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लोगों को मारने के लिए कैसे तैयार हो जाता है किसी आतंकी का दिमाग? वैज्ञानिकों ने ढूंढ़े कारण

जब भी कहीं आतंकी हमला होता है तो लोगों के मन में एक ही सवाल आता है कि आखिर ये आतंकी क्यों किसी को मारते हैं उन्हें दया नहीं आती. मगर सच तो ये है कि आतंकियों को लोगों को मारने और खुद मरने के लिए ब्रेन वॉश भी किया जाता है जिससे वो मजबूर हो जाते हैं दूसरों को मारने के लिए. किसी को मारना आसान नहीं होता है लेकिन उनके लिए ऐसे जैसे कोई खेल खेल रहे हों लेकिन क्या आप जानते हैं कि लोगों को मारने के लिए कैसे तैयार हो जाता है किसी आतंकी का दिमाग? चलिए बताते हैं इसका पूरा प्रोसेस.

कैसे तैयार हो जाता है किसी आतंकी का दिमाग?

लोगों को मारने और मरने के लिए आतंकी बाधित क्यों हो जाते हैं, इसे जानने के लिए वैज्ञानिकों ने एक स्टडी की और उसपर रिसर्च भी किया. शोधकर्ताओं की एक टीम ने स्पेन से आतंकी समूह अलकायदा और लश्कर-ए-तैयबा के समर्थकों का चयन करके उनके दिमाग का विश्लेषण किया. रिसर्च आर्टिस इंटरनेशनल ने की है और यह एक अमेरिकी संगठन है जो लोगों के ऐसे व्यवहार पर रिसर्च करता है जो लड़ाई या टकराव का कारण हमेशा बनते रहते हैं उन्हें ऐसा क्या हो जाता है. कुछ इस तरह से हुआ खुलासा.

146 समर्थकों का चुनाव हुआ

आतंकी समूहों के समर्थकों से उनकी धार्मिक मान्यताओं के बारे में बात करने पर दिमाग के कौन से हिस्से में क्या बदलाव आता है शोधकर्ताओं ने यह जानने की कोशिश की। शोध के लिए 146 समर्थकों का चुनाव किया गया था। समर्थकों का चुनाव एक सर्वे के जरिया हुआ। जिसमें इन्होंने हिंसा का प्रयोग करने की इच्छा जताई थी।

कम होती है सोचने-समझने की शक्ति

समर्थकों के दिमाग के विश्लेषण के लिए फंक्शनल एमआरआई की गई है और शोध के दौरान पाया गया कि जब ऐसे समर्थकों से उनकी धार्मिक मान्यताओं के बारे में बताई गई है जो दिमाग के खास हिस्से में कम सक्रियता देखने को मिली और यह हिस्सा इंसान के सोचने-समझने और तर्क-वितर्क करने के लिए तैयार होता है. दिमाग का यह हिस्सा चीजों को कैल्कुलेट करता है जिसके परिणाम जानने में मदद होती है. रॉयल सोसायटी ओपन साइंस में प्रकाशित शोध के अनुसार, मान्यताओं से जुड़ी ये ऐसी प्रक्रिया है जो दिमाग में चलती रहती है और लोगों में किसी काम को करने के लिए उन्हें मजबूर किया जाता है. चरमपंथी ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उनका दिमाग इस तरह की बातों से जल्द ही जुड़ने लगता है.

लोगों में आए ऐसे दबाव को कम करना संभव

पिछले कुछ सालों में हुए रिसर्च में पता चला है कि ऐसे लोगों की धार्मिक मान्यताएं उन्हें मरने और लोगों को मारने के लिए बाध्य होती है लेकिन लोगों में आए ऐसे दबाव को कम किया जा सकता है. कुछ रिसर्च के मुताबिक, समाज से मिले ऐसे दबाव को समझना थोड़ा मुश्किल होता है इसके कारण लोगों को गलत रास्ते पर ले जाती है. इसे समझने के लिए यह रिसर्च किया गया है, शोधकर्ता एट्रान के मुताबिक, इंसान अपने व्यवहार और सोचने की क्षमता कब खोता है न्यूरो-इमेजिंग अध्ययन से इसका विश्लेषण किया गया. इसमें नतीजा ये आया कि ऐसा होने का कारण उनकी मान्यताएं और ऐसी सोच है जिसके लिए वे खुद की जान दाव पर लगाने को तैयार हो जाते हैं.

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