अध्यात्म

सीता के स्वयंवर में जनक ने नहीं भेजा था राजा दशरथ को आमंत्रण जाने क्या था खास वजह..

यूं तो बचपन से लेकर आज तक हमने रामायण से जुड़ी कई कहानियां सुन चुके हैं, जिसमें से एक सीता का स्वयंवर। जी हां, रामायण में सीता स्वयंवर एक अहम पार्ट है। सीता के स्वयंवर के बिना रामायण की कहानी पूरी भी नहीं हो सकती है। ऐसे में हम सभी जानते हैं कि भगवान श्रीराम ने धनुष पर प्रत्यांचा चढ़ाकर सीता से विवाह किया था, जोकि स्वयंवर की शर्त थी। धनुष पर प्रत्यांचा चढ़ाने में बड़े से बड़े विद्वान फेल हो गये थे, लेकिन भगवान राम ने एक झटके में ही धनुष पर प्रत्यांचा चढ़ा दी, लेकिन इस स्वयंवर में राजा दशरथ को आमंत्रण नहीं दिया गया था। तो चलिए जानते हैं कि ऐसा क्यों हुआ था?

एक श्राप से शुरू हुई कहानी

राजा जनक के शासनकाल में एक व्यक्ति का विवाह हुआ और वह विवाह के बाद पहली बार अपने ससुराल जा रहा था। ऐसे में उस व्यक्ति के साथ एक घटना घटित हो गई। जी हां, वह व्यक्ति जब रास्ते से जा रहा था, तब उसे एक दलदल में गाय फंसी हुई नज़र आई, जोकि आधी दलदल में फंस गई थी। गाय को देखकर व्यक्ति ने सोचा कि मैं उसे बचा नहीं पाऊंगा और उसके पैर रखकर वह जाने लगा तो गाय की मोत हो गई, लेकिन गाय ने उसे श्राप दे दिया कि जिस व्यक्ति को पहले देखेगा, उसकी मौत हो जाएगी, ऐसे में वह व्यक्ति ससुराल के जाकर घर के दरवाजे पर घबराया हुआ बैठ गया।

पत्नी को सुनाया पूरा वृत्तान्त

जब ससुराल में उसकी पत्नी ने उसे देखा तो वह पूछने लगी कि आपको क्या हुआ तो उसने कहा कि मैं तुम्हे नहीं देखूंगा और उसने रास्ते की सारी बाते अपनी पत्नी को बता दी। ऐसे में जब उसकी पत्नी ने कहा कि मैं एक पतिव्रता पत्नी हूं और मुझे कुछ नहीं होगा। ऐसे में उस व्यक्ति ने अपनी पत्नी की बात मानकर उसे देखने लगा तो उसकी आंख चली गई । ऐसे में गौ हत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए पति पत्नी राजा जनक के दरबार में गये।

राजा जनक के दरबार में लगाई मदद की गुहार

पति पत्नी जब राजा जनक के दरबार गए तो मदद की गुहार लगाने लगे और पूरा वृत्तान्त सुनाया। ऐसे में राजा जनक ने विद्वानों को बुलाकर इसका समाधान मांगा। तब विद्वानों ने कहा कि यदि कोई पतिव्रता स्त्री छलनी में गंगाजल भरकर इनके आंखों पर छिटे मारे तो गौ हत्या का दोष और यह श्राप पूरी तरह से दूर हो जाएगा। ऐसे में राजा जनक ने उन दोनों की मदद करने के लिए पतिव्रता स्त्री की तलाश करने का आदेश दिया।

जनकपुरी में नहीं मिली कोई पतिव्रता स्त्री

राजा जनक ने अपने दरबार में पूछा तो वहां कोई भी स्त्री पतिव्रता नहीं ंथी, ऐसे में उन्होंने अन्य राज्यों में इसका संदेश दिया, जिसमें अयोध्या भी शामिल था। राजा दशरथ को जब यह पता चला तो उन्होंने यह सूचना पूरे अयोध्या में फैला दिया और उसके बाद वहां की एक एक स्त्री पतिव्रता निकली। यह देखकर राजा दशरथ को बहुत आश्चर्य हुआ और उन्होंने इसके लिए एक स्त्री को राजा जनक के दरबार भेजा।

झाड़ू वाली गई राजा जनक के दरबार

राजा दशरथ ने अयोध्या की एक झाड़ू वाली को बड़े ही शान से राजा जनक के दरबार भेज दिया और उसने वहां जाकर उस व्यक्ति को श्राप से मुक्ति दिलाई दी। स्त्री ने गंगाजल को झलनी में भरते हुए कहा कि यदि मैं पतिव्रता हूं तो गंगा माता गंगाजल को छलनी से गिरने नहीं देना और हुआ भी कुछ ऐसा।

तो इसलिए नहीं मिला था राजा दशरथ को आमंत्रण

इस पूरे वाकया को ध्यान में रखते हुए राजा जनक ने अपनी बेटी सीता के स्वयंवर में राजा दशरथ को न्यौता नहीं दिया था। राजा जनक का मानना था कि झाडू़ वाली की तरह ही राजा दशरथ किसी को भी मेरी बेटी के लिए भेज देंगे और वह धनुष पर प्रत्यांचा चढ़ा देगा, तो सीता को उसी से विवाह करना पड़ेगा। इसीलिए राजा जनक ने दशरथ को नहीं बुलाया था।

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