अध्यात्म

श्रीकृष्ण की पत्नी सत्यभामा ने पूछा- मुझमें और सीता में अधिक सुंदर कौन, श्रीकृष्ण ने दिया ऐसा जवाब

श्रीकृष्ण के ह्दय में तो राधारानी का वास था, लेकिन इसके अलावा उनकी आठ रानियां और भी थी। रुक्मणि उनकी पटरानी थी और बाकी पत्नियां थी जांबनंति, सत्यभाना, कालिंदी, मित्रबिंदा, सत्या, भद्रा और लक्ष्मणा। यह सभी रानियां श्रीकृष्ण के ह्द्य की करीब थीं। इनमें से रानी सत्यभामा को अपनी खूबसूरती का कुछ ज्यादा ही घमंड था। उन्हें लगता था कि पूरे जगत में सिर्फ एक वहीं हैं जो अत्यंत सुंदर हैं। उन्हें इस बात का अंहकार था और उनके अंहकार को श्रीकृष्ण ने बड़ी ही चालाकी से तोड़ा था। उनके साथ साथ गरुड़ और सुदर्शन चक्र के अंहकार को भी कृष्ण ने तोड़ दिया था।

सत्यभामा ने पूछा सवाल

श्रीकृष्ण द्वारिका में अपनी पत्नी रानी सत्यभामा के साथ विराजमान थे। उसी वक्त सत्यभामा ने व्यंग की हंसी हंसते हुए श्रीकृष्ण से पूछा कि आपने त्रेतायुग में राम के रुप में अवतार लिया था और उस समय आपकी पत्नी सीता बनी थीं। क्या वह मुझसे भी अधिक रुपवती थीँ। श्रीकृष्ण सत्यभामा का प्रश्न सुनकर कुछ कहने वाले थे कि गरुड़ ने भी एक सवाल खड़ा कर दिया और कहा कि प्रभु क्या कोई इस संसार में है जो मुझसे भी तेज उड़ सकता हो। सुदर्शन ने कहा कि मेरी ही वजह से आपने कितनी बार शत्रुओं का नाश किया है। क्या कोई मुझसे भी शक्तिशाली है? तीनों के सवालों से प्रभु जान गए कि इनमें घमंड आ चुका है जो किसी जवाब के देने से नहीं जाएगा बल्कि इन्हें दिखाना पड़ेगा।श्रीकृष्ण को एक युक्ति सूझी तो उन्होंने गरुड़ से कहा कि तुम हनुमान  के पास जाओ और कहना की भगवान राम औऱ सीता मां उनकी दरबार में प्रतीक्षा कर रहे हैं। गरुड़ देव तुरंत यह सुनकर चले गए। श्रीकृष्ण ने सत्यभामा से कहा कि आप सीता के रुप में तैयार होकर सामने आईगा। साथ ही सुदर्शन चक्र को आदेश दिया की तुम महल के प्रवेश द्वार पर पहरा दो और ध्यान देना की मेरी आज्ञा के बगैर कोई महल में प्रवेश ना करें। सुदर्शन ने तुरंत मान लिया औऱ प्रवेश द्वार पर खड़ा हो गया। उधर कृष्ण राम रुप में आ गए।

हनुमान की मदद से तोड़ा सबका घमंड

गरुण देव हनुमान जी के पास पहुंचे कऔऱ कहा कि हे वानरश्रेष्ठ प्रभु राम और सीता आपको द्वारका के दरबार में बुला रहे हैं। आप मेरे साथ चलिए मैं तुरंत आपको पहुंचा दूंगा। हनुमान जी ने सादर भाव से कहा कि आप आगे चलिए बंधु मैं आता हूं। गरुण देव ने सोचा कि हनुमान जी इतने बूढ़े है, पता नहीं कब तक पहुंचेंगे। मैंने तो प्रभु की आज्ञा का पालन कर दिया अब इन्हें जब आना होगा आएंगे। ऐसा सोचकर वह द्वारा पहुंचे तो देखा की हनुमान जी वहां पहले से विराजमान है। गरुण का सिर लज्जा से झूक गया।हनुमान जी आगे बढ़े तो कृष्ण को राम अवतार में देखकर प्रणाम किया। श्रीकृष्ण ने कहा कि हनुमान तुम अंदर कैसे आ गए। क्या किसी ने तुम्हे द्वार पर रोका नहीं। इस पर हनुमान जी ने मुंह से सुदर्शन चक्र बाहर निकालकर रख दिया। हनुमान जी ने कहा कि प्रभु आपसे मिलने से मुझे कोई कैसे रोक सकता है। चक्र ने थोड़ा प्रयास किया था इसलिए मैंने इसे मुंह में ही दबा लिया। भगवान मुस्कराने लगे।

ऐसे टूटा सत्यभामा का अंहकार

सत्यभामा अभी भी सीता के रुप में हनुमान के सामने बैठी थीं। हनुमान जी ने तुरंत श्रीकृष्ण से कहा कि हे प्रभु आपको तो मैं पहचानता हूं। आप श्रीकृष्ण हैं और मेरे प्रभु राम भी, लेतिन माता सीता के स्थान पर आपने किस दासी को इतना सम्मान दे दिया कि वह आपके साथ सिंहासन पर विराजमान हो। इतना सुनते ही सत्यभामा की आंखे भर आईं और उनका घमंड चूर चूर हो गया। साथ ही सुदर्शन और गरुण भी लज्जित हो गए और उन्हें समझ आ गया की वह घमंड में अधे हो गए थे। सीता मां कोई और नहीं त्रेतायुग में राधा का रुप थीं।

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