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मैं भगवान से रोज प्रार्थना करता हूँ कि मेरे पिता का कर्ज जल्दी चुक जाए ताकि मैं स्कूल जा सकूं

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में इंसान इतना व्यस्त हो गया हैं कि अपने व्यवहार में भी दिन प्रतिदिन गिरावट करता जा रहा हैं. उसने लोगो से दो पल रुक हंस के बातचीत करना छोड़ दिया हैं. एक जमाना हुआ करता था जब लोग अजनबियों के साथ भी घंटो बातचीत कर लिया करते थे. लेकिन आजकल लोग खुद में ही इतना मगन रहते हैं कि दूसरों को अहमियत देना ही भूल जाते हैं. खासकर छोटे मोटे काम करने वाले लोगो के साथ बहुत कम ही प्यार से पेश आते हैं. मसलन आप सभी ने भी सड़क पर बैठे व्यक्ति से अपने जूते पॉलिश जरूर करवाए होंगे. लेकिन क्या आप ने कभी इस जूते पॉलिश करने वाले की तरफ ध्यान से देखा हैं? उससे बात की हैं? उसे देख मुस्कुराए हैं? शायद आप के लिए ये कोई बड़ी बात नहीं हैं लेकिन बूट पॉलिश वाले के लिए दो मोठे बोल और एक प्यारी सी मुस्कान शायद बहुत मायने रहती हैं.

बात ये हैं कि हम्पी गाँव के एक बच्चे ने इसी बात को लेकर अपना दर्द बयान किया हैं. हम्पी मुंबई की सड़को पर जूते पॉलिश करने का काम करता हैं. उसके माता पिता कयूपर बहुत कर्ज हैं इसलिए उनकी मदद करने वो अपने चाचा के साथ जूते पॉलिश करने बैठ जाता हैं. बच्चे को लोगो से एक शिकायत हैं कि वो सुबह से शाम तक बैठा रहता हैं, सैकड़ों लोग उससे अपना जूता पॉलिश भी करवाते है लेकिन इनमे से कोई भी कभी उसकी तरफ नजरे नहीं घुमाता हैं. मानो वो इस दुनियां में हैं ही नहीं. अदृश्य हो गया हो. उसका कोई वजूद ही नहीं हैं.

‘ह्यूमन्‍स ऑफ बॉम्‍बे’ ने इस बच्चे के दिल की बात अपने फेसबुक पेज पर शेयर की हैं. वो कहता हैं “मैं हम्पी से हूँ, यहाँ (मुंबई) पिछले दो महीने से स्कूल की छुट्टियों में अपने चाचा की दूकान पर काम करता हूँ, ताकि माता पिता का कर्ज चुक जाए. मैं यहाँ सुबह से लेकर शाम तक बैठता हूँ, कई प्रकार के ग्राहक रोज आते हैं. कॉलेज जाने वाले स्टूडेंट, ऑफिस जाने वाले, आंटियां और अंकल्स इत्यादि. मैं बस यहाँ बैठा रहता हूँ और उने जूते ठीक या साफ़ करता हूँ. पर आज तक किसी ने रुक कर मुझ से दो पल बातें नहीं की. जैसे मैं अदृश्य हूँ. कुछ लोग तो मेरी आँखों में देखते तक नहीं हैं. कुछ अपना काम करवा जल्दी से निकल जाते हैं. और कुछ बिना किसी वजह के मुझ से क्रूरता से बात करते हैं. यदि मैं बातचीत करू तो वो मुझे या तो इग्नोर कर देते है या कहते हैं अपने काम पर ध्यान दो.

बच्चा आगे बताता हैं “ऐसे में मैं बस यही सोचता हूँ कि यदि मैं पढ़ा लिखा होता, इस सड़क पर बैठने की बजाए किसी अच्छी दूकान में बैठा होता, तो क्या तब भी लोग मेरे साथ ऐसा ही व्यवहार करते? जैसे मैं उनसे बात करने के लायक ही नहीं हूँ. पहले मुझे ये बहुत बुरा लगता था, लेकिन अब आदत हो गई हैं. मैं भगवान से रोज प्रार्थना करता हूँ कि मेरे माता पिता का कर्ज जल्दी चुक जाए ताकि मैं स्कूल जा सकूं, अपनी पढ़ाई पूरी कर सकूं, नौकरी कर सकूं, अच्छी सैलरी मिल सके. सबसे महत्वपूर्ण बात कि मैं लोगो के सामने अदृश्य ना बना रहूँ. मुझे लगता हैं कि अब मेरे सभी सपने पुरे होंगे क्योंकि आप जैसे लोगो ने आज रूककर मुझ से बात की.

दोस्तों कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता हैं. सभी लोगो को सामान महत्त्व देना सीखिए. आपी थोड़ी सी बातचीत और मुस्कराहट कई लोगो का दिन बना सकती हैं.

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