अध्यात्म

भगवान ब्रह्मा की आखिर क्यों नहीं होती कहीं भी पूजा, नहीं जानते होंगे ये कहानी

हिंदु धर्म में 36 करोड़ देवी देवता हैं ऐसा माना जाता है। साथ ही इन सभी देवी देवताओं की किसी ना किसी रुप में पूजा भी की जाती है। इसमें से सबसे मुख्य त्रिमुर्तियों को माना गया है यानी ब्रह्मा, विष्णु, महेश। ब्रह्मा जो हमारे सृष्टि के रचयिता है, विष्णु जो हमारी धरती चलाते हैं और महेश यानी शिव जिन्हें मृत्यु का देवता कहते हैं। इनमें से विष्णु और शिव की महिमा अपरमपार मानते हैं औऱ हर रुप में इनकी पूजा होती है, लेकिन सृष्टि का निर्माण करने वाले भगवान ब्रह्मा की पूरे संसार में कहीं पूजा नहीं होती, आइये जानते हैं क्यों।

सिर्फ पुष्कर में है ब्रह्मा का मंदिर

ब्रह्मा जी सिर्फ सृष्टि के रचयिता नही है बल्कि उन्हें वेदों का भी देवता माना जाता है। जिन चार वेदों के बारे में आज हम जानते हैं वह ब्रहमा द्वारा ही दिया गया है। ब्रह्मा की शारीरिक संरचना भी सबसे अलग बताई जाती है। उनके चार हाथ और चार पैर हैं। ब्रह्मा जी ने इतना सबकुछ सृष्टि के लिए दिया है इसके बाद भी सिर्फ उनकी ही पूजा करना निषेध है। पूरे संसार में सिर्फ पुष्कर में ब्रह्मा जी का मंदिर है। उनकी पूजा ना करने के पीछे उनको मिला एक श्राप है।

दरअसल एक बार ब्रह्माजी ने संसार के कल्याण के लिए यज्ञ करने का मन बनाया। उन्हें यज्ञ के लिए एक अच्छी जगह चाहिए थी। उन्होंने अपने बांह से निकले कमल को धरती पर भेजा जिससे वह सही जगह का चुनाव कर पाए। कहते हैं जिस स्थान पर कमल गिरा वह ब्रह्मा जी का मंदिर बनाया गया। वह जगह है पुष्कर जो की राजस्थान में हैं। इस फूल का अंश गिरने से तालाब का निर्माण भी वहीं हुआ था।

नहीं पहुंची सावित्री

इसके बाद ब्रह्मा जी को अब सिर्फ यज्ञ करना था, लेकिन उनकी पत्नी सावित्री वहां नहीं पहुंची थी। एक विवाहित पुरुष बिना अपनी पत्नी के किसी भी तरह का पूजा पाठ या यज्ञ नहीं कर सकता। ऐसे में पूजा का समय बीतने लगा। सभी देवी देवता यज्ञ स्थान पर पहुंच गए, लेकिन सावित्री फिर भी नहीं आई। समय निकलने में थोड़ी ही समय रह गया तो ब्रहमा जी ने नंदिनी गाय के मुख से गायत्री को प्रकट कर पहले उनसे विवाह किया और उसके बाद यज्ञ पूरा किया।

ब्रह्मा को दिया श्राप

यज्ञ होने लगा की सावित्री वहां पहुंच गई। उन्होंने देखा की उनके स्थान पर उनके पति ने किसी दूसरी स्त्री को बैठा रखा है। सावित्री यह देखकर क्रोधित हो गई औऱ ब्रह्मा जी को श्राप दे दिया कि आज से पृथ्वी लोक पर आपकी कहीं भी पूजा नहीं होगी। इतना कहने के बाद जब उनका क्रोध शांत हुआ तो सबने उन्हें समझाया औऱ श्राप वापस लेने को कहा। अब मुंह से निकले शब्द बदल नहीं सकते थे। सावित्री ने कहा क सिर्फ पुष्कर में ही ब्रह्मा जी की पूजा होगी और इसके अलावा कहीं भी आपकी पूजा करना निषेध होगा।

इसके बाद से ब्रह्मा जी पुष्कर में 10 हजार साल तक रहे। इतने साल में उन्होंने सृष्टि की रचना की। माता सावित्री पुष्कर के पहाड़ियों में जाकर तपस्या करने लगीं। मान्यता है कि मां सावित्री के इस मंदिर में पूजा करने से पति की उम्र लंबी होती है और सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती हैं।

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