अध्यात्म

इस अद्भुत मंदिर में शिवलिंग का जलाभिषेक करती है गाय, श्रद्धालुओं की मनोकामना होती है पूरी

भारत देश में कई तरह के धर्मों को मानने वाले लोग रहते हैं और सभी अपने-अपने देवी देवताओं की पूजा अर्चना करते हैं भारत में हिंदू धर्म के ऐसे बहुत से मंदिर उपस्थित हैं जो अपने चमत्कारों और अद्भुत रहस्य के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है इन्हीं मंदिरों में से एक अपनी भव्यता और अलौकिकता की वजह से धर्मशाला की विध्यांचल पर्वत श्रृंखला में स्थित तीर्थ दुनिया भर में मशहूर है मान्यता के अनुसार इस जगह को जटायु की तपोभूमि माना जाता है इस तीर्थ स्थल की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां पर जटाशंकर का जलाभिषेक करने वाली जलधारा का रहस्य आज तक किसी को भी नहीं मालूम है।

इस तीर्थ स्थान की प्रसिद्धि का वास्तविक श्रेय ब्रह्मलीन संत श्री केशव दास जी त्यागी को जाता है यह तीर्थ स्थल अपनी भंडारा प्रथा की वजह से अर्धकुंभ और सिंहस्थ में काफी प्रसिद्ध है इस समय में उनके शिष्य महंत बद्री दास जी इस तीर्थ स्थान का संरक्षण कर रहे हैं पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लगभग 600 साल पहले वैष्णव संप्रदाय के वनखंडी नामक एक महात्मा यहां निवास करते थे जिनको लाल बाबा के नाम से जाना जाता था लाल बाबा रोजाना धाराजी के नर्मदा तट पर नहाने के लिए जाते थे और सूर्य उदय के समय जटाशंकर लौटकर भगवान का अभिषेक किया करते थे उनके कमजोर होने पर नर्मदा माता ने प्रकट होकर भगवान के अभिषेक के साथ साथ विभिन्न कार्यों के लिए हमेशा बहने वाली पांच जल धाराओं का वरदान जटा शंकर तीर्थ के लिए दिया था परंतु समय के साथ-साथ कलयुग के प्रभाव से चार जल धाराएं लुप्त हो चुकी है और भगवान का अखंड अभिषेक करने वाली जलधारा अभी भी प्रवाहित होती रहती है।

दरअसल, जटाशंकर महादेव पर नीले और लाल रंग की धारियां है जिसकी वजह से इनको नीललोहित शिवलिंग भी कहा जाता है इस मंदिर की छत से चिपकी हुई चट्टान पर बेलपत्र का वृक्ष है बेलपत्र और जल से भगवान का अखंड अभिषेक होता है इस विषय में वहां के पुजारियों और संचालक का ऐसा मानना है कि जटाशंकर की जलधारा और नर्मदा जल का स्वाद एक जैसा ही है और धाराजी में धावडी कुंड में जब अपने पुरे वेग से जल गिरता है तो चट्टानों में भी यह अपना स्थान बना लेता है यहां की लोकमान्यता के मुताबिक चंद्रकेश्वर तीर्थ पर अत्रि ऋषि के पुत्र चंद्रमा का आश्रम था जो कालांतर में च्यवन ऋषि की तपोभूमि बना और चंद्रमा ने जटायु की सहायता की थी जलधारा के मुहाने पर लगा गोमुख लगभग 200 वर्ष पूर्व बागली रियासत के राजपुरोहित पंडित रामेश्वर त्रिवेदी ने स्थापित कराया था।

ऐसा बताया जाता है कि इस तीर्थ स्थान पर श्रावण मास में पिछले 15 सालों से अखंड महारुद्राभिषेक हो रहा है इसमें भगवान जटाशंकर का महा रुद्राभिषेक पार्थिव पूजन महामृत्युंजय मंत्र का जाप पंचाक्षर मंत्र जाप और हवन आदि क्रियाएं जारी हैं इसके साथ ही पठानकोट हमले और आतंकी हमलों में शहीद सैनिकों की आत्मा की शांति के लिए भी पाठ किया जाता है ऐसा माना जाता है कि जो कोई श्रद्धालु अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए अपने सच्चे मन से भगवान जटा शंकर का अभिषेक करने के लिए यहां आता है उनको अभिषेक करने के बाद मंदिर की दीवारों पर स्वास्तिक चिन्ह को गोबर से उल्टा उकेरना पड़ता है तब उसकी मनोकामनाएं पूरी होती है इसके साथ ही मनोकामना पूरी हो जाने के बाद उस उल्टे स्वास्तिक को सीधा करने के लिए दोबारा से इस तीर्थ पर आना पड़ता है।

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