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3 नोबेल विजेताओं ने गेट्स फाउंडेशन को लिखा एक खास पत्र, कहा- पीएम मोदी से अवॉर्ड वापस लिया जाए

भारत के लोकप्रिय पीएम नरेंद्र मोदी इन दिनों अमेरिका दौरे पर हैं और रविवार को वे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मौजूदगी में टेक्सास राज्य के ह्यूस्टन शहर में 50 हजार भारतीय-अमेरिकी को संबोधित करने की तैयारी में हैं। इसी दौरे में पीएम मोदी 24 सितंबर को गेट्स फाउंडेशन की ओर से ग्लोबल गोलकीपर अवॉर्ड से सम्मानित होंगे, लेकिन उनके इस सम्मान से पहले 3 नोबेल विजेताओं ने गेट्स फाउंडेशन को लिखा एक खास पत्र, कौन हैं ये चलिए बताते हैं।

3 नोबेल विजेताओं ने गेट्स फाउंडेशन को लिखा एक खास पत्र

नोबेल पुरस्कार के 3 विजेताओं ने संयुक्त रूप से गेट्स फाउंडेशन को लिखे पत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व उल्लेख करते हुए लिखा कि मोदी राज में भारत एक खतरनाक दौर से गुजर रहा है। यहां का माहौल बहुत ही अराजक है और इनसे लगातार मानव अधिकारों और लोकतंत्र को कमजोर कर रहा है। जिन 3 नोबेल शांति पुरस्कार की ओर से ये पत्र लिखा गया है उनमें से शिरीन एबादी एक बड़ा चेहरा हैं। शिरीन एबादी साल 2003 में नोबेल पुरस्कार हासिल कर चुके हैं जबकि साल 2011 में नोबेल शांति पुरस्कार विजेता तवाक्कुल अब्दील-सलामन कामरान हैं और साल 1976 के नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मैरियड मैगुअर हैं और इन तीनों ने ही गेट्स फाउंडेशन को पत्र लिखा है।

शिरीन एबादी

पत्र में ऐसा बताया गया है कि हम महात्मा गांधी और उनके बनाए गए राष्ट्र सम्मान, सहिष्णुता और समानता के प्रशंसक हैं। असल में गांधी के विचार आपके संगठन में भी परिलक्षित होते हैं क्योंकि आपकी वेबसाइट पर पहला संदेश ‘सभी का जीवन मूल्य है’ लिखा हुआ है। इस पत्र में ये भी लिखा है कि हमें तब बहुत निराशा हुई जब बिल और मेलिंडा गेट्स फाउंडेन इस महीने के अंत में नरेंद्र मोदी को अवॉर्ड देने वाले हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राज में भारत लोकतंत्र और मानवाधिकार दोनों ही कमजोर हेते जा रहे हैं। यह हमें विशेष रूप से परेशान कर रहा है क्योंकि आपके फाउंडेशन का मिशन ‘जीवन को संरक्षित करना और असमानता से लड़ना’ है।

पत्र में इस बात का जिक्र भी है उदाहरण के तौर पर अगर देखा जाए तो अल्पसंख्यकों खासकर मुस्लिमों, ईसाइयों और दलितों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं। साल 2014 में जब से भारत में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी है तब से संगठित लोगों की ओर से हिंसा की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं जिससे कानून के शासन में कमजोरी आई है। ह्यूमन राइट वॉच के मुताबिक, भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने भी इसकी चेतावनी दी है कि भीड़तंत्र की खतरनाक हरकतों के लिए कानू को खत्म करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है।

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