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दीपावली की रात क्यों खेलते हैं जुआ? जानिए इस रात से जुड़ी खास बातें

दीपावली भारत का बहुत खास त्योहार है और इसे भारत में सभी मनाते हैं. दीपावली को लेकर पूरे भारत में अलग-अलग शहर और गांवों में कई तरह की प्रथा मिल जाएगी. कहीं कच्ची मिट्टी के काजल को लगाने की प्रथा तो कहीं सूप पीटने की प्रथा, कहीं बहीखाता बदलने की प्रथा तो कहीं श्रीयंत्र की पूजा करने की प्रथा. इसके अलावा एक प्रथा जो बहुत प्रचलित है, वह है जुआ खेलने की प्रथा. दीपावली की रात क्यों खेलते हैं जुआ?  इसके बारे में बहुत सी बातें हैं जो लोग करते हैं मगर इसे परिवार के साथ खेला जाता है.

दीपावली की रात क्यों खेलते हैं जुआ?

दीपावली की रात बहुत सारी ऐसी चीजें हैं जो होती है लोग करते हैं लेकिन इसके बारे में शायद ही किसी को पता हो. दीपावली की रात लोग अपने परिवार में जुंआ खेलते हैं और भी कुछ चीजें करते हैं जिसके बारे में हम आपको बताएंगे.

क्यों खेलते हैं जुआ

दीपावली की रात क्यों खेलते हैं जुआ

दीपावली पर कहीं-कहीं जुआ भी खेला जाता है. इसका प्रधान लक्ष्य वर्ष भर के भाग्य की परीक्षा करना है. इस प्रथा के साथ भगवान शंकर तथा पार्वती के जुआ खेलने के प्रसंग को भी जोड़ा जाता है, जिसमें भगवान शंकर पराजित हो गए थे.

दिवाली के अगले दिन बदल जाते हैं बहीखाते

दीपावली की रात क्यों खेलते हैं जुआ

दीपावली के दूसरे दिन व्यापारी अपने पुराने बहीखाते बदल देते हैं. वे दूकानों पर लक्ष्मी पूजन करते हैं. उनका मानना है कि ऐसा करने से धन की देवी लक्ष्मी की उन पर विशेष अनुकंपा रहेगी.

किसानों के लिए क्यों खास होती है दिवाली

कृषक वर्ग के लिये इस पर्व का विशेष महत्त्व है. खरीफ की फसल पक कर तैयार हो जाने से कृषकों के खलिहान समृद्ध हो जाते हैं. कृषक समाज अपनी समृद्धि का यह पर्व उल्लासपूर्वक मनाता हैं.

बंगाल में है अनोखा प्रचलन

दीपावली के दिन आतिशबाजी की प्रथा के पीछे धारण यह है कि दीपावली-अमावस्या से पितरों की रात आरम्भ होती है. कहीं वे मार्ग भटक न जाएं, इसलिए उनके लिए प्रकाश की व्यवस्था इस रूप में की जाती है. इस प्रथा का बंगाल में विशेष प्रचलन है.

सूप पीटना

रात्रि की ब्रह्मबेला अर्थात प्रातःकाल चार बजे उठकर स्त्रियां पुराने सूप में कूड़ा रखकर उसे दूर फेंकने के लिए ले जाती हैं तथा सूप पीटकर दरिद्रता भगाती हैं. सूप पीटने का तात्पर्य यह है कि आज से लक्ष्मीजी का वास हो गया. दुख दरिद्रता का सर्वनाश हो. फिर घर आकर स्त्रियां कहती हैं- इस घर से दरिद्र चला गया है. हे लक्ष्मी जी! आप निर्भय होकर यहाँ निवास करिए.

सिक्खों की दीवाली

सिक्खों के लिए भी दीवाली महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसी दिन ही अमृतसर में वर्ष 1577 में स्वर्ण मन्दिर का शिलान्यास हुआ था. इसके अलावा 1619 में दीवाली के दिन सिक्खों के छठे गुरु हरगोबिन्द सिंह जी को जेल से रिहा किया गया था.

नेपाल में दिवाली के दिन ही होता नया वर्ष

नेपालियों के लिए दीपावली का त्यौहार इसलिए मनाया जाता है क्योंकि इस दिन से नेपाल संवत में नया साल शुरू होता है.

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