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कानपुर शहर में आठ दिनों तक मनाई जाती है होली, इसके पीछे है बड़ी दिलचस्प कहानी

न्यूज़ट्रेंड वेब डेस्क: होली के त्यौहार की धूम पूरे देश में मची हुई है। हर घर में होली को लेकर के तैयारियां शुरू हो गई हैंं। 20 तारीख को होलिका दहन होगा और उसके बाद  खेली जाती है होली, लेकिन बात करें मथुरा वृंदावन की तो इन जगहों पर होलिका दहन के पहले से ही रंग खेलना शुरू हो जाता है। लेकिन बात कानपुर की करें तो यहां रंग तो होलिका दहन के बाद शुरू होता है लेकिन उसके बाद करीब एक हफ्ते तक यहां रंग चलता रहता है। बता दें कि होली के सातवें दिन यहां गंगामेला मनाया जाता है।

गंगामेला सिर्फ कानपुर में ही मनाया जाता है यहां पर लोग इसे होली से ज्यादा मनाते हैं। बता दें कि इस गंगामेला को मनाने के पीछे ही एक कहानी जुड़ी हुई है जो शायद ही बहुत कम लोगों को पता होगी। यह कहानी काफी रोचक है और स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी हुई है, जिस वजह से यहां पर गंगामेला का त्यौहार मनाया जाता है। तो चलिए आपको बताते हैं कि आखिर क्या है वो रोचक कहानी।

कानपुर में एक जगह है हटिया, आजादी से पहले हटिया शहर का दिल हुआ करता था। हटिया में लोहा, कपड़ा और गल्ले का व्यापार होता था। वहां के व्यापारियों के यहां सभी स्वतंत्रता सेनानी और आजादी के दीवाने डेरा जमाते थे और अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन की रणनीति बनाते थे। बता दें कि गंगामेला मनाने की शुरूआत साल 1942 से शुरू हुई थी।

इस तरह हुई थी गंगामेला की शुरूआत

बता दें कि हटिया मुहल्ले में हर साल बड़े धूम धाम से होली का त्यौहार मनाया जाता था। तब वहां पर गुलाब चंद सेठ नाम के बड़े व्यापारी हुआ करते थे, जो बड़ी धूमधाम से हर साल होली का आयोजन करते थे। एक बार होली के दिन कुछ अंग्रेजी अफसर घोड़े पर सवार होकर वहां पहुंचे और होली बंद करने को कहा, जिसके लिए गुलाब चंद सेठ ने मना कर दिया। उनकी बगावत देखकर अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया जब लोगों ने उनका विरोध किया तो अंग्रेजों ने जागेश्वर त्रिवेदी, पं. मुंशीराम शर्मा सोम, रघुबर दयाल, बालकृष्ण शर्मा नवीन, श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’, बुद्धूलाल मेहरोत्रा और हामिद खां को भी हुकूमत के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया और सरसैया घाट स्थित जिला कारागार में बंद कर दिया।

जब शहर के लोगों को इस बात का पता लगा तो सभी लोगों को काफी गुस्सा आ गया और लोग भड़क गए। सबने एकजुट होकर अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया जिसमें कई स्वतंत्रता सेनानी भी जुड़ते चले गए। लगातार आठ दिनों के विरोध होता रहा जिसके बाद अंग्रेज अधिकारी घबरा गए और उन्हें गिरफ्तार लोगों को छोड़ना पड़ा। बता दें जिस दिन उन लोगों की रिहाई हुई उस दिन अनुराधा नक्षत्र था। जिस दिन लोग रिहा हुए जेल के बाहर बारी संख्या में लोग इकट्ठा हुए थे, इस खुशी में लोगों ने हटिया से रंग भरा ठेला निकाला और लोगों ने जमकर रंग खेला। उसी दिन शाम को गंगा किनारे सरसैया घाट पर मेला लगाया गया और तब से लेकर आज तक कानपुर शहर में यह त्यौहार मनाया जा रहा है।

बता दें की बीतते समय के बाद यह मेला विशाल होता जा रहा है। अब बहुत ही भव्य मेले का आयोजन होता है। इस आयोजन में कई लोगों की सहभागिता होती है। हालांकि पहले की और आज की होली में काफी बदलाव आ चुका है। पहले आजादी के बाद पूरे आठ दिन तक लोग जमकर होली खेलते थे। एक बड़े से मैदान में होलिका दहन किया जाता था जिसमें सब लोग इकट्ठा होते थे, लेकिन अब लोग घर के पास होली जलाते हैं।

बता दें कि होली एक मेलजोल और सौहार्द का प्रतीक माने जाने वाला त्यौहार है इस मौके पर लोग फाग गाते हैं। और भले ही होली वाले दिन लोग भले ही रंग कम खेलें लेकिन गंगा मेला वाले दिन सभी लोग हटिया पहुंच जाते थे।

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