अध्यात्म

इस स्थान पर रावण ने भगवान शिव को चढ़ाए थे अपने 10 सिर, यहां शिवजी के साथ होती है रावण की पूजा

देवों के देव महादेव को ही संसार का आदि और अंत माना गया है, देवभूमि को भगवान शिव जी की नगरी कहा जाता है, इस स्थान पर भगवान शिव जी के बहुत से मंदिर मौजूद है और इन मंदिरों की अपनी अपनी खासियत है, आज हम आपको भगवान शिव जी के इन्हीं धाम में से एक धाम के बारे में जानकारी देने वाले हैं, ऐसा बताया जाता है कि यहीं पर रावण ने अपने 10 सिर काट कर अपने आराध्य भगवान भगवान शिव जी को चढ़ाएं थे।

हम आपको उस स्थान के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं जहां पर रावण ने भगवान शिव जी की कठोर तपस्या की थी, उत्तराखंड में एक ऐसा स्थान है जहां पर लंकापति रावण ने भगवान शिव जी को प्रसन्न करने के लिए वर्षों तक तपस्या की थी और भगवान शिव जी को प्रसन्न करने के लिए इसने अपने 10 सिरों की आहुति भी दे दी थी, चमोली जिले के घाट विकासखंड स्थित बैरास कुंड में भगवान शिव जी का पौराणिक मंदिर मौजूद है, ऐसा बताया जाता है कि यही वह स्थान है जहां पर राक्षसों के राजा रावण ने 10000 वर्षों तक भगवान शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तपस्या की थी, इसी स्थान पर रावण शीला और यज्ञ कुंड आज भी मौजूद है, यहां पर भगवान शिव जी के प्राचीन मंदिर में शिव स्वयंभू लिंग के रूप में भी विराजमान है, यहां पर श्रद्धालु भगवान शिव जी के साथ-साथ रावण की भी पूजा करते हैं, यह देश का ऐसा मंदिर है जहां पर भगवान शिव और रावण की पूजा होती है।

रावण संहिता में भी बैरास कुंड महादेव मंदिर का जिक्र मिलता है, पौराणिक काल में इसको दशमोली कहा जाता था, ऐसा बताया जाता है कि बैरास कुंड महादेव मंदिर में जो भक्त पूजा-अर्चना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है, महादेव के इस मंदिर में सावन के महीने और शिवरात्रि पर भक्त दूर-दूर से यहां पर दर्शन करने के लिए आते हैं, स्कंद पुराण में केदारखंड का उल्लेख किया गया है, इसमें यह जिक्र किया गया है कि जब रावण तपस्या कर रहा था तब उसने अपने 9 सिर यज्ञ कुंड में समर्पित कर दिए थे जब रावण अपना दसवा सिर समर्पित करने लगा तो साक्षात भगवान शिव जी उसके समक्ष प्रकट हो गए थे, भगवान शिव जी रावण की तपस्या से प्रसन्न हुए और उसको मनोवांछित फल प्रदान किया।

देवभूमि में स्थित महादेव के धामों में से इस स्थान का विशेष महत्व माना गया है, यहां पर पुरातत्व महत्व की बहुत सी चीजें प्राप्त हुई है, इस स्थान पर खेत की खुदाई के समय एक कुंड मिला था, जिसका संबंध त्रेता युग से बताया जाता है, बैरास कुंड में जिस स्थान पर रावण ने शिवजी की तपस्या की थी वह कुंड, यज्ञशाला और शिव मंदिर आज भी यहां पर मौजूद है, इस स्थान पर बहुत से मंदिर मौजूद है, नंदप्रयाग का संगम स्थल, गोपाल जी मंदिर और चंडिका मंदिर यहां के मशहूर मंदिरों में से एक माने गए है, यह स्थान हरे-भरे पहाड़ और नदियों से घिरा हुआ है जहां पर श्रद्धालुओं को अध्यात्मिक सुकून प्राप्त होता है।

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