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उत्तराखंड के लोग तरस रहे थे 181 साल से अपने ही चाय का स्वाद चखने के लिए, अब ले सकेंगे मजा

हल्द्वानी: उत्तराखंड की हसीन वादियों से तो आप परिचित ही होंगे। एक बार जो वहाँ की खुबसूरत वादियों में चला जाये तो वापस आने का भी मन नहीं करता है। आज हम आपको उत्तराखंड से जुड़ी एक बहुत ही अजीबोगरीब खबर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसे सुनकर पहली बार आपको हैरानी होगी। हालांकि यह खबर वहाँ के लोगों के लिए ख़ुशी लेकर आयी है। उत्तराखंड के लोग पुरे 181 साल बाद अब अपनी जमीन पर उगी हुई चाय का मजा ले सकेंगे। जी हाँ हुई ना आपको हैरानी।

आजदी के बाद बंद हो गयी यहाँ चाय की खेती:

दरअसल उच्च दर्जे की यह चाय अब तक विदेशों में सप्लाई होती थी। लेकिन अब राज्य सरकार इसे उत्तराखंड में बेचने की तैयारी कर रही है। इसके लिए डिस्ट्रीब्यूटर की तलाश शुरू कर दी गयी है। पहले स्वतंत्रता संग्राम के पहले उत्तराखंड की हसीन वादियों में रहने के लिए बड़ी संख्या में अंग्रेज आये और अल्मोड़ा सहित कई जगहों पर पहुँचे। उन्हें यहाँ का मौसम इतना पसंद आया कि उन्होंने अल्मोड़ा, कसौनी और भीमताल में चाय की खेती करवानी शुरू कर दी। लेकिन 11 साल बाद 1947 में देश की आजादी के समय इन जगहों पर चाय की खेती बंद हो गयी।

ऊँचे दामों पर खरीदने लगा यहाँ की चाय विदेशी:

लगभग 47 साल बाद उस समय की उत्तर प्रदेश सरकार ने 1994 में एक बार फिर इन जगहों पर चाय की खेती शुरू करवाई। धीरे-धीरे चाय का उत्पादन बढ़ा तो चम्पावत, हरीनगरी, धर्मगढ़, चमोली में भी बागान लगाए गए और तैयार माल को दार्जिलिंग, असम आदि में बेचना शुरू कर दिया। यहाँ तैयार की जाने वाली चाय को अमेरिका, जापान, ब्रिटेन समेत कई यूरोपिए देशों में भेजा जाने लगा। कसौनी-टी नाम से प्रसिद्ध इस चाय का स्वाद विदेशियों को इतना पसंद आया कि ऊँचे दामों पर खरीदने लगे।

ऊँची कीमत की वजह से नहीं उतारा गया घरेलू बाजार में:

माँग बढ़ने और अधिक कीमत मिलने की वजह से सरकार ने चाय की खेती को अपने हाथों में ले लिया और साथ ही नैनीताल के घोड़ाखाल, चम्पावत और चमोली के नौटी में जैविक चाय की पत्तियों को प्रोसेस करने के लिए फैक्टियों की स्थापना की गई। लेकिन चाय को अपने ही प्रदेश में नहीं बेचा गया। आखिरकार इस चाय को अपने प्रदेश में बेचने को लेकर चर्चा शुरू हुई और मई 2017 में उत्तराखंड चाय विकास बोर्ड की देहरादून में हुई बैठक में यह निर्णय लिया गया कि अब इस चाय को उत्तराखंड में भी बेचा जायेगा। इसकी कीमत को देखते हुए इसे अब तक प्रदेश के बाजार से दूर रखा गया था।

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