अध्यात्म

बेहद ही पवित्र धाम है मणिकर्ण, यहां पर शिव के तीसरे नेत्र से प्रकट हुई थीं नयना देवी

मणिकर्ण एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है जो कि हिमाचल प्रदेश राज्य में है। मणिकर्ण में शिव मंदिर और गुरुद्वारा स्थित है। इतना ही नहीं गुरुद्वारे के पास ही एक नदी भी है और इस नदी का पानी गर्म रहता है। हर साल इस जगह पर लाखों की संख्या में लोग आते हैं और गुरुद्वारे और शिव मंदिर में जाकर भगवान के दर्शन करते हैं। मणिकर्ण में ही ब्रह्म गंगा और पार्वती गंगा का संगम भी होता है।

मणिकर्ण से जुड़ी कथा

पुराणों के अनुसार इसी जगह पर भगवान शिव ने अपनी तीसरी आंख खोली थी। कहा जाता है कि एक बार यहां पर स्थित नदी पर पार्वती मां स्नान कर रही थी। उसी दौरान पार्वती मां के कान से उनका मणि नदी में गिर गया। पार्वती मां ने अपना मणि ढूढ़ने की खूब कोशिश की लेकिन उनको मणि नहीं मिला पाया। पार्वती मां ने मणि  खोने की बात शिव भगवान को बताई और शिव भगवान से कहा कि वो किसी तरह उनका मणि  खोज दें। शिव भगवान ने पार्वती मां का मणि खोजने का कार्य अपने गणों को दे दिया। मगर कोई भी मणि को नहीं खोज पाया। मणि ना मिलने से क्रोधित होकर शिव भगवान ने अपनी तीसरा नेत्र खोल दिया। तीसरा नेत्र खोलते ही नयना देवी प्रकट हुईं। शिव भगवान ने नयना देवी को मणि खोजने की जिम्मेदारी दी। नयना देवी ने पाताल लोक जाकर शेषनाग से मणि के बारे में पूछा। ये मणि शेषनाग के पास था और शेषनाग को जब ये पता चला कि ये मणि पार्वती मां का है तो उन्हें ये मणि नयना को वापस कर दिया। इस मणि के अलावा शेषनाग ने और भी कई तरह के मणि भगवान शिव को दिए। लेकिन भगवान शिव ने अन्य मणियों को पत्थर बना दिया और उन्हें नदी के अंदर डाल दिया। ऐसा माना जाता है कि यहां पर स्थित नदी में जो पत्थर है वो मणि हैं।

नदी का पानी है गर्म

मणिकर्ण के पास ही एक गुरुद्वारा भी स्थित है और इस गुरद्वारे का पास एक गर्म पानी का स्रोत भी है। हर मौसम में यहां का पानी गर्म रहता है। ये पानी क्यों गर्म रहता है ये एक रहस्य बना हुआ है। गुरुद्वारे का प्रसाद बनाने के लिए इस पानी का ही इस्तेमाल किया जाता है। ये पानी इतना गर्म है कि इस पानी में चावल मिनटों में पक जाते हैं। जो लोग इस जगह पर आते हैं वो अपनी मन्नत मांगते हुए इस पानी में चावल की एक छोटी सी पोटली डालते हैं। ये पानी इतना गर्म होता है कि इस पानी के अंदर कोई भी व्यक्ति अपना हाथ नहीं डाल सकता है।

गुरुद्वारे के ठीक सामने यहां पर एक ऊंची पर्वत चोटियां भी हैं, जो कि हरेन्द्र पर्वत के नाम से जानी जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इस जगह पर भगवान ब्रह्मा ने कठोर तप किया था। इसके अलावा इस जगह पर राम भगवान ने भी कई बार तपस्या की थी।

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