अध्यात्म

गीता का ज्ञान: क्रोध और लोभ का त्याग करने से हर कार्य में मिल जाती है सफलता

भगवान श्री कृष्ण जी ने महाभारत युद्ध के दौरान अर्जुन को कई सारे उपदेश दिए थे और इन उपदेशों का पालन कर अर्जुन को सही राह मिल सकी थी। भगवान श्री कृष्ण जी द्वारा दिए गए इन उपदेशों को अगर हम अपने जीवन में अपना लें, तो हम भी जीवन में कामयाब हो सकते हैं और हमारा जीवन सुख और शांति के साथ बीत सकता है। भगवान श्री कृष्ण जी द्वारा अर्जुन को महाभारत युद्ध के दौरान कुल 700 उपदेश दिए गए थे और ये सारे उपदेश गीता में लिखे हुए हैं। इन उपदेशों को संस्कृति भाषा में लिखा गया है। इन 700 उपदेश में से मात्र नीचे बताए गए तीन उपदेशों का पालन अगर मनुष्य सही कर लें, तो उसका भाग्य बदल सकता है और उसे जीवन की सही राह मिल जाती है।

गीता में लिखे गए श्लोक

प्रथम श्लोक –

त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मनः।
कामः क्रोधस्तथा लोभस्तरमादेतत्त्रयं त्यजेत्।।

इस श्लोक का अर्थ – इस श्लोक के जरिए कृष्ण जी ने लोगों को बताया है कि क्रोध और लोभ, ये दोनों चीजें इंसान को बर्बाद कर देती हैं। इसलिए इंसान को जीवन में इन दोनों चीजों का त्याग कर देना चाहिए। जो लोग क्रोध करते हैं वो लोग अक्सर दूसरे लोगों के साथ गलत बर्ताव करते हैं। इसी तरह से लोभ यानी चीजों का लालच करने से इंसान की दिमाग खराब हो जाता है और वो लालच में आकर गलत काम करने लग जाता है। जो लोग अधिक क्रोध करते हैं और जो लालच की भावना मन में रखते हैं, वो अपने जीवन में कामयाब नहीं हो पाते हैं। इतना ही नहीं ऐसे लोगों को स्वर्ग में जगह भी नहीं मिलती है। इसलिए आप अपने जीवन से ये दोनों चीजों को दूर ही रखें और सदा शांत मन से और बिना किसी क्रोध के काम करें।

दूसरा श्लोक

तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।।

इस श्लोक का अर्थ- इंसान का नियंत्रण अपनी सभी पांच इंद्रियों पर होना बेहद ही जरूरी होता है। हमारी पांच इंद्रियां यानी जीभ, त्वचा, आंखें, कान और नाक के माध्यम से ही हम चीजों को महसूस करते हैं। भगवान कृष्ण जी के अनुसार इन पांचों चीजों को काबू में रखने से दिमाग स्थिर बना रहता है और इंसान का मन अपने कार्य में लगा रहता है।

तीसरा श्लोक

योगस्थ: कुरु कर्माणि संग त्यक्तवा धनंजय।
सिद्धय-सिद्धयो: समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते।।

इस श्लोक का अर्थ- कृष्ण जी के अनुसार इंसान को अपने धर्म का पालन सदा सच्चे मन से करना चाहिए। हम जो कर्म करते हैं हमें अपने जीवन में वो ही वापस मिलता है। इसलिए हमें सदा अच्छे कर्म ही करने चाहिए और कभी भी कोई भी कार्य बुरी नियत से नहीं करना चाहिए। इतना ही नहीं कृष्ण जी के अनुसार कर्तव्य का पालन करना ही धर्म का पालन होता है। इसलिए आप अपने कर्तव्य को सही से निभाएं और इनका पालन करें।

ऊपर बताए गई बातों को आप अपने जीवन में जरूर अपनाएं। इन चीजों का पालन करने से आपके जीवन को सही राह मिलेगी और आप भी धर्म के रास्ते चल सकेंगे।

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