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बोफोर्स घोटाले को लेकर CBI ने किया हैरतअंगेज खुलासा, क्वात्रोची के खिलाफ यूपीए ने नहीं की…

नई दिल्ली: बोफोर्स घोटाला एक बहुत ही अहम घोटाला था, जिससे देश की रक्षा व्यवस्था पर सवालिया निशान भी लगे। कई सालों से इसकी जाँच सीबीआई कर रही थी। हाल ही में सीबीआई ने संसदीय समिति को बोफिर्स घोटाले से जुडी कुछ अहं जानकारी दी है। सीबीआई ने यह खुलासा किया कि तत्कालीन यूपीए सरकार ने उस डील में एक और बहुत बड़ी चूक की थी। बोफोर्स घोटाले में आनें वाले विदेशी व्यापारी ओतोविया क्वात्रोची के खिलाफ कोर्ट की कार्यवाही चल रही थी।

नहीं की अकाउंट के खिलाफ कोई कार्यवाई:

वह अपने यूके स्थित बैंक अकाउंट से लगातार पैसे निकाल रहा था, अगर यूपीए चाहती तो उनके बैंक अकाउंट से पैसे निकासी पर रोक लगा सकती थी। कांग्रेस सरकार के ऊपर यह आरोप लगाया जा रहा है कि उसनें इटालियन व्यापारी क्वात्रोची के ऊपर रोक को जारी नहीं रखकर उसकी मदद की। बताया जा रहा है कि बोफोर्स डील के फंड में करीब 1 मिलियन डॉलर और 3 मिलियन यूरो का गलत इस्तेमाल करनें का शक था। इसके बाद भी तत्कालीन यूपीए सरकार ने उनके अकाउंट के खिलाफ कोई कार्यवाई नहीं की।

केवल यही नहीं सीबीआई को जाँच के दौरान यह भी पता चला है कि यूपीए सरकार यह चाहती थी कि क्वात्रोची अपने अकाउंट से पैसे निकाल लें। यूके की क्राउन प्रोसिक्यूशन सर्विस (सीपीएस) ने सलाह दी है कि सीआरपीसी की धारा 82 के तहत क्वात्रोची के खिलाफ लगी रोक को जारी रखा जा सकता था। लेकिन उस समय के सोलिक्टर जनरल भगवान दत्त ने इसे एक सिरे से ख़ारिज कर दिया।

नहीं माना जा सकता था क्वात्रोची के खिलाफ ठोस सबूत:

अगर टाइम्स ऑफ़ इंडिया की खबरों की मानें तो दास ने बताया था कि सीपीएस की तरफ से लगाईं गयी धारा 82 को क्वात्रोची के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं माना जा सकता था। सीबीआई ने संसदीय समिति को यह भी बताया कि उस समय यूपीए सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायलय के फैसले के खिलाफ उसे उच्चतम न्यायालय जानें की इजाजत नहीं दी। बोफोर्स तोप सौदे में 1986 की कैग रिपोर्ट की अनुपालन न होनें की पड़ताल रक्षा मामलों की छह सदस्यीय लोक लेखा समिति की उपसमिति कर रही है।

सूत्रों से पता चला है कि पिछले महीने समिति ने सीबीआई से पूछा था कि इस मामले में 2005 में दिल्ली उच्च न्यायलय के कार्यवाही समाप्त करनें के फैसले के खिलाफ वह उच्चतम न्यायालय क्यों नहीं गयी। जाँच करनें वाली एजेंसी ने बताया कि उच्च न्यायालय के आदेश का विश्लेषण करनें के बाद सीबीआई उच्चतम न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका दायर करना चाहती थी।

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