवान, अक्षत, हल्दी, सोलह श्रृंगार औऱ पीतल का पात्र जल अभिषेक के लिए जरुरी होता है।

वट सावित्री की पूजा शुभ मुहूर्त

अमावस्या तिथि 21 मई रात 9 बजकर 35 मिनट पर शुरु हो जाएगी और 22  मई को रात 11 बजकर 8 मिनट पर समाप्त होगी। ऐसे में 22 मई को व्रत करने के लिए महिलाओं के पास पूरा दिन होगा। हालांकि अगर पूजा 12 बजे से पहले सुबह के समय कर ली जाए तो इसका अधिक फल मिलेगा।

वट सावित्री की पूजा विधि

इस दिन माता सावित्री ने अपने दृढ़ संकल्प से यमराज से अपने पति के प्राण वापस मांगे थे। इस लिहाज से सभी महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत करती हैं और पूजा करती है। इस व्रत में बरगद के पेड़ की पूजा सर्वप्रथम मानी गई है। इसके साथ साथ सत्यवान और यमराज महराज की पूजा भी की जाती है।

इस दिन सुबह उठकर सबसे पहले स्नान कर लें। इसके बाद सोलह श्रृंगार करें और सूर्य देव को जल को अर्घ्य दें। इसके बाद बांस की टोकरी में पूजा की सभी सामाग्रियों को रखकर वट वृक्ष के पास जाकर पूजा शुरु करें। सबसे पहले पेड़ की जड़ को अर्घ्य दें। इसके बाद वट देव की पूजा करे। वट देव की पूजा के लिए जल, फूल, रोली-मौली, कच्चा सूत, भीगा चना, गुड़ चढ़ाएं। इसके बाद पेड़ के चारों ओर कच्चा धागा लपेट कर तीन बार परिक्रमा करें। इसके बाद वट सावित्री की कथा सुनें। कथा सुनने के बाद भीगे हुए चने का बायना निकाले और उस पर कुछ रखकर अपनी सास को दे दें। जो सास से दूर रहती हैं वो बयाना भेज दें और उनसे आशीर्वाद लें। पूजा के बाद ब्राह्मणों तो वस्त्र और फल दाने में दे।

क्य़ा है वट सावित्री कथा

भद्र देश के एक राजा थे जिनका नाम अश्वति था। उन्हें कोई संतान नहीं थीं और उन्हें इसकी चाह थी। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए मंत्रोचारण के साथ प्रतिदिन एक लाख आहुतियां दीं। उनके 18 वर्षों की तपस्या देखकर सावित्रीदेवी प्रकट हुईं और कहा कि हे राजन तुझे एक तेजस्वी कन्या पैदा होगी। सावित्रीदेवी की कृपा से पैदा होने के कारण उनकी पुत्री का नाम सावित्री रखा गया।

जब सावित्री बड़ी हुईं तो बहुत रुपवान हुईं। पिता को विवाह की चिंता हुई। वो बहुत तलाश करते, लेकिन उन्हें ऐसा कोई इंसान नहीं मिलता जो सावित्री के योग्य हो। दुखी होकर उन्होंने स्वयं सावित्री को अपने वर की तलाश करने को कहा। सावित्री तपोवन में भटकने लगी। वहां साल्व देश के राजा द्युमत्सेन रहते थे। उनका राज्य छिन लिया गया था और वो नेत्रहीन  हो चुके थे तथा अपनी पत्नी के साथ रहते थे। उनका एक पुत्र था सत्यवान जो जंगल में लकड़ियां काटा करता था।

अल्पायु थे सत्यवान

सत्यवान को जंगल में देखकर सावित्री प्रसन्न हो गईं और मन ही मन उन्होंने उसे अपना वर चुन लिया। जब ऋषिराज नारद को ये बात पता चली तो वो राजा अश्वपति के पास पहुंचे और कहा- हे राजन! अपनी कन्या का विवाह सत्यवान से मत करवाइए। वो गुणवान हैं, धर्मात्मा है, लेकिन अल्पायु है। उसकी साल भर में मृत्यु निश्चित है।

राजा ने ये बात अपनी पुत्री से कही। सावित्री ने कहा पिताजी, आर्य कन्याएं अपने पति को एक बार ही चुनती हैं। मैंने उन्हें अपना पति मान लिया है अब मैं किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकतीं। सावित्री जिद पर अड़ गईं तो राजा ने मजबूर होकर सत्यवान से उसका विवाह करा दिया।

यमराज से वापस ले आईे सावित्री पति के प्राण

ससुराल पहुंचते ही सावित्री अपने सास-ससुर की सेवा में लग गई। समय बीतता चला गया और वो दिन नजदीक आ रहा था जब सत्यवान की मृत्यु होती। निश्चित दिन से तीन दिन पहले ही सावित्री जप करने लगी थी। तय दिन सत्यवान पेड़ पर लकड़ियां कांटने चढ़ा तो नीचे सावित्री भी आ गईं। सत्यवान के सिर में तेज दर्द हुआ और वो मुर्छित होकर नीचे गिर पड़ें। सावित्री ने देखा यमराज महाराज उसके पति के जीव को ले जाने लगे।सावित्री यमराज के पीछे पीछे चलने लगी। यमराज ने कहा कि तुम्हारे पति से तुम्हारा साथ यहीं तक था अब तुम जाओ। सावित्री ने कहा कि वो अपने पति को छोड़कर नहीं जाएंगी। यमराज उसके हठ और प्रताप से अंचभित रह गए और प्रसन्न होते हुए बोले की तीन वर मांग लो।

सावित्री ने कहा कि मेरे सास-ससुर की नेत्र ज्योति प्रदान करें। उनका खोया हुआ सारा राज्य प्रदान करें। साथ ही मुझे पति सत्यवान द्वारा 100 पुत्रों की मां बनने का सौभाग्य प्रदान करिए। ऐसा कहकर यमराज जाने लगे। सावित्री ने कहा- महाराज आपने मुझे वर दिया है, बिना मेरे पति के मैं मां कैसे बनूंगी। अतः अपने पतिधर्म को निभाते हुए सावित्री ने यमराज से अपने पति के प्राण वापस मांग लिए और 100 बच्चों को साथ अपने पति और सास-ससुर के साथ राज्य में खुशी खुशी जीवन व्यतीत किया।

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