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देश में यहां 1 साल के लिए किराए पर मिलती है बीवीयाँ, कैसे होता है सौदा जानकर रह जाएंगे दंग

नई दिल्ली – आज हम आपके लिए एक ऐसी खबर लेकर आए है जिसे जानकर आपके होश उड़ जाएंगे। ये तो हम सभी मानते हैं कि  हम चाहे जितना महिलाओं के अधिकारों और उनके शोषण के खिलाफ कानून बना लें। लेकिन सच्चाई तो यही है कि हमारे देश में जिस्मफरोसी का धंधा काफी समय से लाख कोशिशो के बावजूद आज भी फल-फूल रहा है। आज हम चाहे खुद को बदलने के लाख दावे कर लें लेकिन सच तो यही है कि महिलाओं पर होने वाले शोषण आज भी वैसे ही है जैसे पहले हुआ करता था। rents here joins one year wife.

 एक साल के लिए किराए पर बीवी

हम जहां एक ओर देश में महिला सशक्‍तीकरण और उनके अधिकारों की बातें करते हैं तथा रोज महिलाओं की सुरक्षा को लेकर तरह तरह के कानून बनते हैं तो वहीं सच्चाई ये है हमारे ही देश में हर रोज लड़कियों की खरीद फरोख्त होती है। हो सकता है आपने भी लड़कियों के खरीद फरोख्त के किस्से सुने हो। यह एक ऐसी स्थिति हैं जहाँ औरतों को खरीद कर उन्हें जिस्मफिरोशी के धंधे में उतार दिया जाता है।

लेकिन आज हम आपको ऐसा कुछ बताने जा रहे हैं जिसे जानकर आपके होश उड़ जाएंगे। आपको जानकर हैरानी होगी की अपने ही देश में एक जगह ऐसी है जहां औरतों को एक साल के लिए किराए पर अपनी बीवी बनाया जाता है। ये खबर सुनकर आप चौंक गए न। लेकिन यह बिल्कुल सच है। ऐसा कहीं और नहीं बल्कि अपने देश के राज्य मध्य प्रदेश में होता है।

 

मध्यप्रदेश में यहां होता है ये काम

मध्यप्रदेश की गिनती देश के बड़े राज्यों में होती है। मध्यप्रदेश की शिवपुरी नाम की एक जगह है जहां  धड़ीचा प्रथाप्रचलित है। यहां हर साल एक मंडी लगती है जिसमें प्रथा के नाम पर लड़कियों को खड़ा कर उनको एक साल के लिए किसी कि बीवी बनने के लिए सौदा किया जाता है। इस मंड़ी में पुरुष आते हैं और अपनी पसंद की लड़की का कीमत तय करते हैं और एक साल के लिए अपनी बीवी बनाकर ले जाते हैं। कीमत 15 हजार से 25 हजार तक लगाई जाती है।

इस प्रथा में लड़की के घरवाले अपनी मर्जी से लड़की को 1 साल के लिए किसी भी शख्स जो कीमत देता है उसकी शादी करवा देते हैं। इसके अलावा वो शख्स अधिक पैसे देकर लड़की को 1 साल से ज्यादा समय तक अपने साथ रख सकता है। यहां सौदा पक्का होने के बाद 10 रूपये से लेकर 100 तक के स्टाम्प पेपर पर लड़कियों की सौदेबाजी की बकायदा लिखा-पढ़ी भी होती है। आश्चर्य की बात है कि यह कुप्रथा पिछले कई दशकों से चली आ रही है, लेकिन अभी तक सरकार और किसी भी संगठन ने इस कुप्रथा के खिलाफ आवाज नहीं उठाई।

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