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100 से भी कम घर वाले इस गांव में हैं 47 से ज्यादा आईएएस और आईपीएस, जानें सफलता का मंत्र

अगर आपने कभी ध्यान दिया होगा तो आप पाएंगे कि पूरे देश भर में अगर सबसे ज्यादा प्रशासनिक अफसर यानी कि IAS निकलते हैं तो वो है पूर्वांचल और उसमें भी बिहार अव्वल है। यह बात सिर्फ देखने या सुनने में नहीं आती है बल्कि इसका साक्ष्य है एक ऐसा ही गांव जहां पर गिन कर कुल 75 घर हैं और सबसे ख़ास बात कि इन सभी घरों में से 47 घर ऐसे हैं जहां से IAS अफसर निकले हैं।

IAS अफसरों का गांव, माधोपट्टी

असल में हम यहां पर जिस गांव की बात कर रहे हैं, वो उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले का एक गांव है जिसका नाम है माधोपट्टी। आपको जानकर हैरानी होगी कि राजपूतों के इस गांव में 100 से भी कम घर हैं मगर 75 घरों के इस गांव में फिलहाल अभी तक कुल 47 आईएएस व आईपीएस ऑफिसर बन चुके हैं। बता दें कि इस गांव के युवकों में अंग्रेजों के ज़माने से ही प्रतियोगी परिक्षाओं के लिए तैयारी शुरू हो गई थी। पहली बार मुस्तफा हुसैन नाम का युवक इस गांव से सन 1914 में पीसीएस में चयनित हुआ था फिर साल 1952 में इन्दू प्रकाश सिंह ने IAS में 13वीं रैंक लायी और फिर तो इस छोटे से गांव में जैसे IAS PCS बनने की होड़ सी लग गयी।

इस गांव के नाम हैं कई रिकॉर्ड

आपको यह सुनकर हैरानी तो हो ही रही होगी कि एक ही गांव से इतने सारे IAS, मगर आपको यह सुनकर और भी ज्यादा आश्चर्य होगा कि इसी गांव के एक परिवार के चार-चार भाइयों ने आईएएस की परीक्षा पास कर नया रिकॉर्ड कायम किया था। सबसे पहले साल 1955 में बड़े भाई विनय ने सिविल सर्विस की परीक्षा पास की और बिहार के प्रमुख सचिव के पद पर चनियत हुए। उनके बाद उनसे छोटे भाई छत्रपाल सिंह और अजय कुमार सिंह ने भी वर्ष 1964 में यह परीक्षा उत्तीर्ण की और इनके ही मार्गदर्शन से इनके सबसे छोटे भाई शशिकांत सिंह ने 1968 में सिविल सर्विस की परीक्षा पास कर नया रिकॉर्ड कायम कर दिया।

मजे की बात तो यह है कि वर्ष 2002 में इनके घर में एक और IAS यानी कि पांचवा IAS बना, जो था शशिकांत का बेटा यशस्वी जिसने इस परीक्षा में 31वीं रैंक हासिल की। हालांकि, यहां के बेटे ही यह कमाल करने में आगे नहीं है बल्कि इस गांव की बेटियां और यहां तक की बहुओं ने भी गांव का गौरव बढ़ाया है। आशा सिंह 1980 में, उषा सिंह 1982 में, कुवंर चंद्रमौल सिंह 1983 में और उनकी पत्नी इन्दू सिंह 1983 में, अमिताभ बेटे इन्दू प्रकाश सिंह 1994 आईपीएएस बने तो उनकी पत्नी सरिता सिंह 1994 में आईपीएस के पद पर चयनित हो चुकी हैं।

इस गांव की पहचान वैसे तो यहां के IAS अफसरों की वजह से है मगर आपकी जानकारी के लिए बता दें कि केवल IAS ही नहीं बल्कि यहां पर PCS अफसरों की भी कमी नहीं है और तो और यहां के बेहद प्रतिभाशाली युवक युवतियां वैज्ञानिक और लेखक भी हैं।

कॉलेज टाइम से शुरू कर देते हैं तैयारी

आईएएस/आईपीएस बनने के के लिए गांव के लोग सिविल परीक्षा की तैयारी कॉलेज टाइम से ही शुरू कर देते हैं। बेसिक तैयारी कॉलेज से शुरू करने के बाद वह पूरी तैयारी के साथ परीक्षा में बैठते हैं। स्थानीय लोगों की मानें तो यहां के लोगों के बीच पढ़ाई को लेकर जुनून देखने को मिलता है। उनमें शिक्षा के प्रति प्रतिस्पर्धा देखने को मिलती है और यही वजह है कि अधिकतर लोग सिविल सर्विस की परीक्षा में उत्तीर्ण होते हैं।

आपको यह जानकर बेहद ही आश्चर्य होगा कि इतने होनहार और प्रतिभाशाली लोगों से संपन्न इस गांव में हमेशा ही सरकारी गाड़ियां नजर आती हैं मगर यहां पर आपको बुनियादी सुविधाओं की बेहद कमी दिखेगी। बताना चाहेंगे कि यह गांव भले ही शिक्षा के मामले में अमीर हो मगर साफ़ पानी, स्कूल, अस्पताल आदि जैसी बेहद जरूरी सुविधाओं की कमी यहां आज भी है। इस गांव में और ना ही आस पास कहीं कोई एटीएम है और तो और इलाज के लिए इस गांव के लोगों को करीब 10 किलोमीटर से भी ज्यादा का सफ़र तय कर के अस्पताल तक जाना पड़ता है।

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