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Lockdown Effect: दिसंबर तक भारत में जन्म लेंगे 2 करोड़ बच्चे, दुनिया भर में बढ़ेगी आबादी

कोरोना को फैलने से रोकने के लिए लॉकडाउन कुछ हद तक मददगार है, लेकिन लॉकडाउन जितना मददगार है, उससे कहीं ज्यादा इसके साइड इफेक्टस भी हैं। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने लॉकडाउन के एक ऐसे ही साइड इफेक्ट्स के बारे में बताया है। UN ने अनुमान लगाया है कि कोरोना को महामारी घोषित करने से लेकर अगले नौ महीनों तक जन्मदर में बहुत ज्यादा इजाफा होने वाला है।

संयुक्त राष्ट्र ने अनुमान लगाया है कि कोरोना के कारण हुए लॉकडाउन में भारत और चीन में सबसे अधिक बच्चों का जन्म होगा। जनसंख्या से परेशान देशों के लिए लॉकडाउन का यह निगेटीव साइड इफेक्ट्स काफी परेशान करने वाला हो सकता है।

UNICEF की एक रिपोर्ट के अनुसार 11 मार्च से 16 दिसंबर की अवधि के बीच पूरे विश्व में 116 मिलियन बच्चे पैदा होंगे। यूनीसेफ ने चिंता जताई है कि महामारी के इस काल में जन्म लेने वाले बच्चों सहित उनकी माताओं की स्वास्थ्य भी चिंताजनक हो सकती है। वहीं भारत के बारे में रिपोर्ट्स की मानें तो, यहां दिसंबर तक 2 करोड़ से अधिक बच्चे जन्म लेंगे। माना जा रहा है कि ये संख्या पूरी दुनिया में सबसे अधिक हो सकती है।

भारत में सबसे ज्यादा जन्म लेंगे बच्चे

यूनीसेफ ने भारत के बाद चीन को दूसरे स्थान पर रखा गया है। संयुक्त राष्ट्र के आंकलन के मुताबिक, भारत में 2 करोड़ तो चीन में 1.35 करोड़ बच्चे जन्म लेंगे। वहीं भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान में 50 लाख,  नाइजिरीया में 60.4 लाख और इंडोनेशिया में 40 लाख बच्चे पैदा होंगे, जबकि संयुक्त राष्ट्र अमेरिका को इस सूची में 6वें स्थान पर रखा गया है। अमेरिका के न्यूयॉर्क में तो प्रशासन ने जन्म केंद्रों की व्यवस्थाएं भी शुरू कर दी हैं। दरअसल ,अमेरिका में गर्भवती महिलाएं अस्पताल में बच्चों को जन्म देने से डर रही हैं।

विकासशील देशों में है ज्यादा खतरा

यूनीसेफ ने अपने वैश्विक रिपोर्ट में कहा है कि कोरोना वायरस के प्रकोप के चलते फिलहाल दुनिया भर की स्वास्थ्य सेवाएं कोरोना के इलाज में लगी हुई हैं, जिसकी वजह से अन्य जीवनरक्षक स्वास्थ्य सेवाएं काफी प्रभावित हुई हैं। इसके कारण मां और नवजात बच्चों के जीवन को खतरा हो सकता है। यूनिसेफ ने कहा है कि विकासशील देशों में ये खतरा ज्यादा मंडरा रहा है। चूंकि बहुत सारे ऐसे विकासशील देश हैं, जहां मातृ स्वास्थ्य, गर्भनिरोधक और टीकाकरण नहीं हो रहा है।

गौरतलब हो कि नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (NFHS-4) के रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय महिलाओं में एनीमिया की काफी व्यापकता है। भारत में व्यापकता दर 2005-06 में 55 फीसदी थी, तो वहीं 2015-16 में 53 प्रतिशत हुई है। यानी एनीमिया की व्यापकता में मामूली सुधार ही हुआ है।

संयुक्त राष्ट्र जन्म देने वाली माताओं के स्वास्थ्य को लेकर काफी चिंतित है। यूएन सभी देशों से कहा है कि वे अपने यहां बच्चों को जन्म देने वाली माताओं का खास ध्यान रखें। यूएन के आंकड़े बता रहे हैं कि कोरोना वैश्विक महामारी के आने से पहले ही 20.8 लाख प्रति वर्ष की दर से गर्भवती महिलाओं और नवजात शिशुओं की मौत होती थी। चूंकि अभी कोरोना की वजह से लगभग सभी देशों की स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित हुई हैं, ऐसी स्थिति में अगर जन्मदर में बढ़ोतरी होती है तो दुनिया के कई देशों को परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। यूनिसेफ के अनुसार, सभी देशों को इस समय इस बात का खास ध्यान रखने की आवश्यकता है कि नवजात शिशु और गर्भवती महिलाएं स्वस्थ रहें।

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