अध्यात्म

3 दिसम्बर,मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन इस विधि से करें भगवान विष्णु की पूजा,पूरी होगी हर मनोकामना

हिन्दु धर्म में मार्गशीर्ष माह को अध्यात्म की दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माह माना जाता है .. इसके संबंध में पुराणों में मान्यता है कि देवताओं ने सतयुग काल का प्रारंभ मार्गशीर्ष माह की पहली तिथि को किया था। ऐसे में सनातन धर्म में पूरे माह पूजा पाठ और स्नान-ध्यान का विधान है और माह के पूर्णिमा के दिन को तो अत्यंत महत्वपूर्ण और पवित्र माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी में स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए इससे व्यक्ति के सभी पाप और दुश्कर्मों नष्ट हो जाते हैं और उसे शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इस बार मार्गशीर्ष पूर्णिमा 3 दिसम्बर को मनाई जा रही है। ऐसे हम आपको इस दिन भगवान विष्णु की पूजन विधि बताने जा रहे हैं, जिससे करने से आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं।

मार्गशीर्ष माह पूर्णिमा की महत्ता का वर्णन सनातन धर्म के सभी पौराणिक ग्रंथो में मिलता है। व्यवहारिक रूप में लोग इस पूर्णिमा को बत्तीसी पूर्णिमा के रूप में जानते हैं। पुराणों की माने तो इस दिन स्नान,पूजा और दान करने से कई गुणा फलों की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यताओं को मानते हुए लोग मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन स्नान करने के लिए पवित्र स्थानों जैसे इलाहाबाद में गंगा सहित हरिद्वार, बनारस पहुंचते हैं।

मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु की पूजा का विधान है। जिसमें धूप, दीप, अगरबत्ती के बाद चूरमा का भोग लगाया जाता है.. क्योंकि चूरमा का भोग भगवान विष्णु को अत्यधिक प्रिय है। पूजन पूर्ण होने पर हवन किया जाता है.. हवन करते हुए भगवान विष्णु के जितने भी नामों का स्मरण है, जपते हुए आहुति देनी चाहिए । ऐसा करते हुए भगवान विष्णु से अपने घर-परिवार के मंगल की कामना करनी चाहिए। मान्यता है कि इस पूजा के साथ व्यक्ति जो भी कामना करता है वो जरूर पूरी होती है। पूजा के साथ ही इस दिन दान करना भी बेहद फलदायी होता है। इसलिए पूजा के बाद अपने सार्मथ्य अनुसार ब्राम्हण और गरीबों को भोजन अवश्य कराएं है। इसके साथ ही दीपदान भी करें। इस तरह विधिवत की गई पूजा से व्यक्ति के सभी कष्टों का निवारण होता है और सुख-समृद्धी की प्राप्ति होती है।

साथ ही मार्गशीर्ष पूर्णिमा के दिन  भगवान सत्यनारायण के कथा के पाठ का भी महत्व है। मान्यता है कि भगवान सत्यनारायण के कथा से जितना कथा वाचन को पुण्य प्राप्त होता है उतना ही अधिक इसका लाभ उसे सुनने वाले प्रत्येक भक्त को भी मिलता है ।

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