विशेष

माँ कही जाने वाली गंगा नदी से रोज 2 क्विंटल प्लास्टिक का कचरा निकालता हैं ये शख्स, जाने क्यों

गंगा नदी को हम सभी अपनी माँ मानते हैं. इससे हमारे कई इमोशन जुड़े हुए हैं. यदि इस धार्मिक पहलु को कुछ पल के लिए हटा भी दे तो भी ये गंगा नदी कई लोगो को जिंदगी प्रदान करती हैं. इस नदी के ऊपर लगभग 40 प्रतिशत आबादी निर्भर हैं. इसके अलावा इसमें रहने वाले जिव जंतु भी इसी के सहारे जिंदा रहते हैं. वैसे तो हम गंगा को गंगा मैया कह कर पुकारते हैं लेकिन जब बात गंगा मैया की साफ़ सफाई की आती हैं तो सभी को सांप सूंघ जाता हैं. अक्सर लोग इस गंगा नदी में कचरा फेकने के पहले ज़रा भी नहीं सोचते हैं. माँ समान इस नदी को कुछ लोगो ने कचरा-खाना बना रखा हैं. जब जो मर्जी आए फेंक दिया, जैसा चाहे पानी को दूषित कर दिया. वैसे तो सरकार गंगा को साफ़ रखने के लिए ‘नमामि गंगे’ परियोजना चला रही हैं लेकिन असल जिम्मेदारी तो हम आम लोगो की ही हैं.

ऐसे में आज हम आपको पश्चिम बंगाल के एक ऐसे आदमी से मिलाने जा रहे हैं जिसने इस परियोजना का नाम भी नहीं सूना लेकिन फिर भी वो खुद अपनी मर्जी से गंगा मैया की साफ़ सफाई में लगा हुआ हैं. गंगा मैया मैली ना हो जाए इसलिए ये शख्स रोजाना इस नदी में से प्लास्टिक का कचरा बिन उसे नदी से बाहर ले जाता हैं. ये नेक काम करने वाले शख्स का नाम कलिपडा दास हैं.

48 वर्षीय कलिपडा पहले एक मछवारे थे लेकिन अब पिछले तीन सालो से उन्होंने ये काम छोड़ दिया और गंगा से प्लास्टिक उठाने लगे. वे रोजाना अपना ये सफ़र बेल्दांगा के Kalaberia से शुरू करते हैं. वे अपनी नाव में सवार होकर कई घाट घूमते हैं और वहां से प्लास्टिक का कचरा उठा लेते हैं. इसके बाद उनके काम का अंत Behrampore के भागीरथ ब्रिज या फिर Farshdanga घाट पर हो जाता हैं.

एक मछुआरे से प्लास्टिक बीनने वाला बन वे अपने काम पर गर्व करते हैं. उनका कहना हैं कि ना तो सरकार और ना ही किसी गैर-सरकारी संगठन को गंगा की चिंता हैं. इसलिए मैं ही कई घाटों से प्लास्टिक उठाने का काम करता हूँ. गंगा से वे जो प्लास्टिक उठाते हैं उसे बाद में रीसायकल के लिए बेच देते हैं. आपको जान हैरानी होगी कि कलिपडा रोज 5 से 6 घंटे काम करते हैं और इस दौरान उन्हें गंगा में दो क्विंटल प्लास्टिक का कचरा मिल जाता हैं. इसी से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि गंगा में रोजाना कितना कचरा आता हैं. कलिपडा इस दो क्विंटल कचरे को बेच 2400 से 2600 रुपये कमा लेते हैं. वे बताते हैं कि मैं खुद तो पढ़ा लिखा नहीं हूँ लेकिन अक्सर पढ़े लिखे लोगो को गंगा में कचरा डालते हुए जरूर देखता हूँ.

अब कलिपडा दास तो अपनी तरफ से गंगा को साफ़ करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं लेकिन ये हमारा भी फ़र्ज़ बनता हैं कि हम गंगा या किसी अन्य नदी में कोई भी कचरा ना फेके. कचरा फेकने के लिए डस्टबिन का ही इस्तेमाल करे. नदियाँ हमें शुद्ध जल प्रदान करती हैं ऐसे में उन्हें गंदा करने का कोई सेन्स नहीं बनता हैं.

Back to top button