विशेष

इलाज के बहाने अपने पिता को ले गया हरिद्वार, वहां जाकर की ऐसा काम जानकर आप भी हो जाएंगे हैरान

न्यूज़ट्रेंड वेब डेस्क: हमने आपको अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि किस तरह से एक बेटे की चाह में एक दंपत्ति नें १० बेटियों को जन्म दे दिया था। भारत में सरकार द्वारा बेटियों के लिए चलाई जा रही सभी योजनाएं इस तरह की खबरों के सामने छोटी होती दिखती हैं, क्योंकि लोग आज भी बेटा पाने की चाह में हर कुछ कर गुजरते हैं।

आखिर क्यों होती है बेटे की चाह

बात चाहे किसी भी समाज, संस्कृति या धर्म की हो हर जगह यही चलन होता है कि शादी करके लड़की को अपने मां-बाप का घर छोड़कर जाना पड़ता है जिसके चलते हर दंपत्ति ये चाहता है कि बुढ़ापे में उसका सहारा और उसके वंश को आगे बढ़ाने  के लिए एक बेटे का होना जरूरी है क्योंकि लड़की शादी के बाद अपने ससुराल चली जाती है।

आज के समय में लेकिन मां-बाप का अपने बेटों से ये आशा रखना की वो बुढ़ापे में उनका सहारा बनेंगे ऐसा बहुत ही कम देखने को मिलता है, और आज हम आपको ऐसे ही एक मामले के बारे में बताएंगे जहां पर अपने पिता को इलाज के बहाने बेटा हरिद्वार लेकर गया और वहीं पर उनको छोड़कर वापस चला आया।

नासिक के रहने वाले सुनील महेंदू को उनका बेटा कई साल पहले ये कहकर हरिद्वार ले गया कि वहां पर उनका इलाज कर वाएगा। अपने बूढ़े पिता को हरिद्वार ले जाने के बाद उसने उनको डॉक्टर को तो दिखाया लेकिन फिर रेलवे स्टेशन पर ये कहकर छोड़ गया कि आप यही बैठो मैं आपकी दवा लेकर के आता हूं और उसके बाद से आज का दिन हैं वो अपने बेटे का इंतजार कर रहे हैं। 70 साल के सुनील को इस बात का जरा भी अंदाजा नहीं था कि उनके साथ उनका एकलौता और लाडला बेटा जिसकों उन्होंने बचपन से पाल पोस कर बड़ा करा वो उनके साथ ऐसा कुछ कर देगा।

बेटे के स्टेशन पर छोड़कर जाने के बाद सुनील कई दिनों तक वहां भटकते रहे और आखिर में रेलवे स्टेशन पर ही अपना आसरा बना लिया। और अब वो भीग मांग कर किसी तरह से अपना जीवन यापन कर रहे हैं। बुजुर्ग ने अपने साथ हुई इस हरकत की जानकारी रेलवे चाइल्ड हेल्पलाइन को दी और अपने साथ हुई आपबीती सुनाई। जिसके बाद हेल्पलाइन के एक मेंबर ने बुजुर्ग द्वारा बताए गए पते के आधार पर नासिक पुलिस से मदद लेकर उनके पते को ट्रेस किया। और पुलिस को इस बात की जानकारी दी।

बता दें कि आज भी ना जाने कितने ऐसे बुजुर्ग हैं जो अपने बेटों द्वारा घर से बाहर निकाल दिए गए हैं और वो दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। कुछ तो इस घिनौनी हरकत को करने के लिए उन्हें वृद्धाश्राम में छोड़ आते हैं तो वहीं कुछ इसी तरह से उनको कही दूर ले जाकर भटकने के लिए छोड़ देते हैं। ऐसे में सवाल ये उठता है कि ऐसा काम करने पर क्या उनके मन में जरा सा भी संकोच और डर नहीं आता या वो अपने आप की पूरी इंसानियत को मार चुके होते हैं।

Back to top button