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मिलिए भारत की 5 सबसे पॉवरफुल हिंदू रानियों से, इनके आगे दुश्मन भी थर-थर कांपता था

महिलाओं को अक्सर कमजोर समझा जाता है। उन्हें घरेलू कामकाजों से जोड़कर भी देखा जाता है। लेकिन यह सभी धारणाएं गलत है। महिलाएं पुरुषों से भी ज्यादा बहादुर और शक्तिशाली होती हैं। ऐसा नहीं है कि सिर्फ मॉडर्न जमाने में ही महिलाओं मर्दों वाले सभी काम कर रही हैं। बल्कि प्राचीन समय में भी कई ऐसी फेमस रानियां रहीं जिन्होंने पुरुष राजाओं से भी ज्यादा नाम कमाया। आज हम आपको ऐसी ही 5 हिंदू रानियों के बहादुरी के किस्से सुनाने जा रहे हैं।

रानी दुर्गावती

रानी दुर्गावती मध्य प्रदेश के गोंडवाना क्षेत्र की वीरांगना थी। उनका जन्म 5 अक्टूबर 1524 को कालिंजर के राजा कीर्तिवर्मन द्वितीय चन्देल के यहाँ हुआ था। उनका राज्य गढ़मंडला था, जिसका केंद्र जबलपुर था। वह अपने साहस, न्याय और सुंदरता को लेकर जानी जाती थी। उन्होंने अपने जीवनकाल में कई लड़ाइयाँ लड़ी और कइयों में जीत भी हासिल की।

रानी दुर्गावती ने पति की मौत के बाद राजपाठ संभाल लिया था। साथ ही अपने बेटे का मार्गदर्शन भी किया था। उनका अंतिम युद्ध मुगल सम्राट अकबर के सेना पति ख्वाजा अब्दुल मजीद आसफ खान से हुआ था। इस दौरान वह घायल होने के बावजूद अपनी अंतिम सांस तक लड़ती रहीं। अंत में उन्होंने एक मुगल के हाथों मरने या आत्मसमर्पण करने की बजाय खुद को खंजर घोंपना उचित समझा।

रानी ताराबाई

महारानी ताराबाई एक मराठा साम्राज्य की महिला शासक थी। वह राजाराम महाराज की दूसरी पत्नी तथा छत्रपति शिवाजी महाराज के सरसेनापति हंबीरराव मोहिते की कन्या थीं। वह शिवाजी महाराज की मां जीजाबाई की बहन भी थी। वह 1965 में जन्मी थी। बचपन से शिवाजी संग रही थी। वह उनकी आधिकारिक सलाहकार बन गई थी।

ताराबाई के नेतृत्व में मराठा सेना ने मुगल सम्राट औरंगजेब संग कई युद्ध किए और कुछ जीते भी। ताराबाई का पूरा नाम ताराबाई भोंसले था। जब शिवजी का निधन हुआ तो ताराबाई ने उनके बेटे संभाजी महाराज की मदद की। फिर जब संभाजी महाराज की मुगलों ने हत्या कर दी तो खुद ताराबाई ने रानी का पद संभाला। इसके बाद उन्होंने अपने बेटे शिवाजी देव को मराठा साम्राज्य की भागदौड़ संभालने में लगा दिया।

राजकुमारी रत्नावती

राजकुमारी रत्नवाती जैसलमेर के राजा महरावल रत्न सिंह की बेटी थी। वह 16वीं सताब्दी में पीड़ा हुई थी। वह दिखने में बेहद सुंदर थी। वह बुद्धिमान और समझदार थी। वह तंत्र-मंत्र की विधाओं में भी माहिर थी। राजा महरावल रत्न सिंह ने अपने महल की सुरक्षा का जिम्मा बेटी को सौंपा था। एक बार अलाउद्दीन खिलजी की सेना ने किले को घेर लिया था। फिर राजकुमारी रत्नवाती ने युद्ध का नेतृत्व किया और खिलजी के सेनापति मलिक काफिर सहित करीब एक हजार सैनिकों को बंधी बना लिया।

रानी चेनम्मा

रानी चेनम्मा कर्नाटक के कित्तूर राज्य की रानी थी। वह अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए जानी जाती हैं। उनकी गिनती भारत की स्वतंत्रता के लिये संघर्ष करने वाले सबसे पहले शासकों में होती है। उन्होंने पति और बेटे की मौत के बाद राजपाठ खुद संभाला था। बाद में अंग्रेजों ने उनसे सत्ता छीनने की कोशिश की, लेकिन वह उनके आगे झुकने को तैयार नहीं थी। ऐसे में साल 1824 में उन्होंने हड़प नीति के विरुद्ध अंग्रेजों से सशस्त्र संघर्ष किया और इस दौरान वीरगति को प्राप्त हुई।

रानी लक्ष्मीबाई

रानी लक्ष्मीबाई सभी रानियों में सबसे ज्यादा पॉपुलर हैं। वह झांसी राज्य की रानी थी। वह बचपन से बेहद समझदार और बहादुर थी। उन्होंने महज 29 वर्ष की उम्र में अंग्रेज साम्राज्य की सेना से युद्ध लड़ा था। वह 1858 में भारत की स्वतंत्रता के लिए अंग्रेजों से लड़ी थी। उन्होंने पति गंगाधर राव के निधन के बाद राजपाठ संभाला था। पति की गौरमौजूदगी में वह खुद अंग्रेजों से भीड़ गई थी। वह अपनी अंतिम सांस तक अंग्रेजों से लड़ती रही। और आखिर रणभूमि में वीरगति को प्राप्त हुई।

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