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नोएडा की तरह मध्य प्रदेश का ये शहर भी छीन लेता है सीएम की कुर्सी

यूपी में नोएडा को लेकर एक मिथक है कि जो भी नोएडा आया उसकी कुर्सी चली गई। इस मिथक का ही डर था की अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बनने के बाद नोएडा कभी नहीं आए लेकिन कुर्सी फिर भी ली गई। क्योंकि राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह, मायावती के साथ ऐसा हो चुका था। लेकिन बीते दिनों पीएम मोदी के साथ योगी ने ये मिथक तोड़ा अब देखना है उनका क्या होता है। लेकिन यूपी के अलावा एक जगह एमपी में भी है, जहां आने वाले नेताओं की कुर्सी चली जाती है। जी हां, इसीलिए बीते दिनों सीएम शिवराज सिंह चौहान ने जाने से वहां मना कर दिया। क्योंकि एमपी ही नहीं यहां आने से दूसरे प्रदेशों से सीएम यानी लालू प्रसाद यादव तक की कुर्सी चली गई है।

एमपी का एक ऐसा इलाका है जहां दशकों से मिथक चला आ रहा है, कहा जाता है कि जो भी मुख्यमंत्री अशोकनगर कस्बे में आया है। उसे अपना पद गंवाना पड़ता है। इस बार भी ये बात मुद्दा बनी है। क्योंकि  विपक्ष ने इस मिथक को मध्य प्रदेश में जोर शोर से उठा रही है। दरअसल ये मुद्दा तब बना जब सीएम शिवराज सिंह चौहान को अशोकनगर कलेक्ट्रेट कार्यालय के नव निर्मित भवन का उद्घाटन करने आना था। इसके लिए बकायदा 24 अगस्त 2017 को उन्हे आमंत्रित भी किया गया था। लेकिन मंत्री जयभान सिंह पवैया और लोक निर्माण मंत्री रामपाल सिंह को भेजकर कार्यालय का उद्घाटन करा दिया और खुद किनारा कर लिया।

 

हालांकि सीएम शिवराजसिंह चौहान इस पर गोल गोल जवाब देकर बच जाते हैं। बीते दिनों उनसे ये सवाल पूछा गया कि उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी ने नोएडा जाकर सालों से चले आ रहे मिथक को तोड़ा है तो फिर आप अशोकनगर आकर यह मिथक क्यों नहीं तोड़ सकते। सीएम शिवराज चौहान ने इसका जवाब यूं दिया की अगर जनता बुलाएगी तो वो अशोक नगर जरूर जाएंगे।

वहीं इस मामले में कांग्रेस ने सीएम को चुनौती दी है। अशोक नगर के कांग्रेस नेता तरुण भट्ट ने कहा है कि अगर मुख्यमंत्री चौहान अशोकनगर आए तो मैं 51 हजार रुपए जिला अस्पताल को दान करूंगा।

अशोकनगर आने से किस-किस की कुर्सी गई।

1.प्रकाशचंद्र सेठी

प्रदेश कांग्रेस के 1975 में हुए अधिवेशन में प्रकाश चंद्र सेठी अशोकनगर आए थे। उसी साल 22 दिसंबर को उन्हे मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ा था।

  1. श्यामाचरण शुक्ल

सन 1977 में तुलसी सरोवर का लोकार्पण करने के लिए श्यामाचरण शुक्ल अशोकनगर आए थे, दो साल बाद यानी 29 मार्च 77 को राष्ट्रपति शासन लागू होने पर पद छोड़ना पड़ा।

  1. अर्जुन सिंह

सन 1985 में कांग्रेस के तत्कालीन कांग्रेस के तात्कालीन महासचिव राजीव गांधी के साथ अर्जुन सिंह अशोक नगर आए थे। जिसके बाद उन्हे कुछ ही दिनों में पंजाब का राज्यपाल बना दिया गया था।

  1. मोतीलाल वोरा

सन 1988 में तत्कालीन रेल मंत्री माधवराव सिंधिया के साथ रेलवे स्टेशन के फुट ओवरब्रिज का उद्धटान करने आए थे। इसके बाद मोती लाल वोरा को केंद्र में भेज दिया गया।

  1. सुंदरलाल पटवा

सन 1992 में जैन समाज के पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव के लिए वो अशोकनगर आए। छह दिसंबर को अयोध्या में बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराए जाने के बाद प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया। जिसके बाद उनकी कुर्सी चली गई।

  1. दिग्विजय सिंह

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2003 में लोकसभा का उपचुनाव लड़ रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रचार करने के लिए दिग्विजय सिंह आए थे। जिसके बाद हुए विधानसभा चुनाव में सरकार के साथ उनकी भी कुर्सी चली गई। साथ ही बीजेपी की उमा भारती मुख्यमंत्री बनीं।

  1. लालूप्रसाद (बिहार)

इतना ही नहीं अशोक नगर को लेकर मिथक तब और मजबूत हो गया जब बिहार के मुख्यमंत्री यहां आए और उनकी कुर्सी चली गई। कहा जाता है 2003 के विधानसभा चुनाव में बलवीर सिंह कुशवाह के प्रचार में लालू प्रसाद यादव अशोकनगर आए थे। जिसके बाद उनकी मुख्यमंत्री की कुर्सी छीन ली गई थी।

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