अध्यात्म

वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती के पूजन का विधि, शुभ मुहुर्त और मंत्र तभी मिलेगा मां का आर्शीवाद

न्यूज़ट्रेंड वेब डेस्क:  हिंदू धर्म में कई त्यौहार और उपवास मनाए जाते हैं और हर किसी का एक अलग महत्व होता है। बता दें कि आने वाली 10 फरवरी को वसंत पंचमी है। वसंत पंचमी हर साल हिंदी कैलेंडर के अनुसार माघ महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है। इस दिन मां सरस्वी की पूजा की जाती है।

पौराणिक मान्यतों की माने तो ऐसा कहा जाता है आज ही के दिन से शीत यानि की सर्दी का मौसम खत्म होगा और ऋतुराज वसंत का आगमन होता है। वहीं मां सरस्वती के पूजन के लिए ऐसी मान्यता है कि मां सरस्वती की पूजा करने से वो बुद्धि और विद्या दोनों देती हैं, क्योंकि उनकी विद्या की देवी माना जाता है। और कौन नहीं चाहेगा कि उसे विद्या और बुद्धि मिले जिसके चलते इस दिन अमूमन प्रत्येक हिंदू के घर में ये पूजा होती है। तो चलिए आपको बताते हैं इस दिन कब, कैसे और किस समय में करें सरस्वती मां का पूजन।

सरस्वती पूजा का शुभ मुहूर्त

सरस्वती पूजा मुहूर्त : सुबह 7.15 से 12.52

पंचमी तिथि का आरंभ : 9 फरवरी 2019 को 12.25 बजे से प्रारंभ होगा।

पंचमी तिथि समाप्त : 10 फरवरी 2019, रविवार को 14.08 बजे होगी।

सरस्वती पूजा की विधि-

जैसा की हमने आपको बताया कि इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती हैं। तो इस दिन सर्वप्रथम सुबह उठकर अपने दैनिक कार्यों को करके और स्नान के बाद मां सरस्वती की आराधना करी जाती है। आपको करना ये है कि प्रात: काल स्नान के बाद पूजा शुरू करने से पहले सर्वप्रथम भगवान विष्णु को नमन कर पूजा की शुरूआत करनी चाहिए। क्योंकि शास्त्रों के अनुसार किसी भी पूजा की शुरूआत सर्वप्रथम गणेश भगवान से की जाना शुभ माना जाता है। बता दें कि इस दिन पीले वस्त्रों को धारण करना शुभ माना जाता है।

जिसके बाद आपको सरस्वती माता की तस्वीर या मूर्ति जिसकी भी आप पूजा कर रहे हैं उसमें सफेद रंग के फूल, चंदन, श्वेत वस्त्रों को अवश्य लें। सर्वप्रथम माता को स्नाना कराए और उसके बाद उनको पुष्प और वस्त्र (पीले रंग के वस्त्र) धारण कराए, तत्पश्चात माता को सिंदूर लगाएं और उनको प्रसाद के तौर पर जो मिठाई चढ़ा रहे हैं उसको रखें, ध्यान दें कि पूजा के स्थान पर अपनी कुछ पुस्तकों को भी रखें और उसके बाद पूजा आरंभ करें।

देवी सरस्वती का मंत्र-

इस पूजा में सर्वप्रथम सरस्वती कवच का पाठ करें। ऐसा माना जाता है कि मां सरस्वतीजी के पूजा के वक्त इस मंत्र का जाप करने से असीम पुण्य मिलता है-

‘श्रीं ह्रीं सरस्वत्यै स्वाहा’

मां सरस्‍वती का श्‍लोक : मां सरस्वती की आराधना करते वक्‍त इस श्‍लोक का उच्‍चारण करना चाहिए-

ॐ श्री सरस्वती शुक्लवर्णां सस्मितां सुमनोहराम्।

कोटिचंद्रप्रभामुष्टपुष्टश्रीयुक्तविग्रहाम्।।

वह्निशुद्धां शुकाधानां वीणापुस्तकमधारिणीम्।

रत्नसारेन्द्रनिर्माणनवभूषणभूषिताम्।

सुपूजितां सुरगणैब्रह्मविष्णुशिवादिभि:।

वन्दे भक्तया वन्दिता च।।

मंत्रों की बाद माता की आरती करें और फिर सभी को आरती दें और प्रसाद बाटें।

विशेष उपाय-

यदि आपका बच्चा पढ़ने में कमजोर है तो वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की विधि-विधान से पूजा करने के बाद माता को चढाए गए पीले वस्त्र का कुछ भाग लें और पूजा में प्रयोग की गई हल्दी को उस कपड़े में बांधकर अपने बच्चे की बाजू में बांध दें।

मां सरस्वती को ‘वाणी की देवी’ कहा जाता है, इसलिए इस दिन संगीत से जुड़े लोग, मीडिया, एंकर, अधिवक्ता, अध्यापकों को भी वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती की पूजा करना शुभ और उनके लिए फलदायी माना जाता है।

वसंत पंचमी का सामाजिक महत्व-

भारतीय पंचांग के अनुसार पूरे साल में 6 ऋतुएं होती हैं। जिसमें वसंत को ‘ऋतुओं का राजा’ कहा जाता है। ये इसलिए और खास होता है क्योंकि इसी ऋतु में फूल खिलते हैं और नई फसल भी आती है। बता दें कि इसी ऋतु में सरसों की फसल, आमों के पेड़ों पर फूल और चारों तरफ हरियाली देखने को मिलती है।

बता दें कि इस दिन को इसलिए और खास माना जाता है क्योंकि शास्त्रों के अनुसार आज ही के दिन मां सरस्वती का जन्म हुआ था। जिस वजह से ये त्यौहार और खास हो जाता है। इस दिन लोग नदियों में स्नान करते हैं और साथ ही कई जगहों पर वसंत मेले का आयोजन भी किया जाता है।

वसंत पंचमी का पौराणिक महत्व-

वहीं इस त्यौहार के पौराणिक महत्व की बात करें तो ऐसा कहा जाता है कि ब्रहामण की रचना करने वाले ब्रह्मा जी ने आज ही के दिन मनुष्य और जीव-जंतु योनि की रचना की थी। लेकिन अपनी इस रचना के बाद उनको धरती पर किसी प्रकार की कमी महसूस हुई जिसके बाद उन्होंने एक ऐसी स्त्री की रचना की जो बेहद ही सुंदर थी और उसके चार हाथ थे। जिसके एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में वरमुद्रा तथा अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी। और ये थी सरस्वती माता।

बता दें कि मां सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादिनी और वाग्देवी आदि कई नामों से भी जाना जाता है। क्योंकि माता की उत्पत्ति इसी दिन हुई थी इसलिए हर साल वसंत पंचमी के दिन को माता के जन्म का दिन मानकर और उनकी कृपा पाने के लिए उनकी पूजा-अर्चना की जाती है।

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