राजनीति

पूर्वोत्तर की सियासत में त्रिकोणीय मुकाबला, कैसा है सियासी मिजाज

पूर्वोत्तर राज्यों में सियासी माहौल गरम हो गया है। जी हां, सियासी गलियारों में हलचलें मच चुकी हैं। बता दें कि चुनाव आयोग ने पूर्वोत्तर की तीन राज्यों में चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया है। ऐसे में यह जानना बहुत जरूरी है कि कहां किस पार्टी को मिलने वाली है चुनौती तो कहां किसकी बन सकती है सरकार? तो चलिए हम आपको पूर्वोत्तर की सियासी मिजाज से रूबरू कराते हैं।

बता दें कि तीन राज्यों यानि मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा में चुनाव होने वाले हैं। इतना ही नहीं, चुनाव अगले महीने ही है। ऐसे में जहां एक तरफ पार्टियों ने अपनी कमर कस ली है, तो वहीं देश की जनता इन राज्यों में होने वाले चुनावी घमासान को जानने के लिए आतुर है। तो देर किस बात की चलिए हम आपको इन तीन राज्यों के चुनावी गणित को एक एक करके समझाते हैं।

नागालैंड का सियासी गणित

नागालैंड में सियासी माहौल बहुत ही गरम बताया जा रहा है। जी हां, यहां आपको त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिलेगा। बता देंं कि यहां फिलहाल सरकार गठबंधन की है। ऐसे में गठबंधन की दोनों पार्टियां यानि बीजेपी और पीपुल फ्रंट अपनी सीट को बढ़ाने की कोशिश करेंंगी तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस अपना सालोंं पुराना वनवास खत्म करने के फिराक में हैं। जहां एक तरफ कांग्रेस 14 साल का वनवास खत्म करने के फिराक में है तो वहीं दूसरी तरफ बीजेपी अपनी सीट को बढ़ाने की कोशिश में है। पिछले 2013 के विधानसभा चुनाव में नगा पीपुल फ्रंट ने 45 सीटें जीती थीं, इसके अलावा 4 बीजेपी और 11 सीटें अन्य के खाते में हैं।

मेघालय का सियासी गणित

कांग्रेस के लिए अपनी सत्ता को बचा पाना सबसे बड़ी चुनौती है तो वहीं बीजेपी के लिए कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखना भी यहां से मुश्किल दिखाई पड़ा रहा है। बता दें कि कांग्रेस के विधायक पार्टी को छोड़ रहे हैं, ऐसे में अपनी सत्ता को बचाना कांग्रेस की नाक का सवाल है। बीजेपी के लिए मेघालय जीतना बहुत ही कठिन है क्योकि राज्य में 60 फीसदी आबादी ईसाई समुदाय की है और बीजेपी की हिंदुत्व छवि के साथ ही बीफ पाबंदी बड़ी बाधा नजर आ रही है। बता दें कि 2013 के विधानसभा चुनाव में इनमें से कांग्रेस ने 29 पर जीत दर्ज की थी, तो वहीं यूडीपी ने 8, निर्दलीय ने 13, एनसीपी ने 2 और अन्य ने 8  सीटें जीती थीं। यहांं बीजेपी के लिए अपना खाता खोलना बहुत ही मुश्किल काम है।

त्रिपुरा का सियासी माहौल

लेफ्टों के गढ़ त्रिपुरा में बीजेपी के लिए बहुत मुश्किलें आने वाली हैं। जी हां, यहां दशकों से लेफ्ट का राज चल रहा है। पिछले पांच विधानसभा चुनाव से यहां लेफ्टों का कब्जा रहा है, लेकिन बीजेपी इस दुर्ग में सेंध करना चाहती है। याद दिला देंं कि सन् 1978 के बाद से लेफ्ट मोर्चा सिर्फ एक बार 1988-93 के दौरान राज्य की सत्ता से दूर रहा है, इसके अलावा सभी विधानसभा चुनाव में लेफ्ट का कब्जा बरकरार रहा है। आपकी जानकारी के लिए यह भी बता दें कि 1998  से लगातार त्रिपुरा में 3 बार से सीपीएम के सीएम माणिक सरकार ही है।

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